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उपचुनाव: येदियुरप्पा, योगी के सामने कोई चुनौती नहीं!

उपचुनाव: येदियुरप्पा, योगी के सामने कोई चुनौती नहीं!

उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में होने वाले विधानसभा सीटों के उपचुनाव में बीजेपी ज़्यादा मजबूत दिखाई देती है जबकि दोनों ही राज्यों में विपक्ष निष्क्रिय और कमजोर। 

हरियाणा और महाराष्ट्र के साथ ही देश भर में 18 राज्यों की 64 विधानसभा सीटों के लिए भी चुनाव आयोग ने तारीख़ों की घोषणा कर दी है। इन उपचुनावों के लिए भी 21 अक्टूबर को मतदान और मतगणना की तारीख 24 अक्टूबर तय की गई है। इन राज्यों में अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, मेघालय, ओडिशा, पुडुचेरी, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश शामिल हैं।

इन राज्यों में सबसे सबसे ज़्यादा सीटों पर जिन राज्यों में चुनाव होना है, वे कर्नाटक और उत्तर प्रदेश हैं। कर्नाटक में 15 और उत्तर प्रदेश में 11 सीटों पर उपचुनाव होगा। बीजेपी की कोशिश उपचुनाव में सभी सीटों पर जीत हासिल करने की है।

पहले बात कर्नाटक की। मई, 2018 में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव हुए थे और बीजेपी बहुमत के आंकड़े से कुछ दूर रह गई थी। बीजेपी ने राज्य में सरकार बनाने की कोशिश की थी लेकिन तब वह सदन में विश्वास मत हासिल नहीं कर सकी थी। राज्य में कांग्रेस और जेडीएस की सरकार बनने के पहले ही दिन से बीजेपी इसे गिराने की कोशिश में जुटी थी और इसके लिए उसने ऑपरेशन लोटस भी चलाया था। 

आख़िरकार एक लंबी कशमकश के बाद उसे इस साल 29 जुलाई को राज्य में सरकार बनाने में सफलता मिली। लेकिन इसके लिए बीजेपी को राज्य में कांग्रेस-जेडीएस के 17 विधायकों से इस्तीफ़ा दिलवाना पड़ा और कई दिन तक सियासी ड्रामा चला। 

अब राज्य में 15 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव होने हैं तो बीजेपी को सत्ता में होने की वजह से ज़्यादा मुश्किलें नहीं होंगी। उसके पक्ष में एक और बात जाती है, वह यह कि कांग्रेस और जेडीएस अब अलग हो चुके हैं तो ज़ाहिर है कि ये दोनों दल चुनाव भी अलग ही लड़ेंगे। ऐसे में बीजेपी की राह और आसान हो गई है। 

दूसरी बात यह कि कांग्रेस-जेडीएस के जिन विधायकों ने इस्तीफ़ा दिया है, उनसे येदियुरप्पा ने कोई न कोई वादा ज़रूर किया होगा, वरना ये अपनी विधायक की कुर्सी क्यों दाँव पर लगाते। ये सभी जीते हुए विधायक थे और हो सकता है कि बीजेपी ने इन्हें टिकट देने का वादा किया हो। 

अगर बीजेपी इन सभी सीटों को जीत लेती है तो इससे राज्य में यह राजनीतिक संदेश जाएगा कि बीजेपी अब ताक़तवर हो चुकी है और विपक्ष ख़त्म। क्योंकि तब बीजेपी का संख्याबल बढ़ चुका होगा और उसे सरकार चलाने में किसी तरह की मुश्किल नहीं होगी। दूसरी ओर विपक्ष और कमजोर होगा। 

वैसे, कांग्रेस और जेडीएस के रिश्ते लोकसभा चुनाव के बाद ही ख़राब हो चुके थे और जेडीएस नेता पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा कह चुके थे कि वह कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करना चाहते थे। यहाँ तक कि राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी भी सार्वजनिक रूप से कह चुके थे कि वह गठबंधन की राजनीति का जहर पीने के लिए मजबूर हैं। अंतत: सरकार गिरी, कांग्रेस-जेडीएस अलग हुए और कर्नाटक में विपक्षी राजनीति भी कमजोर हो गई। 

योगी ख़ुद कर रहे मॉनिटरिंग

अब बात करते हैं उत्तर प्रदेश सरकार की। बीजेपी यूपी में 11 सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव को लेकर बेहद गंभीर है। इसे इससे समझा जा सकता है कि उसने जून में ही दूसरे राजनैतिक दलों से सबसे पहले इन उपचुनावों की तैयारी शुरू कर दी थी और हर सीट के लिए प्रभारी मंत्रियों की नियुक्ति भी कर दी थी। टिकट देने में भी ख़ुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दख़ल है और वह उपचुनाव वाली सीटों पर ख़ुद जाकर सियासी नब्ज टटोल रहे हैं। हाल ही में उन्होंने इन इलाक़ों में कई योजनाओं का शिलान्यास भी किया है। 

