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अर्णब केस- व्यक्तिगत आज़ादी सबसे बड़ी: सुप्रीम कोर्ट

अर्णब केस- व्यक्तिगत आज़ादी सबसे बड़ी: सुप्रीम कोर्ट

देश की जेलों में सालों-साल से सड़ रहे कैदियों की जमानत को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फ़ैसला सुनाया है।

देश की जेलों में सालों-साल से सड़ रहे कैदियों की जमानत को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फ़ैसला सुनाया है। हाई कोर्ट और निचली अदालतों के जमानत न देने के रवैये से नाराज़ सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि आपराधिक कानून प्रक्रिया के अंतर्गत मामला झेलने वाले सभी नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता सबसे बड़ी है। 

रिपब्लिक टीवी के एडिटर इन चीफ अर्णब गोस्वामी को जमानत दिए जाने के 16 दिनों के बाद इस मामले को लेकर अपने विस्तृत आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि स्वतंत्रता केवल कुछ लोगों के लिए गिफ्ट नहीं है। आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में 4 नवंबर को गिरफ्तार हुए अर्णब गोस्वामी को 11 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी थी। 

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में अर्णब गोस्वामी को मिली अंतरिम जमानत की मियाद को तब तक के लिए बढ़ा दिया है जब तक बॉम्बे हाई कोर्ट आत्महत्या के उकसाने के मामले में अर्णब और दो अन्य आरोपियों की मामले को खारिज करने की याचिका पर सुनवाई पूरी न कर ले। 

अर्णब की अंतरिम जमानत की मांग को बॉम्बे हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था लेकिन उनके ख़िलाफ़ दर्ज एफ़आईआर को रद्द करने की सुनवाई के लिए 10 दिसंबर की तारीख़ तय की थी। 

सुप्रीम कोर्ट ने अर्णब गोस्वामी को ये राहत भी दे दी है कि अगर हाई कोर्ट से फ़ैसला उनके ख़िलाफ़ आता है तो उन्हें 14 दिन का वक्त अपील के लिए मिलेगा और तब तक उनकी अंतरिम जमानत जारी रहेगी।

‘हाई कोर्ट ने की गलती’

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी.वाई. चन्द्रचूड़ ने अपने विस्तृत फ़ैसले में कहा, “आत्महत्या के उकसाने के जिस मामले में अर्णब गोस्वामी, फिरोज शेख़ और नीतीश शारदा की गिरफ्तारी की गयी थी, उसके प्रारम्भिक पहलुओं को बॉम्बे हाई कोर्ट ने नजरअंदाज कर दिया।” 

अन्वय नायक का मामला

मुम्बई के इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नायक और उनकी मां कुमुद नायक ने अर्णब गोस्वामी की कंपनी के लिए सिविल और इंटीरियर के लिए किए गये काम का भुगतान न होने के कारण आत्महत्या कर ली थी। अन्वय नायक आर्थिक तौर पर टूट चुके थे जिससे उन पर कर्जदारों का बोझ बढ़ता जा रहा था। 

सुप्रीम कोर्ट के सवाल 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अन्वय नायक की पत्नी की तरफ से दर्ज कराई गई एफ़आईआर में कहा गया है कि अर्णब और दो अन्य लोगों के भुगतान ना करने के चलते अन्वय और उनकी सास को आत्महत्या करनी पड़ी जबकि आत्महत्या के उकसाने के लिए ये ज़रूरी है कि उकसाने वाले का सीधा उकसावा पहली नज़र में दिखे, साथ ही ये भी पहली नज़र में दिखना चाहिए कि आत्महत्या के लिए उकसाने वालों ने पीड़ित को क्या आत्महत्या के लिए उकसाने, दबाव देने या परेशान करने के कोई कृत्य किए हैं या नहीं। 

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अन्वय की पत्नी और बेटी।

सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के उस फ़ैसले की भी जबरदस्त निंदा की जिसमें बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अति आवश्यक होने पर ही जमानत जैसे विषयों पर हाई कोर्ट को राहत देनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी.वाई. चन्द्रचूड़ ने अपने फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न आदेशों का जिक्र करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 226 और सीआरपीसी की धारा 482 में हाई कोर्ट को तर्कपूर्ण और संपूर्ण न्याय करने के लिए ये शक्तियां प्रदान की गई हैं लेकिन हाई कोर्ट ने अपनी शक्तियों का प्रयोग न करके मामले को पहली नजर में आपराधिक प्रक्रिया के अंतर्गत दी गयी कसौटियों पर न परख कर गलती की है। 

