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झारखंड : हेमंत सोरेन के शपथ ग्रहण समारोह के बहाने विपक्ष का शक्ति प्रदर्शन

झारखंड : हेमंत सोरेन के शपथ ग्रहण समारोह के बहाने विपक्ष का शक्ति प्रदर्शन

झारखंड में मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह के बहाने पूरा विपक्ष एकजुट हो रहा है और शक्ति प्रदर्शन करने जा रहा है।

हेमंत सोरेन का शपथ ग्रहण समारोह विपक्षी दलों के शक्ति प्रदर्शन का अच्छा मौका बनने जा रहा है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हेमंत सोरेन रविवार को झारखंड की राजधानी राँची के मोराबादी मैदान में मुख्यमंत्री पद और गोपनीयता की शपथ लेंगे। वे राज्य के 11वें मुख्यमंत्री होंगे। सोरेन इसके पहले उप मुख्यमंत्री रह चुके हैं। 

राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू उन्हें शपथ दिलाएंगी। इसकी पूरी संभावना है कि सोरेन के साथ राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष रामेश्वर ओराँव और झामुमो के स्टीफ़न मरांडी भी शपथ लें। 

विपक्षी एकजुटता

शपथ ग्रहण का राजनीतिक महत्व यह है कि इस बहाने लगभग पूरा विपक्ष एकजुट होने जा रहा है। इस समारोह में पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और राजस्थान के अशोक गहलोत भी मौजूद रहेंगे।

इसके अलावा शिवसेना के नेता और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भी समारोह में मौजूद रहेंगे। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी वहां होंगे। डीएमके नेता एम. के. स्टालिन और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता की ओर से कन्हैया कुमार भी समारोह में भाग लेंगे।

कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, डीएमके और सीपीआई के प्रतिनिधि झामुमो नेता के शपथ ग्रहण समारोह में मौजूद रहेंगे। राष्ट्रीय जनता दल तो सरकार में भी शामिल होंगे, उसके नेता तो होंगे ही। बीजेपी-विरोधी दलों का यह एक बड़ा जमावड़ा होगा।

केंद्र की नीतियों के ख़िलाफ़

यह शपथ ग्रहण समारोह साधारण ही होगा, पर यह विपक्षी एकता के प्रतीक के रूप में उभरेगा। यह संकेत जाएगा कि बीजेपी विरोधी दल एक मंच पर जमा हो रहे हैं या हो सकते हैं। यह ऐसे समय हो रहा है, जब तमाम विपक्षी दल अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र में केंद्र सरकार की जनविरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ मुखर हैं और वे उसका विरोध कर रहे हैं।

बीजेपी विरोध की यह एकजुटता इस रूप में भी दिख रही है कि नागरिकता संशोधन क़ानून, नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस और नेशनल पोपुलेशन रजिस्टर का विरोध ये सभी दल कर रहे हैं और उनके कार्यकर्ता सड़कों पर हैं।

ये पार्टियाँ जहाँ-जहाँ सरकार में हैं, सरकारें खुल कर सामने आ रही हैं और इन प्रावधानों को लागू नहीं करने की बात कह रही हैं।

सड़क पर मुख्यमंत्री

तृणमूल की नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ख़ुद सड़कों पर उतर आई हैं। वह नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ लगभग रोज ही कहीं न कहीं रैली निकालती हैं, पदयात्रा करती हैं या जनसभा करती हैं, जिनमें लोग बड़ी तादाद में भाग ले रहे हैं।

ममता बनर्जी ने कह दिया है वे किसी सूरत में नागरिकता संशोधन क़ानून लागू नहीं करेंगी। उन्होंने एनपीआर का काम रोक दिया है। उन्होंने कह दिया है कि उनकी सरकार राज्य में कहीं भी डिटेंशन सेंटर नहीं बनवाएंगी।

सरकारी संस्था पश्चिम बंगाल हाउसिंग इनफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ने विज्ञापन जारी कर कहा है कि उसने डिटेंशन सेंटर के लिए ज़मीन का अधिग्रहण नहीं किया है।

मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और दिल्ली की सरकारों ने भी कह दिया है कि वे अपने यहाँ नागरिकता संशोधन क़ानून लागू नहीं करेंगी। नौ राज्यों ने एलान कर दिया है कि वे नागरिकता क़ानून लागू नहीं करेंगी।

नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ आन्दोलन जन आन्दोलन बनता जा रहा है, जिसकी शुरुआत जनता, ख़ास कर छात्रों ने की, राजनीतिक दल दूर रहे।  पर अब कांग्रेस मुखर हो रही है। 

लेकिन यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि सभी विपक्षी दल एकजुट हो ही जाएंगे और बीजेपी को कोई बड़ी चुनौती देंगे। पिछले लोकसभा चुनाव में विपक्ष पूरी तरह बिखरा हुआ था और बीजेपी के ख़िलाफ़ एकजुटता की कोई कोशिश ही नहीं हुई। इसलिए राँची के इस कार्यक्रम में दिखने वाली एकजुटता कितनी प्रतीकात्मक होगी और कितनी व्यवहारिक, यह बाद में ही पता चलेगा। 

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