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नफ़रती नारों के मामले में अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ FIR क्यों?

नफ़रती नारों के मामले में अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ FIR क्यों?

देश की संसद से कुछ दूरी पर ही मुसलमानों के ख़िलाफ़ जो नारे लगे हैं, उससे सारी दुनिया में इस संवैधानिक मुल्क़ की बदनामी हुई है।

देश की संसद से कुछ दूरी पर ही मुसलमानों के ख़िलाफ़ जो नारे लगे हैं, उससे सारी दुनिया में इस संवैधानिक मुल्क़ की बदनामी हुई है। बीजेपी के नेता अश्विनी उपाध्याय की ओर से आयोजित कार्यक्रम में मुसलमानों के नरसंहार की बात कही गयी। लेकिन सवाल सबसे पहले खड़ा हो रहा है दिल्ली पुलिस पर कि जब ये लोग नारेबाज़ी कर रहे थे तो वह कहां थी। 

मज़हबी नफ़रत में अंधे और वहशी हो चुके इन लोगों के इस कुकृत्य के लिए दिल्ली पुलिस भी जिम्मेदार है। दोनों को ही लोग ट्विटर पर लानतें भेज रहे हैं। 

यह पहली बार नहीं है जब दिल्ली पुलिस को लेकर हज़ार सवाल उठे हों। शाहीन बाग़ में गोली चलाने के लिए आया गोपाल जो ख़ुद को रामभक्त बताता है, उसके पीछे दिल्ली पुलिस आराम से खड़ी थी और वह तमंचा लेकर मजे से वहां घूम रहा था। इसके बाद कपिल गुर्जर नाम का शख़्स शाहीन बाग़ में पहुंच गया था और उसने वहां गोली चला दी थी। लेकिन पुलिस ने उसे गोली चलाने के बाद पकड़ा था। 

दिल्ली दंगे, जामिया में लाठीचार्ज, जेएनयू में छात्रों-टीचर्स की पिटाई, जैसे कई मामले हैं जिनमें पुलिस को अदालत की फटकार लगी और विश्वसनीयता जैसा क़ीमती शब्द अब राजधानी की पुलिस के लिए फिट नहीं होता।

एक्टिविस्ट साकेत गोखले ट्विटर पर लिखते हैं कि दिल्ली पुलिस पेगासस जासूसी मामले की स्टोरी आते ही तुरंत द वायर के दफ़्तर पहुंच गई और पूछने पर इसे सुरक्षा जांच का मामला बताया था। उन्होंने सवाल पूछा है कि जंतर-मंतर पर इकट्ठा हुई ये हत्यारी भीड़ क्या सुरक्षा के लिए ख़तरा नहीं है। 

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गृह मंत्रालय पर सवाल 

दिल्ली की पुलिस केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन आती है। इस मंत्रालय के मुखिया अमित शाह हैं। गृह मंत्री को समझना चाहिए कि ये युग सोशल मीडिया का है। इस मामले में अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करके पुलिस कितना ग़लत काम कर रही है। उन करोड़ों लोगों को जिनके ख़िलाफ़ ये नारे लगे हैं और वे करोड़ों लोग जो इन चंद लोगों की जाहिलियत और कुकृत्य के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद कर रहे हैं, उनकी नज़रों से क्या पुलिस ख़ुद को बचा पाएगी। पुलिस का क्या इक़बाल रह जाएगा। 

उज्जवल शर्मा नाम के ट्विटर यूजर इस घटना का वीडियो शेयर करते हुए तंज कसते हैं कि अज्ञात लोग इन नारों को लगा रहे हैं। 

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हसन ख़ान नाम के ट्विटर यूजर लिखते हैं कि पुलिस क्या इस मामले में नारे लगाने वालों को उनके कपड़ों से नहीं पहचान सकी, जो उसने अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की है। हसन की बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान पर तंज है जिसमें मोदी ने सीएए क़ानून का विरोध कर रहे लोगों के बारे में कहा था कि कपड़ों से ही ऐसे लोगों की पहचान हो जाती है। 

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दिल्ली पुलिस को थोड़ी तो शर्म रखनी चाहिए, जिन लोगों ने ये शर्मनाक नारे लगाए हैं, उनके वीडियो-फ़ोटो सोशल मीडिया पर तैर रहे हैं और पुलिस एफ़आईआर दर्ज कर रही है अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़। ऐसा तभी हो सकता है जब ऊपर से जबरदस्त दबाव हो या आंख का पानी ही मर गया हो। 

बहुत सारे ट्विटर यूजर्स ने सवाल उठाया है कि जेएनयू में छात्र-टीचर्स की पिटाई से लेकर कई मामलों में दिल्ली पुलिस लोगों की पहचान करने में फ़ेल रही है। जेएनयू में हुई हिंसा में शामिल अभियुक्तों की फ़ोटो सामने आई थीं, लेकिन बावजूद इसके डेढ़ साल बाद भी दिल्ली पुलिस किसी को गिरफ़्तार नहीं कर सकी है। 

अंत में यही कहा जाना चाहिए कि दिल्ली पुलिस अपने गिरेबां में झांके। पुलिस की वर्दी पहनते वक़्त जनता की सुरक्षा की जो शपथ ली है, उसे याद करे। वरना जिस तरह ऐसे दंगाइयों को लगातार खुल्ला घूमने की, मनमर्जी करने की आज़ादी दी जा रही है, उससे साफ है कि राजधानी के साथ ही देश भर में सांप्रदायिक माहौल ख़राब होगा और पूरी दुनिया में भारत और भारतीयों की इज्जत नीलाम होगी। 

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