पाक ने किया था अलर्ट, फिर भी भारत क्यों नहीं रोक पाया आतंकी हमला?
क्या भारतीय सुरक्षा एजेंसियों में आतंकवादी हमलों की पूर्व ख़ुफ़िया जानकारियों का सही विश्लेषण और संभावित हमले को रोकने के लिए समय रहते उचित कार्रवाई करने की क्षमता है? जम्मू-कश्मीर के अंवतिपोरा में हुए आतंकवादी हमले से ये सवाल फिर पूछा जाने लगा है। ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है कि बार-बार पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराने वाली भारतीय सुरक्षा एजेंसियाँ आतंकवाद रोकने में कितना सक्षम हैं?
यह सवाल भी उठता है कि पाकिस्तान ने भारत को अहम ख़ुफ़िया जानकारी क्यों दी? क्या आतंकवाद उसकी विदेश नीति का हिस्सा नहीं रहा, या क्या वह वाक़ई बदल रहा है और इमरान ख़ान के शब्दों में यह ‘नया पाकिस्तान’ है? क्या उस पर अमेरिका या चीन या किसी और देश का दबाव है? या जानकारी देकर पाकिस्तान ने अपने को इस बार किसी भी आरोप से मुक्त करने की कोशिश की है? क्या ऐसा इसलिए हुआ कि अब इस्लामाबाद कह सके कि वह आतंकवाद विरोधी कार्रवाइयों में भारत के साथ है? या यह किसी बड़ी साज़िश का हिस्सा?
विस्फोटक से भरी गाड़ी टकराई
दरअसल, जम्मू-कश्मीर के पुलवामा ज़िले में विस्फोटकों से भरी एक गाड़ी गश्त लगा रही सेना की गाड़ी से जा टकराई। इस धमाके में सेना के छह जवान और दो नागरिक बुरी तरह ज़ख़्मी हो गए। सेना के प्रवक्ता कर्नल राजेश कालिया ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि गाड़ी के ड्राइवर को ख़ास निगरानी में रखा गया है। दूसरे सैनिकों को कम चोटें आई हैं। ड्राइवर ने गाड़ी की रफ़्तार कम कर दी, जिस वजह से अपेक्षाकृत कम चोटें आई हैं, वर्ना अधिक नुक़सान हो सकता था। यह गश्ती गाड़ी 44 राष्ट्रीय राइफ़ल्स की थी जो अरहल गाँव जा रही थी।
यह ध्यान देने वाली बात है कि जिस जगह 14 फ़रवरी को आतंकवादी हमला हुआ था और सीआरपीएफ़ के 40 जवान मारे गए थे, वहाँ से 27 किलोमीटर दूर स्थित जगह पर इस बार हमला हुआ है और बिल्कुल उसी तरह से हुआ है। वैसे ही सेना की गाड़ी पर विस्फोटकों से लदी गाड़ी जा टकराई। इस बार कम घातक हमला था।
पाकिस्तान ने भी दी थी पूर्व सूचना
इस वारदात ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। इस हमले की पूर्व जानकारी अमेरिका ने भारत को दे दी थी। हैरानी की बात यह है कि पाकिस्तान ने भी भारत के उच्चायुक्त को बुला कर संभावित हमले की जानकारी दी थी और कहा था कि इम्प्रोवाइज्ड इक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) विस्फोटकों से लदी गाड़ी भारतीय सेना के किसी गाड़ी से टकराएगी। पाकिस्तान ने यही जानकारी अमेरिका को भी दी थी। अमेरिका ने भी यह जानकारी भारत तक पहुँचाई थी। इस तरह भारत को हमले की पूर्व जानकारी थी।
पाकिस्तान ने यह भी कहा था कि आतंकवादी ज़ाकिर मूसा की मौत का बदला लेने के लिए हमला कर सकते हैं। मूसा हिज़्बुल मुजाहिदीन में था, लेकिन जून 2017 में उससे अलग हो गया और उसने एक दूसरा आतंकवादी संगठन बना लिया था।
यह जानकारी उस पाकिस्तान ने दी थी, जहाँ से कश्मीर का आतंकवाद संचालित और नियंत्रित होता है। इसलिए बड़ा सवाल यह है कि इस जानकारी पर कितना भरोसा किया जाना चाहिए?
यह कहा जा सकता है कि हमले की ख़ुफ़िया जानकारी में समय और जगह की जानकारी नहीं थी। लेकिन सच यह है कि कहीं भी आतंकवादी हमले की बिल्कुल सटीक समय और जगह की पूर्व जानकारी हासिल करना लगभग नामुमकिन है। इसकी बड़ी वजह यह है कि ख़ुद हमलावर कई बार स्थान और समय बदल देते हैं। इसलिए यदि सटीक समय और जगह की जानकारी मिल जाए तो भी उसी जगह उसी समय हमला हो, इसकी गारंटी कोई नहीं दे सकता।
पुलवामा में बार-बार हमला क्यों?
लेकिन यह सुरक्षा बलों का काम है कि ख़ुफ़िया जानकारी का विश्लेषण करे और हमले को नाकाम करने की कोशिश करें। लेकिन हमला होने से यह साफ़ है कि वे यह नहीं समझ पाए कि यह हमला बिल्कुल किस जगह और कब होगा। पुलवामा पहले से ही सुरक्षा बलों के रेडार पर है। वह आतंकवादी तत्वों का गढ़ माना जाता रहा है। ऐसे में यह स्वाभाविक है कि पुलवामा में स्थानीय स्तर पर मज़बूत ख़ुफ़िया नेटवर्क होना चाहिए। पाकिस्तान से मिली जानकारी के आधार पर स्थानीय ख़ुफ़िया सूत्रों से विस्तृत जानकारी हासिल की जा सकती थी। यदि पुलवामा में भारतीय सुरक्षा बलों का ख़ुफ़िया नेटवर्क नहीं है, तो इसे एक बड़ी नाकामी कहा जा सकता है।
क्या ख़ुफ़िया ढाँचा कमज़ोर है?
सवाल यह उठता है कि पुलवामा वारदात के बाद बालाकोट में हवाई हमला करने वाली सरकार स्थानीय स्तर पर चीजें दुरुस्त क्यों नहीं कर पाई? ‘पाकिस्तान के अंदर घुस कर मारने’ का दावा करने वाली और उस आधार पर वोट माँगने वाली सरकार पुलवामा के आतंकवादियों के ठिकानों पर क्यों नहीं वार कर सकती, यह सवाल उठना लाज़मी है। पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेन्सी आईएसआई पर दोष मढ़ने वाली सरकार अपने यहाँ क्यों नहीं ख़ुफ़िया ढाँचा मज़बूत कर सकती है।
चुनाव हो चुके, बीजेपी उग्र राष्ट्रवाद का नारा उछाल कर सत्ता में लौट चुकी है। अब उसे आगे का काम करना चाहिए और हालिया पुलवामा हमले जैसी वारदात को रोकना चाहिए।