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जनरल नरवणे की किताब के प्रकाशन पर ‘अघोषित’ रोक क्यों?

जनरल नरवणे की किताब के प्रकाशन पर ‘अघोषित’ रोक क्यों?

भारत में अभिव्यक्ति की आजादी का खतरा लगातार बढ़ रहा है। यह आपको यहां-वहां नजर नहीं आएगा। टीवी चैनल और अखबारों में भी नजर नहीं आएगा लेकिन जहां विवाद है, वहां नजर आएगा। देश के पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल एमएम नरवणे की किताब फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी अभी तक बाजार में नहीं आई है। इस पर अघोषित रोक है। वजह लद्दाख से जुड़ी हुई है। इस मुद्दे को समझिएः

सबको पता है कि सरकार ने मीडिया को पूरी तरह नियंत्रित कर रखा है और सरकार के खिलाफ खबरें नहीं छपती हैं। ऐसे में कुछ लोगों ने अपनी बात किताबों के जरिये बताई। उसमें भी लोगों को समस्या आई। कई लोगों ने किताबें खुद प्रकाशित कीं। कई लोगों को उनकी किताबों के लिए परेशान किया गया। आज के समय में किताब लिखने से मुश्किल है प्रकाशक ढूंढ़ना। इसके बावजूद कई अच्छी किताबें आई हैं। स्वप्रकाशित और नये अनजाने प्रकाशकों की भी। लेकिन हाल के समय में दो किताबें नहीं आने की खबर है। पहली किताब इसरो के प्रमुख एस सोमनाथ की है जो मलयालम में लिखी गई थी। इसका नाम है, निलवु कुडिचा सिमहंगल। बताया जाता है कि इसमें चंद्रयान दो की नाकामी से संबंधित कुछ चूक का जिक्र है।

कुछ समय पहले खबर आई थी कि लेखक ने इस पुस्तक को वापस ले लिया है। खबरों के अनुसार उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार ने उन्हें ऐसा करने के लिए नहीं कहा था। फिर भी किताब वापस लिये जाने का मतलब है, खासकर अपने विषय के कारण। अब पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल एमएम नरवणे की किताब चर्चा में है। जनरल नरवणे 30 अप्रैल 2022 को रिटायर हुए थे और उनकी किताब, फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी लगभग तैयार है। कुछ दिन पहले प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने उसकी समीक्षा की थी और इसके अंश के आधार पर खबरें भी की थीं। बाद में इंडियन एक्सप्रेस ने बताया कि सेना अपने पूर्व प्रमुख की किताब में लद्दाख की भिड़ंत के विवरण की समीक्षा कर रही है। प्रकाशक से कहा गया है कि वह समीक्षा पूर्ण होने तक किताब का विवरण साझा न करे। खबर के अनुसार, पूर्व सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने अपने संस्मरण में 31 अगस्त 2020को रक्षा मंत्री से हुई अपनी बातचीत का विवरण दिया है।

खबर के अनुसार, प्रकाशक से कहा गया है कि पुस्तक के अंश या उसकी सॉफ्ट कॉपी वह किसी से साझा न करे। संस्मरण में चीन से भिड़ंत के साथ-साथ अग्निवीर योजना की भी चर्चा है। अखबार ने लिखा है कि जनरल नरवणे ने इस खास सवाल का जवाब नहीं दिया कि आधिकारिक अनुमति ली गई थी या नहीं। उन्होंने यह भी नहीं बताया कि पुस्तक का लोकार्पण क्या इसी कारण रुका हुआ है। 

खबर के उपशीर्षक में नरवणे के हवाले से कहा गया है कि उन्होंने कई महीने पहले पांडुलिपि दी थी। द वायर की खबर के अनुसार जनरल नरवणे ने पुस्तक के लोकार्पण के बारे में प्रकाशक से पूछने का सुझाव दिया और प्रकाशक ने अभी जवाब नहीं दिया। ऐसे में अगर लोकार्पण से पहले सेना के पास समीक्षा के लिए रुकी हुई है तो सवाल उठता है कि वहां गई किसलिये?

यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि एक तरफ तो मीडिया नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा में कहीं से कुछ भी छाप सकता है, छाप रहा है पर सेना के रिटायर अधिकारी के संस्मरण को सेंसर किया जा रहा है। और कहने की जरूरत नहीं है कि करीब 500 रुपए की किताब इतनी बड़ी नहीं है कि उसे पढ़ने-समझने और फैसला करने में कई सौ साल लगेंगे। वैसे भी, रिटायर अधिकारी के संस्मरण से संबंधित नियमों का उल्लंघन हुआ है तो बताया जाना चाहिये। सेसंर का रिवाज ही नहीं है तो सेंसर क्यों और फिर भी किया जा रहा है तो आधिकारिक सूचना क्यों नहीं? जो भी हो अमैजन पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, अपने संस्मरण में, जनरल नरवणे ने उन विविध अनुभवों को याद किया है, जिन्होंने उनके बचपन से लेकर नौकरी और उसके बाद के वर्षों तक उनके चरित्र को आकार दिया।

इसमें सिक्किम में एक युवा अधिकारी के रूप में चीनियों के साथ पहली मुठभेड़ से लेकर गलवान में उनसे निपटने तक का वर्णन है जब वे सेना प्रमुख थे। नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी की दैनिक घटनाओं से लेकर पाकिस्तान के साथ युद्धविराम लागू करने तक, जनरल नरवणे हमें अपने चार दशक से अधिक के विशिष्ट करियर के बारे में बताते हैं। इस दौरान उन्होंने देश के हर कोने में सेवा की। यह हमारी सेना को अद्वितीय बनाने वाली चीजों पर एक विशेषज्ञ की राय है। ख़ासतौर से वो जो ऑपरेशन की योजना और उसके संचालन से संबंधित हैं। 

‘फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी’ में, जनरल नरवणे ने यह भी लिखा है कि सशस्त्र बलों को शक्तिशाली बनाने के लिए क्या कुछ और करने की आवश्यकता है ताकि वह इक्कीसवीं सदी की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहे। जनरल नरवणे का जीवन और करियर विपरीत परिस्थितियों से उबरने के लिए आवश्यक शक्ति और लचीलेपन का चित्रण करता है तथा परिवार और कार्य-जीवन संतुलन बनाए रखने के महत्व को दर्शाता है - कुछ ऐसा जो आज की 24x7 कार्य संस्कृति में कहीं खो सा गया है। कहने की जरूरत नहीं है कि जनरल नरवणे को यह सब बताने का अधिकार तो है ही, उनका कर्तव्य भी है।  

रिटायर अफसरों द्वारा किताबें लिखना कोई नई बात नहीं है। इंदिरा गांधी को गिरफ्तार करने वाले आईपीएस एनके सिंह की किताब  ‘द प्लेन ट्रुथ’ है तो चर्चित सीएजी, विनोद राय की ‘नॉट जस्ट एन अकाउंटैंट’ भी। पूर्व विदेश सचिव जेएन दीक्षित से लेकर पीएमओ में अधिकारी रहे जरनैल सिंह की किताब, ‘विद फोर प्राइम मिनिस्टर्स’ भी है। यही नहीं, राजदूत बीएम ओजा ने बोफर्स पर ‘द अम्बैसडर्स एवीडेंस’ के नाम से किताब लिखी थी। और बात इतनी ही नहीं है पुलवामा साजिश पर आईपीएस दनेश राणा की भी किताब है। बाकी सब किताबें तो रिटायर होने के बाद लिखी और प्रकाशित हुई हैं। 

पुलवामा पर किताब, ‘ऐज फार ऐज  सैफ्रॉन फील्ड्स’ सेवा में रहते हुए लिखी गई है और ऐसी कुछ दुर्लभ किताबों में है। कहने की जरूरत नहीं है कि पुलवामा पर सेवारत आईपीएस अफसर की किताब है पर राफेल पर मशहूर पत्रकार रवि राय और परंजय गुहा ठकुरता की किताब ‘फ्लाइंग लाईज’,  स्व प्रकाशित है। टीएन शेषन ने संजय हजारिका के साथ ‘द डीजेनरेशन ऑफ इंडिया’ नाम से किताब लिखी थी। ये कुछ किताबें हैं जो याद आई और इनसे आप समझ सकते हैं कि किताबों की दुनिया कितनी बदल गई है। 

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