कश्मीर में प्रेस की आज़ादी पर न्यूयॉर्क टाइम्स का लेख प्रोपेगेंडा: केंद्रीय मंत्री
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने शुक्रवार को कश्मीर में प्रेस की स्वतंत्रता पर एक लेख को लेकर न्यूयॉर्क टाइम्स की आलोचना की। उन्होंने कहा कि अखबार ने भारत के बारे में कुछ भी प्रकाशित करते समय 'तटस्थता के सभी ढोंग भी त्याग दिए'।
अनुराग ठाकुर ने न्यूयॉर्क टाइम्स पर भारत के बारे में झूठ फैलाने का आरोप लगाया, कश्मीर में प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रकाशित लेख को शरारती और काल्पनिक बताया। उन्होंने ट्वीट किया, 'न्यूयॉर्क टाइम्स ने भारत के बारे में कुछ भी प्रकाशित करते समय तटस्थता के सभी ढोंगों को भी बहुत पहले छोड़ दिया था। कश्मीर में प्रेस की स्वतंत्रता पर न्यूयॉर्क टाइम्स का तथाकथित लेख शरारती और काल्पनिक है, जिसे भारत और उसके लोकतांत्रिक संस्थानों के बारे में प्रोपेगेंडा करने के एकमात्र उद्देश्य से प्रकाशित किया गया है।'
…and its democratic institutions and values.
— Anurag Thakur (@ianuragthakur) March 10, 2023
This is in continuation with what NYT and a few other link-minded foreign media have been spreading lies about India and our democratically elected Prime Minister Shri Narendra Modiji.
Such lies can't last long.
केंद्रीय मंत्री ने एक अन्य ट्वीट में कहा है कि न्यूयॉर्क टाइम्स और कुछ अन्य ऐसे ही विदेशी मीडिया भारत और हमारे लोकतांत्रिक रूप से चुने गए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी के बारे में झूठ फैला रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा झूठ लंबे समय तक नहीं चल सकता है।
उन्होंने कहा कि भारत में प्रेस की स्वतंत्रता अन्य मौलिक अधिकारों की तरह ही पवित्र है। मंत्री ने कहा, 'भारत में लोकतंत्र और हम लोग बहुत परिपक्व हैं और हमें इस तरह के एजेंडे से चलने वाले मीडिया से लोकतंत्र के व्याकरण को सीखने की जरूरत नहीं है।' उन्होंने कहा कि भारतीय ऐसी मानसिकता को भारत की धरती पर अपने निर्णायक एजेंडे को नहीं चलाने देंगे।
अनुराग ठाकुर का यह बयान 'द कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन के एक लेख पर आया है। भसीन का 'मोदीज फाइनल असॉल्ट ऑन इंडिया प्रेस फ्रीडम हैज बिगन' शीर्षक से लेख न्यूयॉर्क टाइम्स में छपा है। इस लेख में उन्होंने कहा है कि जम्मू कश्मीर और भारत में मीडिया की स्वतंत्रता पर 'पाबंदियाँ' लगा दी गई हैं।
भसीन ने 2019 में जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को ख़त्म करने और उस दौरान इंटरनेट पर पाबंदी लगाए जाने का ज़िक्र करते हुए कहा है कि तब पत्रकारों के लिए अख़बारों के लिए समाचार भेजना भी मुश्किल हो गया था।
उन्होंने आगे लिखा है, "अगले साल नए नियम पेश किए गए जो अधिकारियों को कश्मीर में मीडिया सामग्री को 'फर्जी समाचार, साहित्यिक चोरी और अनैतिक या राष्ट्र-विरोधी' के रूप में लेबल करने और पत्रकारों व प्रकाशनों को दंडित करने का अधिकार देते थे। विडंबना देखिए कि नियमों में कहा गया- लक्ष्य 'पत्रकारिता के उच्चतम स्तर को बढ़ावा देना' था।"
भसीन ने लेख में लिखा है, 'पत्रकारों को नियमित रूप से पुलिस द्वारा बुलाया जाता है, पूछताछ की जाती है और आयकर उल्लंघन या आतंकवाद या अलगाववाद जैसे आरोपों से धमकाया जाता है। कई प्रमुख पत्रकारों को हिरासत में लिया गया है या जेल की सजा सुनाई गई है।' उन्होंने यह भी लिखा है, 'कई पत्रकारों ने खुद को सेंसर कर लिया है या यूं ही छोड़ दिया है। गिरफ्तारी के डर से कुछ विदेशों में निर्वासन में भाग गए हैं। भारत सरकार ने कम से कम 20 अन्य लोगों को देश छोड़ने से रोकने के लिए नो-फ्लाई सूची में डाल दिया है।'
उन्होंने अपने अख़बार का ज़िक्र करते हुए लिखा है, 'मेरा अपना अखबार मुश्किल से ही चल है। 2019 में, मैंने इंटरनेट शटडाउन को चुनौती देते हुए मुकदमा दायर किया। साफ़ तौर पर प्रतिशोध में सरकार ने हमारे श्रीनगर कार्यालय को सील कर दिया। हमारे बहुत से पत्रकार जा चुके हैं और हमारे कामकाज ठप्प हो गए हैं। आज, जब मैं सुझाव देती हूं कि हम सार्वजनिक मुद्दों पर आक्रामक रूप से रिपोर्ट करते हैं, तो मुझे अपने चिंतित व गिने-चुने कर्मचारियों से प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है।'