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पत्रकारों से थी जेटली की निकटता, मंत्री बने तो ऊपर चढ़ा ग्राफ़

पत्रकारों से थी जेटली की निकटता, मंत्री बने तो ऊपर चढ़ा ग्राफ़

वैसे तो अरुण जेटली के पत्रकारों से हमेशा अच्छे संबंध रहे, लेकिन बीजेपी के प्रवक्ता और सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनने के बाद यह घनिष्ठता और बढ़ गई थी।

वैसे तो अरुण जेटली के पत्रकारों से हमेशा अच्छे संबंध रहे, लेकिन बीजेपी के प्रवक्ता और सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनने के बाद यह घनिष्ठता और बढ़ गई थी। टीवी न्यूज़ राजनीति के मानदंड बदल रही थी। जैसे-जैसे टीवी की महत्ता बढ़ती गई, वैसे-वैसे जेटली का ग्राफ़ भी चढ़ता गया। स्टूडियो में वह इतने लोकप्रिय मेहमान बन गए थे कि जब पत्रकार वीर सांघवी ने मंत्री बनने के तुरंत बाद उनका स्टार टीवी पर इंटरव्यू किया तो उन्होंने मज़ाक में कहा, ‘इस कार्यक्रम में ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है कि मेरा मेहमान मुझसे ज़्यादा बार टीवी पर आ चुका हो।’ 

वर्ष 2000 में एशिया वीक पत्रिका को उनमें भारत की सबसे उदीयमान और नौजवान राजनीति नज़र आई। उनके बारे में अपनी किताब ‘एडिटर अनप्लग्ड’ में वरिष्ठ पत्रकार विनोद मेहता ने लिखा, ‘हालाँकि वह निरंतर राजनीतिक रूप से ऊपर उठने के नशे में रहते हैं, और संभवत: दिल्ली के सबसे बड़े किस्सेबाज़ हैं…जेटली को पढ़े-लिखे पत्रकारों की संगत बहुत पसंद है और वह ख़ुद को हर जानकारी से लैस रखना पसंद करते हैं।’ 

जब मेहता आउटलुक के संपादक थे तो इस पत्रिका ने 2009 में भारत के सबसे बेहतरीन किस्सों पर कवर स्टोरी की थी और जेटली का नाम उसमें सबसे ऊपर था। इसमें लिखा था, ‘इस वकील-राजनेता के लिए किस्से-कहानियाँ सिर्फ़ सामाजिक वैधता या मन बहलाने का ज़रिया नहीं हैं, बल्कि उनका जुनून है। जो ख़ुश किस्मत पत्रकार उनके दरबार में जगह पाते हैं। उनका वे पत्रकारों और संपादकों समेत लगभग सभी की निज़ी ज़िंदगियों के क़िस्से सुनाकर मनोरंजन करते हैं।’ आउटलुक की यह सूची जेटली के दोस्तों के नाम से भरी पड़ी थी। इसमें पूर्व पत्रकार और कांग्रेस सांसद राजीव शुक्ला, समाजवादी पार्टी के अमर सिंह, सुहेल सेठ तथा वीरेंद्र और कूमी कपूर शामिल थे। 

मंत्री बनने के शुरुआती सालों में पहले बतौर सूचना एवं प्रसारण और फिर क़ानून और न्याय, ये विचार प्रधानमंत्री वाजपेयी से लगातार बढ़ते अलगाव का कारण बने क्योंकि बीजेपी के नौजवान नेता आडवाणी के क़रीब दिखना चाहते थे, जिनका प्रधानमंत्री बनना लगभग तय था। उस दौर में भारतीय जनता पार्टी का अंदरुनी संघर्ष या गुटबाज़ी आये दिन कहीं न कहीं ख़बरों में छपती रहती थी। 

अरुण जेटली, सुषमा स्वराज और प्रमोद महाजन जैसे बीजेपी के दूसरे पायदान के नेताओं के बीच एक-दूसरे के ख़िलाफ़ अख़बार में ख़बर ‘प्लांट’ करवा देना आम बात हो गई थी। बाद के सालों में भी जेटली के पत्रकारों से अच्छे संबंध रहे।

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