देखिए, अर्णब को जमानत मिलने पर चर्चा- 

आपराधिक मामलों में सालों-साल जेल में पड़े हुए आरोपियों और अदालतों में जमानत के मामलों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “उच्च न्यायालय, निचली अदालतों को राज्य द्वारा आपराधिक कानून का दुरुपयोग करने के ख़िलाफ़ जागरुक रहना चाहिए।” शीर्ष अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और जिला न्यायपालिका को नागरिकों के चयनात्मक उत्पीड़न के लिए आपराधिक कानून नहीं बनना चाहिए। 

अर्णब मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस अदालत के दरवाजे ऐसे नागरिकों के लिए बंद नहीं किए जा सकते हैं, जिसके ख़िलाफ़ प्रथम दृष्टया राज्य द्वारा अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने के संकेत हों।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये कोर्ट का दायित्व बनता है कि वो राज्यों को आपराधिक कानूनों का इस्तेमाल नागरिकों को परेशान करने या उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के हनन के लिए न करने दे। हाई कोर्ट और निचली अदालतें ये सुनिश्चित करें कि उनके यहां लंबित जमानत अर्जी पर जल्द फ़ैसला हो।

सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक दिन के लिए भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करना बहुत अधिक है। जमानत अर्जी से निपटने में देरी की संस्थागत समस्याओं को दूर करने के लिए अदालतों की ज़रूरत है। अदालत ने कहा कि अर्णब के खिलाफ मुंबई पुलिस द्वारा दर्ज एफ़आईआर और आत्महत्या के लिए अपमान के अपराध की सामग्री के बीच कोई संबंध नहीं दिख रहा है। ऐसे में अर्णब के खिलाफ आरोप साबित नहीं हो रहे हैं।

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अर्णब के पक्ष में उतरी थी बीजेपी।

निजी स्वतंत्रता का हवाला

11 नवंबर को सर्वोच्च अदालत ने गोस्वामी को अंतरिम जमानत देते हुए कहा था कि अगर उनकी निजी स्वतंत्रता को बाधित किया गया तो यह अन्याय होगा। तब जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस बात पर चिंता जताई थी कि राज्य सरकार कुछ लोगों को सिर्फ इस आधार पर कैसे निशाना बना सकती है कि वह उसके आदर्शों या राय से सहमत नहीं हैं।

उन्होंने कहा था कि वह इस मामले में वकीलों की राय बाद में लेंगे कि नागरिकों की आजादी की सुरक्षा किस तरह से हो। यह फ़ैसला सुनाते हुए तब सर्वोच्च अदालत ने इस मामले में दो अन्य आरोपियों नीतीश शारदा और फिरोज़ मुहम्मद शेख को भी पचास-पचास हजार रुपये के निजी मुचलके पर जमानत दे दी थी। 

जमानत देते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि अगर राज्य सरकारें लोगों को निशाना बनाती हैं तो उन्हें इस बात का अहसास होना चाहिए कि नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक सर्वोच्च अदालत है।

अर्णब ने नहीं किया था भुगतान

अन्वय नाइक ने अपने सुसाइट नोट में लिखा था कि अर्णब की कंपनी के लिए बनाये गये स्टूडियो के एवज में 83 लाख, जबकि कंपनी से ही जुड़े फिरोज़ शेख से 4 करोड़ और नीतीश शारदा से 55 लाख रुपये काम करने की एवज में लेने हैं जिसका भुगतान ये तीनों लोग नहीं कर रहे हैं। 5 मई, 2018 को तीनों के खिलाफ आईपीसी की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाने) और धारा 34 (एक इरादे से किया गया अपराध) के तहत एफ़आईआर दर्ज की गयी। 

बाद में इस मामले में कोर्ट में फाइनल रिपोर्ट दाखिल कर दी गयी जिसे 4 नवंबर, 2020 को दोबारा खोलकर अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी की गयी। बॉम्बे हाई कोर्ट ने अर्णब को 9 नवंबर को जमानत देने से इनकार कर दिया जिसके खिलाफ अर्णब और दो अन्य आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कोर्ट ने तीनों को अंतरिम जमानत दी।  

सुप्रीम कोर्ट ने बताये आंकड़े

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि निचली अदालत और हाई कोर्ट के लगातार जमानत याचिकाओं को न सुनने के कारण सुप्रीम कोर्ट में जमानत याचिकाओं पर सुनवाई के लिए लगातार दबाव बढ़ता जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड (एनडीएलजी) के मुताबिक़ जमानत के लंबित मामलों की संख्या भी बताई। 

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