सीएए की पहली बरसी पर पूर्वोत्तर में फिर आंदोलन
एक ओर मोदी सरकार पश्चिम बंगाल के चुनाव में वोटों की फसल काटने के लिए जनवरी से नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) लागू करने की बात कर रही है, दूसरी ओर असम सहित पूर्वोत्तर के कई राज्यों में इसके खिलाफ फिर से आंदोलन शुरू हो गया है। पिछले साल नवंबर महीने से ज़ोर-शोर से चल रहा यह आंदोलन इस साल फरवरी में कोरोना के प्रकोप के चलते स्थगित हो गया था।
सीएए के आंदोलन का एक वर्ष पूरा होने पर शुक्रवार को अखिल असम छात्र संघ (आसू), उत्तर पूर्व छात्र संगठन (नेसो), कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस) और असम जातीयतावादी युवा छात्र परिषद (अजायुछाप) सहित कई संगठनों की अगुवाई में इस विवादास्पद कानून के खिलाफ असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में विरोध प्रदर्शन हुआ और इसे निरस्त करने की मांग की गई।
सीएए की पहली वर्षगांठ को नेसो द्वारा पूर्वोत्तर क्षेत्र में 'ब्लैक डे' के रूप में मनाया गया। क्षेत्र के छात्र संगठनों ने मोदी सरकार को चेतावनी दी कि इस क़ानून के खिलाफ पूरा पूर्वोत्तर एकजुट है और इन राज्यों में सीएए लागू करने के किसी भी प्रयास का कड़ा विरोध किया जाएगा।
प्रदर्शनकारियों ने सीएए के खिलाफ काले झंडे दिखाए और नारेबाजी करते हुए इसे निरस्त करने की मांग की। उन्होंने इसे असंवैधानिक, सांप्रदायिक और पूर्वोत्तर-विरोधी करार दिया।
पूर्वोत्तर राज्यों में कई संगठनों द्वारा विरोध और असम में आसू द्वारा शुरू किए गए आंदोलनों की श्रृंखला के बीच बीते साल 9 दिसंबर, 2019 को इसके विधेयक को लोकसभा के शीतकालीन सत्र में पेश किया गया था। 10 दिसंबर को यह लोकसभा में और 11 दिसंबर, 2019 को राज्य सभा में यह पास हुआ था। 12 दिसंबर को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने हस्ताक्षर कर इसे क़ानून की शक्ल दी थी।
10 दिसंबर, 2019 को नेसो ने इसके विधेयक के खिलाफ एकजुट होकर लड़ाई लड़ने के लिए पूर्वोत्तर बंद का आह्वान किया था। संसद में विधेयक पारित होने के बाद असम और पूर्वोत्तर के विभिन्न हिस्सों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया था।
‘पूर्वोत्तर को बंटने नहीं देंगे’
नेसो के अध्यक्ष सैमुअल जिरवा ने कहा, “मोदी सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों के इनर लाइन परमिट (आईएलपी) और छठी अनुसूची क्षेत्रों वाले राज्यों को सीएए से बाहर रखने की बात कहते हुए पूर्वोत्तर राज्यों के विरोध के दौरान हमें विभाजित करने की कोशिश की। हालाँकि बाद के दिनों में पूर्वोत्तर के लोगों ने दिखा दिया कि पूर्वोत्तर को विभाजित करने का कोई भी प्रयास सफल नहीं होगा।”
जिरवा ने कहा कि हालांकि कोरोना महामारी और उसके बाद के लॉकडाउन ने कुछ हद तक सीएए विरोधी आंदोलन को प्रभावित किया, लेकिन अब फिर से आंदोलन को शुरू किया गया है और जब तक इस कानून को रद्द नहीं किया जाता है, तब तक हम रुकेंगे नहीं।
नेसो के आह्वान पर आसू, ऑल अरुणाचल प्रदेश स्टूडेंट्स यूनियन, कार्बी स्टूडेंट्स यूनियन, गारो स्टूडेंट्स यूनियन, नगा स्टूडेंट्स फेडरेशन, मिजो जिरलाई पावल, ट्विप्रा स्टूडेंट्स फेडरेशन और ऑल मणिपुर स्टूडेंट्स यूनियन ने अपने-अपने राज्यों में काला दिवस मनाया।
नेसो के सलाहकार डॉ. समुज्जल कुमार भट्टाचार्य ने कहा कि संसद में किसी भी कानून को पास करने के लिए केंद्र सरकार के पास उसके पक्ष में संख्या बल है लेकिन पूर्वोत्तर के लोग धर्म के आधार पर नागरिकता देने वाले इस कानून को हरगिज स्वीकार नहीं करेंगे।
सीएए आंदोलन पर देखिए वीडियो-
18 अन्य स्थानीय संगठनों के साथ केएमएसएस ने इस मुद्दे पर शुक्रवार को शिवसागर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया और जेल में बंद केएमएसएस नेता अखिल गोगोई को रिहा करने की भी मांग की। गोगोई की रिहाई के लिए मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल को एक ज्ञापन भी सौंपा गया।
केएमएसएस के महासचिव धीरज कोंवर ने कहा, “केएमएसएस और 18 अन्य संगठनों द्वारा सीएए विरोधी आंदोलन का दूसरा चरण शुरू किया गया है और यह तब तक जारी रहेगा जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं होती हैं। आज के विरोध में व्यापक जन भागीदारी देखी गई।”
दूसरी ओर, अजायुछाप ने पूरे राज्य में सीएए विरोधी जुलूस निकाले। अजायुछाप, जिसने सीएए के क़ानून बनने के बाद इसके विरोध में एक प्रमुख भूमिका निभाई है और असम के लिए आईएलपी प्रावधान के लिए भी लड़ रहा है, ने कहा कि जब तक इस क़ानून को निरस्त नहीं किया जाता है तब तक जन आंदोलन जारी रहेगा।
रैलियों को संबोधित करते हुए तमाम संगठनों के नेताओं ने कहा, “असम की जनता पर सीएए थोपने की नापाक कोशिश करने वाली बीजेपी को विधानसभा चुनावों में सही जवाब दिया जाएगा।”
वीर लाचित सेना के नेता शृंखल चालिहा ने शिवसागर में एक विशाल रैली को संबोधित करते हुए कहा कि वे सीएए को कभी स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि केएमएसएस प्रमुख अखिल गोगोई शिवसागर निर्वाचन क्षेत्र से आगामी विधानसभा चुनाव लड़ेंगे।
नजदीक हैं विधानसभा चुनाव
अगले साल मार्च-अप्रैल में राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं। आसू, जिसने छह साल तक विदेशियों के खिलाफ असम आंदोलन (1979-1985) का नेतृत्व किया था, ने सीएए के खिलाफ 'रणहुंकार' अभियान की शुरुआत की है।
आसू अध्यक्ष दीपांक कुमार नाथ और महासचिव शंकर ज्योति बरुवा ने एक बयान में कहा कि “सरकार को इस असम विरोधी कानून को निरस्त करना होगा जिसके खिलाफ पाँच असमिया नागरिकों ने अपने प्राणों की आहूति दे दी। मृतकों में निर्दोष छात्र भी शामिल हैं और अभी तक उनके परिवार को न्याय नहीं मिला है।”