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यूपी बीजेपी के 17वें उपाध्यक्ष बने अरविंद शर्मा 

यूपी बीजेपी के 17वें उपाध्यक्ष बने अरविंद शर्मा 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़ास अफ़सर रहे अरविंद कुमार शर्मा को अंततः राजनीतिक ज़िम्मेदारी दे ही दी गई। वे उत्तर प्रदेश बीजेपी के सत्रहवें उपाध्यक्ष बना दिए गए हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़ास अफ़सर रहे अरविंद कुमार शर्मा को अंततः राजनीतिक ज़िम्मेदारी दे ही दी गई। वे उत्तर प्रदेश बीजेपी के सत्रहवें उपाध्यक्ष बना दिए गए हैं। इससे पहले जो उपाध्यक्ष रहे हैं, उनमें पहले नंबर पर लक्ष्मण आचार्य, दूसरे पर पंकज सिंह, तीसरे नंबर पर विजय बहादुर पाठक और चौथे नंबर पर कांता कर्दम है। 

पर सोलहवें नंबर पर सुनीता दयाल हैं। इसके बाद अरविंद कुमार शर्मा का नंबर है। ये वही अरविंद कुमार शर्मा हैं, जिन्हें उप- मुख्यमंत्री बनाने की अटकलें छह महीने से लगाईं जा रही थीं। हालांकि यह अटकल मीडिया की ही देन ज्यादा थी। न कभी किसी ने दावा किया कि वह उप मुख्यमंत्री बनना चाहता है न सरकार या संगठन ने कभी ऐसा कुछ कहा। 

योगी का दबदबा

फिर जब मीडिया में इसे सत्ता के दूसरे केंद्र के रूप में देखना शुरू किया गया तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी अपना दबदबा दिखाया। मीडिया अगर तूल न देता तो इतना बखेड़ा भी न होता। वे आते और मंत्री बन जाते, तब लोगों को पता चलता। पर दिल्ली से भी यह चूक तो हुई ही। या जानबूझ कर चूक कराई गई, यह अभी साफ नहीं है।

पर जैसे ही यह खबर आने लगी कि अरविंद शर्मा यूपी की नौकरशाही ठीक करने आ रहे हैं, मामला बिगड़ गया। योगी मुख्यमंत्री हैं और नौकरशाही कोई दूसरा ठीक करे, यह हो भी कैसे सकता था?

टकराव हुआ और टकराव टालने के लिए संघ भी सामने आया। दरअसल सरकार से जो नाराज चल रहे थे, वे ही इस अभियान को हवा भी दे रहे थे। पर हवा तो हवा ही होती है। इसे मोदी की हार के रूप में देखना भी ठीक नहीं है।

मीडिया की लंतरानी?

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अपनी कार्यशैली है जो सबको पसंद आये यह ज़रूरी नहीं। कैबिनेट की बैठक में भी नोक झोंक की खबरे आती रहती हैं। बड़ी संख्या में विधायक भी नाराज़ रहे हैं यह भी सही है।

 - Satya Hindi

पर इसके चलते चुनाव से सात- आठ महीने पहले देश के सबसे बड़े सूबे के मुख्यमंत्री को कोई बदल दे, यह मीडिया की लंतरानी हो सकती है। बीजेपी या संघ ऐसा फैसला किसी कीमत पर नहीं करने वाला था। 

केशव प्रसाद मौर्य हों या स्वामी प्रसाद मौर्य, इनकी टिपण्णी का फ़िलहाल कोई राजनीतिक महत्व नहीं दिखता। मुख्मयंत्री का चेहरा पाँच साल की सत्ता के बाद अगर फिर जीत हासिल होती है तो बदलना मुश्किल है।

अबकी कोई लहर नहीं होगी। न मोदी लहर, न हिंदुत्व की लहर। बल्कि कोरोना की जाती हुई लहर और आती हुई लहर से बीजेपी सरकार, संगठन और संघ तीनों को जूझना पड़ेगा।

मुख्यमंत्री से टकराना आत्मघाती

ऐसे में मुख्यमंत्री से टकराना आत्मघाती होगा खासकर मोदी के लिए जो 20214 में एक बार फिर प्रधानमंत्री बनने की कोशिश में हैं। इसलिए योगी को साधे रखना सबके लिए ज़रूरी है और मजबूरी भी है।

पार्टी और संघ अब चुनाव की कवायद में जुट चुका है। जुलाई में एमएलसी की जिन चार सीटों के लिए नामांकन होना है, उनमें एक ब्राह्मण, एक पिछड़ा और एक दलित चेहरा शामिल हो सकता है। हो सकता है कांग्रेस से आये जितिन प्रसाद को भी मौका मिल जाए। सांस्कृतिक क्षेत्र से जुडी एक महिला का नाम भी इसमें चर्चा में है।

खैर इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि संघ की चिंता जातीय समीकरण को दुरुस्त करने की ज़्यादा है। बाकी टकराव का व्यावहारिक नतीजा सामने है।

अख़बार के विज्ञापन में मोदी और योगी की तसवीरें आने लगी है। एमएलसी अरविंद कुमार शर्मा यूपी बीजेपी के सत्रहवें उपाध्यक्ष बन ही चुके हैं। जो राजनीतिक संदेश और संकेत समझते हैं, उन्हें यूपी बीजेपी के उपाध्यक्ष की पूरी सूची एक बार देख लेनी चाहिए।

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