पश्चिमी यूपी में मतदान से पहले ओवैसी क्यों बन गए चर्चा का केंद्र?
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पहले चरण के मतदान में कुछ ही दिन बचे हैं। पहले और दूसरे चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मतदान होना है। यहां बीजेपी और सपा-रालोद गठबंधन अपनी-अपनी जीत के लिए जी तोड़ कोशिशें कर रहे हैं। वहीं कांग्रेस और बसपा के अलावा असदुद्दीन ओवैसी भी मुसलिम मतदाताओं को रिझाने के लिए पूरे दमख़म के साथ जुटे हुए हैं। हाल ही में ओवैसी पर हुए हमले से यहां का राजनीतिक माहौल कुछ ज़्यादा ही गरमा गया है। ये सवाल उठना लाज़िमी है कि आख़िर मतदान से ठीक पहले ओवैसी क्यों चर्चा का केंद्र बन गए हैं? दूसरा सवाल ये है कि क्या ओवैसी पर हुए हमले से पश्चिम उत्तर प्रदेश के सिसायी समीकरण बिगड़ सकते हैं?
ओवैसी पर हमले से गरमाई राजनीति
ओवैसी पर हमले का मामला संसद में गूंजा। आनन-फानन में मोदी सरकार ने उन्हें ज़ेड सुरक्षा देने का ऐलान कर दिया। लेकिन ओवैसी ने लोकसभा में सुरक्षा लेने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें सुरक्षा नहीं बल्कि इंसाफ चाहिए। ओवैसी ने यह कहकर संविधान और लोकतंत्र के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई कि उन पर ‘बुलेट’ चलाने वालों को जनता ‘बैलेट’ पेपर से जवाब देगी। ओवैसी पर हमले के अगले दिन उनकी पार्टी के कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए और केंद्र सरकार से उन्हें सुरक्षा देने की मांग करने लगे। इससे मुसलिम समाज में ओवैसी के प्रति सहानुभूति लहर देखी जा रही है। इस लहर के वोटों में तब्दील होने की आशंका से मुसलिम वोटों के सहारे योगी सरकार को उखाड़ फेंकने का दावा कर रहे अखिलेश यादव की धड़कन बढ़ गई हैं।
हिंदूवादी संगठनों को मिला मौक़ा
उत्तर प्रदेश पुलिस ने यह खुलासा किया है कि ओवैसी पर हमला उनके और उनके भाई के हिंदुओं के प्रति दिए गए भड़काऊ बयानों के चलते हुआ है। ओवैसी पर गोली चलाने वाले कट्टर हिंदू पहचान वाले नौजवान हैं। उन्होंने पुलिस के सामने कुबूल कर लिया है कि वे काफी दिन से ओवैसी पर हमला करने की फिराक में थे। अगर मौक़ा मिलता है तो सितंबर में संभल में उन पर हमला कर सकते थे।
हिंदूवादी संगठन ओवैसी पर हमला करने वालों के साथ खड़े हो गए हैं। उन्होंने क़ानूनी सहायता देने की घोषणा कर दी है।
इससे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चुनाव को हिंदू-मुसलिम करने की कोशिशों को मदद मिल सकती है। पहले चरण के मतदान से ठीक पहले बन रही यह स्थिति पश्चिम उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों में हार जीत के समीकरणों में उलटफेर कर सकती है।
हमला हो सकती है ध्रुवीकरण की साज़िश
राजनीतिक पेक्षकों का मानना है कि ओवैसी पर हमला पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की साज़िश हो सकती है। पहले चरण में मतदान वाली सीटों पर इसका असर पड़ सकता है। पहले चरण की 58 में से 12 सीटों पर ओवैसी की पार्टी के उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। इनमें से मुज़फ्फनगर और मेरठ की तीन-तीन, ग़ाजियाबाद में दो, हापुड़ में दो सीटों पर ओवैसी की पार्टी के उम्मीदवार ताल ठोक रहे हैं। इनके अलावा बुलंदशहर और अलीगढ़ ज़िले में एक-एक सीट पर उनकी पार्टी का उम्मीदवार किस्मत आज़मा रहा है। ओवैसी के उम्मीदवार कहीं सपा-रालोद गठबंधन के मुसलिम उम्मीदवार की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं तो कहीं बसपा और कांग्रेस के। ये स्थिति बीजेपी को राहत देने वाली है।
