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वसुंधरा की क़रीबी शील धाभाई को गहलोत ने क्यों बनाया कार्यवाहक मेयर?

वसुंधरा की क़रीबी शील धाभाई को गहलोत ने क्यों बनाया कार्यवाहक मेयर?

राजस्थान की राजनीति में एक सवाल सभी की जुबान पर रहता है कि क्या मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बीच कोई सियासी रिश्ता है।

राजस्थान की राजनीति में एक सवाल सभी की जुबान पर रहता है कि क्या मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बीच कोई सियासी रिश्ता है। पहले भी ऐसे कई वाकये हुए हैं जिससे यह बात जिंदा हुई है और मंगलवार को फिर एक ऐसा वाकया हुआ। 

हुआ यूं कि गहलोत सरकार ने बीजेपी की पार्षद शील धाभाई को जयपुर ग्रेटर नगर निगम का कार्यवाहक मेयर बनाया है। जबकि राज्य में कांग्रेस की सरकार है और वह अपने भी किसी नेता को कार्यवाहक मेयर बना सकती थी। 

मेयर को किया निलंबित 

गहलोत सरकार ने सोमवार को सौम्या गुर्जर और बीजेपी के तीन पार्षदों को निलंबित कर दिया था। सौम्या गुर्जर और इन पार्षदों की नगर निगम के आयुक्त यज्ञ मित्र सिंह के साथ हाथापाई हुई थी और इसके बाद राज्य सरकार ने यह फ़ैसला लिया था। सरकार ने इस मामले में न्यायिक जांच के आदेश भी दे दिए हैं। 

इसके बाद से ही कार्यवाहक मेयर कौन होगा, इसे लेकर कयासों का दौर जारी था। लेकिन शील धाभाई का चयन होने को लेकर चर्चा इसलिए भी हुई है क्योंकि वह वसुंधरा खेमे की बड़ी नेता हैं। 

हालांकि शील धाभाई ने इस जिम्मेदारी को दिए जाने के बाद कहा कि उन्हें जो दायित्व मिला है, वह उस काम को करेंगी और ज़्यादा कुछ नहीं कहेंगी। 

जब जयपुर ग्रेटर नगर निगम के मेयर का चुनाव हुआ था, उस वक़्त भी शील धाभाई इस पद की दौड़ में सबसे आगे थीं लेकिन बीजेपी की अंदरुनी राजनीति के कारण यह पद सौम्या गुर्जर के खाते में चला गया था। धाभाई पूर्व में भी जयपुर की मेयर रह चुकी हैं। 

बीजेपी ने किया प्रदर्शन 

सौम्या गुर्जर और पार्षदों के निलंबन के गहलोत सरकार के फ़ैसले के ख़िलाफ़ राजस्थान बीजेपी ने मंगलवार को पूरे राज्य में प्रदर्शन किया था। पार्टी नेताओं सतीश पूनिया, वसुंधरा राजे, गजेंद्र सिंह शेखावत से लेकर सभी बड़े नेताओं ने राज्य सरकार के इस क़दम को ग़ैर-क़ानूनी बताया था। 

 - Satya Hindi

वसुंधरा का ख़ेमा मज़बूत 

राजस्थान में बीजेपी कई गुटों में बंटी हुई है। यहां गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुन राम मेघवाल, सतीश पूनिया, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया और उप नेता राजेंद्र राठौड़ के भी अपने-अपने समर्थक हैं। लेकिन इन सब पर भी वसुंधरा राजे भारी पड़ती दिखाई देती हैं। 

कांग्रेस में पायलट व गहलोत खेमे में चल रहे घमासान के शुरुआती दिनों में वसुंधरा राजे की चुप्पी को लेकर राजस्थान बीजेपी में बवाल हुआ था और महारानी ने बहुत दिन बाद चुप्पी तोड़ी थी। बीजेपी मुख्यालय में हुई बैठकों से भी राजे दूर रही थीं।

उस दौरान भी यह कहा जाता था कि गहलोत की सरकार नहीं गिरेगी क्योंकि चोरी-छिपे ही सही वसुंधरा राजे का समर्थन उन्हें हासिल है। यह बात बीजेपी आलाकमान को भी पता है कि राजे गहलोत की सरकार को नहीं गिरने देंगी। लेकिन दिक्कत बीजेपी हाईकमान के लिए भी बहुत है क्योंकि राजस्थान में अधिकांश विधायक और सांसद वसुंधरा के खेमे के हैं। 

राजस्थान में बीजेपी के 72 में से 47 विधायक वसुंधरा खेमे के बताये जाते हैं। वसुंधरा समर्थकों के द्वारा राज्य में कई जगहों पर ‘वसुंधरा जन रसोई’ चलाने और ‘वसुंधरा राजे समर्थक मंच राजस्थान’ का गठन करने के बाद भी बीजेपी आलाकमान राजे के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं कर पा रहा है। 

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