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यूपी: ओवैसी-राजभर मिले, बटोर पाएंगे अति पिछड़ा-मुसलिम वोट?

यूपी: ओवैसी-राजभर मिले, बटोर पाएंगे अति पिछड़ा-मुसलिम वोट?

राजभर उत्तर प्रदेश में अति पिछड़ों की राजनीति करने के लिए जाने जाते हैं तो ओवैसी ने बिहार चुनाव के बाद हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में भी इस बात को साबित किया है कि मुसलिम मतदाता उनके साथ खड़े हैं।

राजनीति में जानी-पहचानी कहावत है कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है। मतलब केंद्र में अगर अपनी धमक चाहिए तो यूपी जीतो। लेकिन यूपी जीतना बेहद कठिन है। महज सवा साल बाद होने वाले यूपी के विधानसभा चुनाव के लिए मूल रूप से दिल्ली और हैदराबाद में राजनीति करने वाली पार्टियां भी कूद गई हैं। इससे कोर यूपी की राजनीति करने वाली पार्टियों की राजनीति पर असर पड़ सकता है। 

15 नवंबर को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सामने आए और आम आदमी पार्टी के यूपी में 2022 का चुनाव लड़ने का एलान किया। इसे लेकर बीजेपी और आम आदमी पार्टी के नेता-कार्यकर्ता भिड़े तो 16 नवंबर को एआईएमआईएम के सांसद असदउद्दीन ओवैसी यूपी के मैदान में आ गए। हालांकि वह पहले ही प्रदेश में चुनाव लड़ने का एलान कर चुके थे। 

ओवैसी ने बुधवार को यूपी के पूर्व कैबिनेट मंत्री और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर से मुलाक़ात की। राजभर वो नेता हैं, जिन्होंने 2017 में योगी सरकार बनने के कुछ ही महीने बाद मंत्री रहते हुए अपनी ही सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया था। 

दो साल तक बीजेपी से भयंकर नुरा-कुश्ती करने के बाद राजभर ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अपनी राहें अलग कर ली थीं और लगभग 40 सीटों पर प्रत्याशी उतार दिए थे। 

राजभर उत्तर प्रदेश में अति पिछड़ों की राजनीति करने के लिए जाने जाते हैं तो ओवैसी ने बिहार चुनाव के बाद हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में भी इस बात को साबित किया है कि मुसलिम मतदाता उनके साथ खड़े हैं।

बिहार में भी साथ थे 

इससे पहले बिहार चुनाव में बने ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट में भी ओवैसी और राजभर साथ थे। लेकिन राजभर मूल रूप से यूपी की राजनीति करते हैं, इसलिए ओवैसी के साथ यूपी में मिलकर चुनाव लड़ने से प्रदेश की राजनीति पर क्या असर होगा, इस पर बात करनी ज़रूरी है। 

ओम प्रकाश राजभर अति पिछड़ों के साथ ही दलितों-अल्पसंख्यकों, शोषित, ग़रीब वर्ग के हक़ों की लड़ाई लड़ने का दम अपनी तमाम चुनावी रैलियों, इंटरव्यू में करते रहे हैं। 

यूपी में पिछड़ों की आबादी 40 फ़ीसदी है। इस आबादी में ताक़तवर माने जानी वालीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जाट-गुर्जर और पूरे प्रदेश में फैली यादव-कुर्मी आबादी को छोड़ दें तो ओमप्रकाश राजभर पूर्वांचल के इलाक़े में बिंद, निषाद, मल्लाह, कश्यप, कुम्हार, राजभर, प्रजापति, मांझी, पाल, कुशवाहा आदि अति पिछड़ी जातियों के वोटों को अपने पाले में कर सकते हैं। 

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राजभर कहते रहे हैं कि पिछड़ों के 27 प्रतिशत आरक्षण को तीन हिस्सों में बांटा जाए। इसमें पिछड़ा, अति पिछड़ा और महापिछड़ा को आबादी के हिसाब से आरक्षण दिया जाए। इसी वजह से वह बीजेपी से लड़ते-झगड़ते रहे और बाद में अलग हो गए। राजभर का कहना है कि इन जातियों को पिछड़ों के आरक्षण का सही हक़ नहीं मिल पाया और ये हमेशा वंचित ही रहीं। 