मुज़फ़्फ़रनगर के डांवाडोल समीकरण
मुज़फ़्फ़रनगर में विधानसभा की कुल छह सीटें हैं। इनमें सपा-रालोद गठबंधन ने एक भी मुसलिम उम्मीदवार नहीं उतारा है। इसे लेकर ज़िले के मुसलमानों में गठबंधन के प्रति नाराज़गी बताई जा रही है। इससे सपा गठबंधन की जीत के समीकरण डांवाडोल हो रहे हैं। एक तरफ़ तो जयंत और अखिलेश मुजफ्फरनगर में 2013 के सांप्रदायिक दंगों से जाट और मुसलमानों के बीच पैदा हुई खाई को पाटने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरी तरफ़ उन्होंने इस डर से किसी मुसलमान को टिकट तक नहीं दिया कि कहीं जाट उसे नकार न दें। ओवैसी ने इस स्थिति का फायदा उठाते हुए तीन सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए हैं। चरथावल में ताहिर अंसारी, मुजफ्फरनगर में इंतज़ार अंसारी और बुढाना में भीमसिंह बाल्यान ओवैसी की पार्टी के उम्मीदवार हैं। चरथावल में उनका उम्मीदवार बसपा और कांग्रेस के मुसलिम उम्मीदवार के साथ त्रिकोणीय मुकाबला बनाने की कोशिश कर रहा है।
मेरठ में फंसी फांस
मेरठ की सात में से तीन सीटों पर ओवैसी ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं। सदर सीट पर सपा-रालोद के उम्मीदावार मौजूदा विधायक रफीक अंसारी को वैसे तो बसपा के मोहम्मद दिलशाद से कड़ी चुनौती मिल रही है। ओवैसी ने यहां इमरान अंसारी को उम्मीदवार बनाकर उनकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं। दूसरी महत्वपूर्ण सीट किठौर पर सपा-रालोद गठबंधन से पूर्व मंत्री शाहिद मंजूर मैदान में हैं। इनकी मुश्किलें ओवैसी के उम्मीदवार तस्लीम अहमद ने बढ़ा दी हैं। जब ओवैसी पर हमला हुआ वो मेरठ से अपने उम्मीदवारों के हक़ में प्रचार करके लौट रहे थे। यहां उनके समर्थकों की भीड़ उमड़ आई थी। इस दौरान ओवैसी ने सीएम योगी के गर्मी वाले बयान पर पलटवार करते हुए कहा था कि जो गर्मी उन्होंने यूपी में पैदा कर दी है वो क़यामत तक चलेगी। साथ ही उन्होंने सपा, बसपा को बीजेपी के बराबर बताया था।
साहिबाबाद में ब्राह्मण उम्मीदवार पर दांव
ग़ाज़ियाबाद की लोनी सीट पर उनका उम्मीदवार बीजपी के मौजूदा सांसद नंदकिशोर गुज्जर को टक्कर दे रहे सपा-रालोद गठबंधन के मदन भैया और बसपा के हाजी आकिल का खेल बिगाड़ सकता है।
ग़ाज़ियाबाद की साहिबाबाद सीट पर ओवैसी ने ब्राह्मण उम्मीदवार पंडित मनमोहन झा को उतार कर राजनीतिक पंडितों को चौंकाया है। झा को मुसलिम इलाक़ों में खासा समर्थन मिल रहा है।
मुसलिम बस्तियों में झा को मिल रहे समर्थन से बीजेपी की बाँछें खिली हुई हैं तो सपा के पंडित अमरपाल शर्मा की चिंता बढ़ गई है। हापुड़ की धौलाना सीट पर गठबंधन के उम्मीदवार असलम चौधरी और बसपा के बासिद प्रधान को मिलने वाले मुसलिम वोट खींचने की कोशिश कर रहा है। पिछली बार असलम बसपा के टिकट पर जीते थे। इस बार वो सपा-रालोद गठबंधन के टिकट पर मैदान में हैं। धौलाना में पिछले हफ्ते हुए ओवैसी के रोड शो ने असलम और बासिद दोनों की बेचैनी बढ़ा दी है। गढ़मुक्तेश्वर में ओवैसी मुसलिम वोटों के सहारे अपने अकेले मुसलिम उम्मीदवार को जिताने का सपना देख रहे हैं।
अलीगढ़ और बुलंदशहर में क्या है स्थिति?
