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सरकार जब घबराती है तो जासूसी कराती है?

सरकार जब घबराती है तो जासूसी कराती है?

विपक्षी नेताओं के फोन पर एप्पल के थ्रेट अलर्ट से हंगामा मचा है। एप्पल ने अपना काम कर दिया, सरकार अपना काम कर रही है। ऐसे में विपक्ष को क्या करना चाहिए?

सबसे महंगा और सबसे ज़्यादा सुरक्षित आई-फोन एप्पल अगर आपको आपके फोन के हैक होने की चेतावनी दे तो चौंकने की कोई ज़रूरत नहीं है। क्योंकि हैकिंग कोई नई बात नहीं है। जिस देश में असुरक्षित, भ्रमित और भयभीत सरकार होती है वहां हैकिंग एक सामान्य सा अपराध है। ये अपराध तब भी भारत में होता था जब दुनिया में आईफोन का जन्म नहीं हुआ था। उस समय लैंडलाइन वाले फोन हुआ करते थे। आजकल भारत ऐसे ही देशों में सबसे आगे है जहाँ सरकार अपने आपको सबसे ज्यादा असुरक्षित महसूस कर रही है, इसलिए उसे अपने तमाम प्रतिद्वंद्वियों पर ही नहीं अपितु समाज के उन तमाम वर्गों से भी ख़तरा है जो सत्ता प्रतिष्ठान से सवाल कर सकते हैं, सत्ता प्रतिष्ठान को चुनौती दे सकते हैं।

संयोग कहें या दैवयोग की मेरे पास आई फोन नहीं है। 'एप्पल' का नाम मैंने सुना है, अपने तमाम मित्रों के हाथों में ही नहीं बाबाओं, बैरागियों, जेबकटों के हाथों में भी एप्पल का आई फोन देखा है। भारत में आज भी एप्पल का आई फोन प्रतिष्ठा का प्रतीक चिन्ह है। जिसके पास एप्पल का आई फोन है वो प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा ही ऐसी धारणा है, भले ही ये धारणा अब ग़लत भी साबित होती रहती है। 

आईफोन के ज़रिये प्रतिष्ठित होने की भारत में होड़ लगी हुई है। अब तो बैंकों और फाइनेंस कंपनियों ने किश्तों में ये प्रतिष्ठा खरीदने की सुविधा मुहैया करा दी है। अब प्रतिष्ठा हासिल करने के लिए आपको अपने क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ देने या करने की ज़रूरत नहीं है। आप केवल एक एप्पल का आईफोन खरीद लो, प्रतिष्ठा आपके घर हाथ बांधे चली आएगी। एप्पल फोन के ज़रिये ये प्रतिष्ठा भारत में ही हासिल की जाती है। अमेरिका में एप्प्लीय प्रतिष्ठा मारी-मारी फिरती है क्योंकि सड़कों पर भिक्षाटन करने वाले हाथों में भी एप्पल का आईफोन होता है। सफाई कर्मी के हाथों में होता है। मजदूर के हाथों में होता है यानी आप अमेरिका में एप्पल आई फोन के ज़रिये प्रतिष्ठा हासिल नहीं कर सकते। 

अमेरिका में प्रतिष्ठा हासिल करने के लिए आपके पास डॉलर ही डॉलर होना चाहिए। वहाँ बिना डॉलर सब सून है लेकिन भारत में बिना आईफोन सब सून है। सुनते हैं कि एप्पल वाले सबसे सुरक्षित आई फोन बनाते हैं। कहते हैं कि एप्पल आईफोन सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं करता है लेकिन 31 अक्टूबर को तड़के ही एप्पल के एक सावधान करने वाले संदेश ने एप्पल धारकों के बीच हड़कंप मचा दिया। सबसे ज़्यादा हंगामा विपक्ष के नेताओं ने किया। उनका खुला आरोप है कि सरकार विपक्ष की जासूसी करा रही है। यानी एप्पल धारक ही देश का सबसे बड़ा विपक्ष हो जैसे! कांग्रेस से लेकर आम आदमी पार्टी तक ने आरोप लगाए कि सरकार उनके फोन को हैक करवा रही है और ये आरोप उस अलर्ट के आधार पर लगाया जा रहा है जो खुद एप्पल ने भेजा है।

एप्पल ने अपना काम कर दिया, सरकार अपना काम कर रही है, ऐसे में विपक्ष को भी चाहिए कि अपना काम करे। सरकार पर जासूसी का आरोप लगाने के बजाय कुछ दिनों के लिए एप्पल के आईफोन को त्याग दे, उसे आराम करने दे। कुछ दिन बिना आईफोन के भी काम चलकर देख ले। सब कुछ मुमकिन है। कोई आईफोन के बिना ही तो दिल स्पंदित नहीं होता? साँसें बिना एप्पल के आईफोन के भी आ-जा सकती हैं। 

और फिर सरकार आईफोन के ज़रिये जासूसी कौन अकेले विपक्ष की करा रही होगी, अपने पक्ष के लोगों को भी उसने बख्शा नहीं होगा क्योंकि सरकार सबका साथ देने वाली और सबको साथ लेकर चलने वाली सरकार है!

