गर्व है..., पर टूट चुकी हूँ, अम्मा कहकर कौन बुलाएगा: संतोष बाबू की माँ
कर्नल संतोष बाबू के माता-पिता तेलंगाना में सूर्यापेट में रहते हैं। कर्नल बेटे को पत्नी और बच्चों संग सूर्यापेट लौटना था तो लॉकडाउन में ढील दिए जाने के बाद से तो माता-पिता को उनके जल्दी लौटने की काफ़ी उम्मीदें बढ़ गई थीं। उनको ऐसा लगता था कि संतोष बाबू कभी भी घर लौट सकते हैं। लेकिन दोनों को मंगलवार को उनकी एकलौती औलाद की शहादत की ख़बर मिली।
16 बिहार रेजिमेंट के कमांडिंग अफसर संतोष डेढ़ साल से लद्दाख में सेवारत थे। पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में सोमवार रात को चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प में भारतीय सेना के 20 सैनिक शहीद हो गए। इसमें संतोष बाबू भी शामिल थे। जैसे ही उनकी शहादत की ख़बर सूर्यापेट में पहुँची आसपास के लोगों की भीड़ लग गई।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के अनुसार, कर्नल संतोष के पिता बी उपेंद्र ने कहा, 'संतोषी और बच्चे दिल्ली से हैदराबाद शिफ्ट होने के लिए पैक कर रहे थे, और बच्चों ने बताया कि वे कितने उत्साहित थे कि हम क़रीब होंगे। हम सीमा पर तनाव के बारे में जानते थे, लेकिन कभी ऐसा नहीं सोचा था कि ऐसा होगा।' उन्होंने कहा कि वे उम्मीद कर रहे थे कि वह किसी भी दिन अपनी पत्नी संतोषी, बेटे और बेटी के साथ आ सकते हैं। उनकी पुत्रवधू दिल्ली में रहती हैं। उन्होंने ही मंगलवार को माता-पिता को दोपहर 2 बजे फ़ोन कर दुखद घटना के बारे में बताया था।
संतोष के माता-पिता ने कहा कि उन्हें गर्व है कि 'उन्होंने देश की रक्षा करते हुए अपने जीवन का बलिदान कर दिया'।
उनके पिता ने कहा, 'सेना के अधिकारियों ने हमें यह कहते हुए बुलाया कि उन्होंने देश की रक्षा में सर्वोच्च बलिदान दिया है। लेकिन व्यक्तिगत रूप से हम टूट चुके हैं और इस त्रासदी को नहीं झेल सकते।'
उनकी माँ मंजुला ने कहा, 'मुझे गर्व है कि मेरे बेटे ने हमारे देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया, लेकिन एक माँ के रूप में मैं तबाह हो गई हूँ। वह एक ऐसा व्यक्ति था जो किसी और को बचाने के लिए अपनी जान को ख़तरे में डालने से पहले नहीं सोचता था। वह बचपन से ही ऐसा था...। यह विश्वास करना मुश्किल है कि वह अब नहीं रहा; कि वह अपनी दनदनाती आवाज़ में फिर से 'अम्मा' कहकर नहीं पुकारेगा।'
'द इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, संतोष बाबू के पिता उपेंद्र ने कहा कि संतोष एक आदर्श पुत्र था, देखभाल करने वाला और उनके प्रति समर्पित था। उन्होंने कहा, 'जब भी वह छुट्टी पर आता था, वह अपना ज़्यादातर समय हमारे साथ बिताता था।'
रिपोर्ट के अनुसार, उनकी माँ ने कहा कि 'वह हमेशा सेना में शामिल होना चाहता था। उसने स्कूल में रहते हुए अपना मन बना लिया था।' 1993 से 2000 तक उन्होंने आर्मी जॉइन करने से पहले विशाखापत्तनम ज़िले के कोरुकोंडा के सैनिक स्कूल में पढ़ाई की।
उनके पिता उपेन्द्र ने 'एएनआई' से कहा, 'पहले तो हमें विश्वास ही नहीं हुआ, लेकिन बाद में ऊपर से हमें बताया गया कि क्या हुआ है। हमारे बेटे ने बहुत सी चुनौतियों का सामना किया।' उन्होंने बताया कि वो चाहते थे कि उनके बेटे आर्मी में जाएँ क्योंकि वो भी कभी सेना के जवान बनना चाहते थे। उन्होंने कहा, 'मैं चाहता था कि मेरा बेटा सेना में शामिल होकर देश की सेवा करे, जो मैं कभी नहीं कर सका। लेकिन मेरे रिश्तेदारों ने मेरे इस विचार का विरोध किया था।'
‘एनडीटीवी’ की रिपोर्ट के अनुसार, कर्नल संतोष बाबू ने झड़प से एक दिन पहले ही अपनी माँ से बात की थी। उनकी माँ ने अपने इकलौते बेटे के साथ हुई आख़िरी फ़ोन कॉल को याद करते हुए बताया कि कर्नल संतोष बाबू सीमा पर चल रहे विवाद को लेकर तनाव में थे। रिपोर्ट के अनुसार, कर्नल संतोष का हैदराबाद में ट्रांसफ़र होना था, लेकिन कोरोना वायरस लॉकडाउन की वजह से इसमें देरी हो रही थी।