मायावती की सियासत पर देखिए चर्चा- 

भागीदारी संकल्प मोर्चा 

ओमप्रकाश राजभर पिछले डेढ़ साल से उत्तर प्रदेश में छोटे दलों का गठबंधन बनाने की कोशिशों में जुटे हैं। भागीदारी संकल्प मोर्चा के नाम से बनाए गए गठबंधन में वह अब तक आठ दलों को जोड़ चुके हैं। इसमें सुभासपा के अलावा पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की राष्ट्रीय अध्यक्ष जन अधिकार पार्टी, कृष्णा पटेल का अपना दल, ओवैसी की एआईएमआईएम, उत्तर प्रदेश के साथ ही देश भर में दलितों की आवाज़ बनकर उभर रहे चंद्रशेखर रावण की पार्टी आज़ाद समाज पार्टी सहित कुछ छोटे दल शामिल हैं। 

आम आदमी पार्टी और पूर्व मंत्री शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) को भी भागीदारी संकल्प मोर्चे से जोड़ने की तैयारी जोरों पर है।

सियासी रहनुमा की तलाश

मुसलमानों की आबादी उत्तर प्रदेश में 17-18 फ़ीसदी है। मुसलमानों में भी अगड़ों-पिछड़ों की लड़ाई है लेकिन जिस तरह बीजेपी ने हिंदुत्व की राजनीति के नाम पर उत्तर प्रदेश में बवाल मचाया हुआ है, उसमें मुसलमानों को ऐसा सियासी रहनुमा चाहिए जो उनके हक़ों की लड़ाई को मजबूती से लड़ सके।

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ओवैसी ने लंदन से बैरिस्टर की पढ़ाई की है। संसद से लेकर सड़क तक उन्होंने मुसलमानों के मसले पर किसी भी दूसरे सेक्युलर या मुसलिम नेता के मुक़ाबले ज़्यादा मजबूती से आवाज़ उठाई है। तीन तलाक़, सीएए-एनआरसी, राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला, धारा 370 जैसे मुसलमानों से जुड़े मसलों पर ओवैसी ने ताक़त के साथ आवाज़ बुलंद की है।

ओवैसी और राजभर के साथ आने से उत्तर प्रदेश की राजनीति में सबसे ज़्यादा मुश्किल मायावती और अखिलेश को ही होगी। ओवैसी मुसलिम वोटों में सेंधमारी करेंगे तो राजभर अति पिछड़ा वर्ग के वोटों पर असर डाल सकते हैं।

कांग्रेस को भी होगा घाटा!

मायावती पर बीजेपी के प्रति जहां बहुत ज्यादा सॉफ्ट रहने और मुसलमानों से जुड़े मसलों पर चुप्पी साधे रहने का आरोप लगता है, वहीं अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी भी मुसलमानों से जुड़े मसलों पर बहुत मुखर नहीं दिखाई दिए। ऐसे हालात में ओवैसी उत्तर प्रदेश में मुसलिम हक़ों की लड़ाई लड़कर अपना जनाधार तो बढ़ाएंगे ही, मायावती, अखिलेश के साथ ही कांग्रेस की ज़मीन को भी कमजोर करने का काम करेंगे। 

बिहार में ओवैसी के प्रदर्शन के बाद सेक्युलर राजनीति करने वालीं कांग्रेस, बीएसपी और एसपी को परेशानी होने लगी थी। क्योंकि इन दलों में मुसलिम वोटों पर एकाधिकार को लेकर जोरदार लड़ाई होती है। ओवैसी इन दलों पर इसे लेकर लगातार हमला बोलते हैं। 

ओमप्रकाश राजभर की कोशिश अति पिछड़ों, दलितों और मुसलमानों को साथ लाने की है। अगर उत्तर प्रदेश में दलित चंद्रशेखर रावण के साथ, मुसलमान ओवैसी के साथ और अति पिछड़ा वर्ग राजभर के साथ जुड़ता है और आने वाले वक़्त में आम आदमी पार्टी और शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) भी इस राजभर के भागीदारी संकल्प मोर्चे के साथ जुड़ती है तो निश्चित रूप से यह एक ऐसा गठबंधन होगा जो कई सीटों पर चुनाव परिणाम को प्रभावित करने की क्षमता रखेगा। 

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