एप्पल के अलर्ट के बाद टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा, शिवसेना यूबीटी की प्रियंका चतुर्वेदी, एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी और कांग्रेस के दिग्गज नेता शशि थरूर तक समवेत स्वर में चिल्ला रहे हैं कि उनके फोन को हैक किया जा रहा है। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी तो जब प्रेस कॉन्फ्रेंस करने आए तो बाकायदा बड़े-बड़े फॉन्ट में प्रिंट आउट छपवाकर आए थे ताकि मीडिया को दिखा सकें कि एप्पल ने अपने अलर्ट में क्या भेजा है?

पिछले छह महीने से आग में झुलस रहे मणिपुर को लेकर सरकार संसद के विशेष सत्र में भी मौन रही थी किन्तु एप्पल के अलर्ट और विपक्ष के आरोपों के बाद बोलने में सरकार ने एक पल भी नहीं लगाया। यानी हमारी तत्पर सरकार ने कह दिया कि अगर परेशानी है तो नेताओं को एफ़आईआर करवानी चाहिए। राहुल गांधी ने कहा कि हम डरेंगे नहीं लड़ेंगे, मेरा फोन चाहिए तो ले लो। इस पर भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि पेगासस का आरोप लगाया था, फोन मांगा जांच के लिए तो मना कर दिया था। हम सब जानते हैं कि हमारे यहां एफआईआर करने या न करने से कुछ नहीं होता। होता वही है जो मंजूरे सत्ता होता है। इसलिए एफआईआर करने से बेहतर है कि विपक्ष और दूसरे आईफोन धारक देश के पांच राज्यों में हो रहे चुनावों पर ध्यान दें। यदि मतदाता सही निर्णय करना सीख लें तो उनके आईफोन की सुरक्षा अपने आप हो जाएगी। मेरी अपनी धारणा है कि इस समय सरकार के पास किसी की जासूसी करने की फुरसत होगी ही नहीं। सरकार तो अभी मनी लाउंड्रिंग करने वालों के पीछे पड़ी है। आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो के पीछे पड़ी है। महुआ के पीछे पड़ी है। हमास के पीछे पड़ी है। हमास पर राजस्थान की जमीन से हमले कर रही है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बस नहीं चल रहा अन्यथा वे अपना बुलडोजर लेकर गजा पट्टी पहुँच जाते।

चारों ओर से घिरी सरकार को किसी की जासूसी करने की क्या पड़ी? सरकार बिना ये सब किये धरे भी किसी को धर सकती है। जासूसी करने से ज्यादा आसान काम धर-पकड़ करना है। लेकिन मणिपुर पर ये फॉर्मूला लागू नहीं होता। आप कल्पना कीजिये कि जो सरकार दिल्ली की खराब आबोहवा को ठीक नहीं करा पा रही, जो सरकार प्याज के दाम कम नहीं कर पा रही वो सरकार आपकी जासूसी कैसे करा सकती है?

भारत में आईफोन धारकों की संख्या कोई 6 मिलियन के आसपास है। ये फोन 80 हजार से लेकर दो-ढाई लाख तक का आता है। हमारी राज्य सरकारें तो आजकल अपनी लाड़ली बेटियों तक को सस्ते आईफोन गिफ्ट कर रही हैं। सरकारों का इरादा लाड़ली बेटियों की जासूसी करने का तो होगा नहीं। बहरहाल हम बेफिक्र हैं, क्योंकि हमारे पास किसी भी प्रजाति का कोई आईफोन नहीं है। जो ऐंड्रोइड फोन है वो भी ठुमक ठुमक कर चलता है। उस बेचारे की उम्र भी हो चुकी है। अब सरकार इस बूढ़े फोन में भी घुसकर जासूसी करना चाहे तो मुझे कोई उज्र नहीं क्योंकि सरकार आखिर है तो अपने ही मोदी जी की! 

(राकेश अचल के फ़ेसबुक पेज से)

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