अलीगढ़ की बरौली सीट पर ओवैसी ने शाकिर अली और बुलंदशहर की सिकंदराबाद सीट पर दिलशाद अहमद को टिकट दिया है। बरौली में उनका अकेला मुसलिम उम्मीदवार है। सिकंदराबाद में कांग्रेस का उम्मीदवार भी मुसलमान है। यहाँ वो अपनी पार्टी की मज़बूत मौजूदगी दर्ज कराने की कोशिश में है।
ओवैसी मुसलिम इलाक़ों में ही घूम रहे हैं। मुसलमानों को ही वो अपने वोटों की अहमियत समझाते हुए एकजुट होने की अपील कर रहे हैं। उनके निशान पर जहाँ एक तऱफ बीजेपी है वहीं वो सपा, बसपा, कांग्रेस और रालोद पर बराबर निशाना साध रहे हैं। वो अपनी हर रैली, हर टीवी इंटरव्यू में मुसलमानों को एक ही संदेश देते हैं कि सेकुलरिज्म के नाम पर बरसों से उन्हें मूर्ख बनाने वाली पार्टियों को छोड़कर वो उनकी पार्टी का झंडा उठा लें तो उनकी खुद की बड़ी राजनीतिक ताक़त खड़ी हो सकती है।
ओवैसी मुसलमानों के हीरो, मगर वोट देने पर संशय
ओवैसी की बातें मुसलमानों के दिल को छूती तो हैं लकिन उन्हें वोट देने को लेकर वो पसोपश में हैं। मुसलिम समाज के बड़े तबक़े को लगता है कि ओवैसी को वोट देने पर बीजेपी की जीत का रास्ता आसान हो सकता है। वहीं एक तबक़ा मुसलिम नेतृत्व को पसंद करने वाला है। वो चाहता है कि मुसलमानों का नेतृत्व करने वाली भी एक पार्टी हो. लेकिन ये तबका बेहद छोटा है। लेकिन ध्रुवीकरण की स्थिति में धार्मिक भावनाओं में बहकर ये तबक़ा ओवैसी की पार्टी को वोट दे सकता है। ओवैसी को यूपी में अपनी पार्टी खड़ी करनी है। इसके लिए पार्टी का खाता खुलना ज़रूरी है। उनके पास यहां खोने को कुछ नहीं है। पाने को सबकुछ है। लिहाज़ा उनका कुछ भी यहां दांव पर नहीं लगा है। उनकी कोशिश पार्टी जनाधार बढ़ाना और खाता खोलना है।
राजनीतिक विश्लषकों का मानना है कि ओवैसी पर हुए हमले से उनके प्रति सहानुभूति पैदा हो सकती है। इससे उन्हें देखने और सुनने उमड़ी भीड़ का अगर आधा या चौथाई हिस्सा भी उनके उम्मीदवारों के पक्ष में वोटों में तब्दील हुआ तो कई सीटों पर जीत के समीकरण बदल सकते हैं। शायद यही वजह है कि ओवैसी मतदान से पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चर्चा का मुख्य केंद्र बन गए हैं।