इन 11 सीटों के उपचुनाव को 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव का सेमीफाइल माना जा रहा है। ऐसे में बीजेपी उपचुनाव के जरिए अपने राजनीतिक वर्चस्व को बरकरार रखना चाहती है। जबकि विपक्ष अपने खोए हुए जनाधार को वापस पाना चाहता है।

जिन सीटों पर उचपुनाव होना है उनमें उत्तर प्रदेश के लखनऊ की कैंट, बाराबंकी की जैदपुर, चित्रकूट की मानिकपुर, सहारनपुर की गंगोह, अलीगढ़ की इगलास, रामपुर, कानपुर की गोविंदनगर, बहराइच की बलहा, प्रतापगढ़, मऊ की घोसी और अंबेडकरनगर की जलालपुर विधानसभा सीट शामिल हैं। 

योगी सरकार उपचुनाव के नजदीक आते ही अपनी उपलब्धियों का ख़ूब प्रचार कर रही है। हालाँकि उत्तर प्रदेश में कई स्थानीय मुद्दे हैं, इनमें बेरोज़गारी, निवेशकों का राज्य में न आना, क़ानून व्यवस्था, दलितों के साथ अत्याचार आदि अहम हैं। लेकिन पूरी तरह निष्क्रिय होने और लगातार चुनावों में मात खाने के कारण विपक्ष सरकार को ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद नहीं कर पा रहा है। 

पूरी तरह बिखरा हुआ है विपक्ष 

यूपी में विपक्ष पूरी तरह बिखरा हुआ है। लोकसभा चुनाव में बीजेपी को बड़ी जीत मिलने के बाद ऐसा नहीं लगता कि विपक्ष के पास इतनी ताक़त बची हो कि वह बीजेपी को चुनौती दे सके। एसपी-बीएसपी का गठबंधन टूट चुका है, कांग्रेस बुरी तरह पस्त है और राष्ट्रीय लोक दल शून्य से आगे नहीं बढ़ सका है। ऐसे हालात में ये दल लोकसभा चुनाव में राज्य में 80 में से 62 सीटें जीतने वाली बीजेपी का मुक़ाबला किस तरह करेंगे, यह सवाल उन्हें ख़ुद से ही पूछना चाहिए। ऐसे हालात में योगी सरकार को वॉकओवर मिलना तय माना जा रहा है। 

कर्नाटक और उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार की 5 विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर उपचुनाव होंगे। असम की 4, केरल की 5, मध्य प्रदेश की 1, मेघालय की 1, ओडिशा की 1, पुडुचेरी की 1, पंजाब की 4, राजस्थान की 2, सिक्किम की 2, तमिलनाडु की 2, तेलंगाना की 1, उत्तर प्रदेश की 11, छत्तीसगढ़ की 1, गुजरात की 4 और हिमाचल प्रदेश की 2 विधानसभा सीटों पर चुनाव होंगे।

वैसे तो किसी भी राज्य में होने वाले उपचुनाव में स्थानीय मुद्दे ही हावी रहते हैं। लेकिन बीजेपी ने केंद्र में सरकार बनने के 100 दिन के भीतर जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने को अपनी बहुत बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश किया है। ऐसे में उसे इसका सियासी लाभ मिल सकता है। 

बीजेपी अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद हुई रैलियों में मंच से इस बात के लिए अपनी ही सरकार की तारीफ़ कर चुके हैं और उन्होंने यह जताने की कोशिश की है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली यह सरकार कड़े फ़ैसले लेने से नहीं हिचकती। 

अगर बीजेपी यूपी, कर्नाटक सहित अन्य राज्यों में उपचुनाव में ज़्यादातर सीटें जीत जाती है तो ये चुनावी नतीजे निश्वित रूप से उस राज्य की राजनीति को प्रभावित करेंगे। जिन राज्यों में वह सत्ता में है, बीजेपी के जीतने पर वहाँ यह संदेश जायेगा कि बीजेपी के शासन से लोग ख़ुश हैं और उसकी सियासी ताक़त भी बढ़ेगी और जिन राज्यों में वह विपक्ष में है और वहाँ वह चुनाव जीतती है तो वह ख़ुद को और मजबूत विकल्प के रूप में पेश करेगी। 

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