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अपने फ़ायदे के लिए सुशांत की 'आत्महत्या' को 'हत्या' बताते रहे मीडिया-नेता: अध्ययन

अपने फ़ायदे के लिए सुशांत की 'आत्महत्या' को 'हत्या' बताते रहे मीडिया-नेता: अध्ययन

सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में एक अध्ययन हुआ है कि आख़िर इस मुद्दे को 'हत्या' के रूप में पेश क्यों किया गया। यह अध्ययन मिशिगन यूनिवर्सिटी में एक एसोसिएट प्रोफ़ेसर के नेतृत्व में अध्ययनकर्ताओं की एक टीम ने किया है।

कहते हैं कि मीडिया वही दिखाता है जो लोग देखना चाहते हैं और जनप्रतिनिधि वही काम करते हैं जो उनके लिए 'वोटबैंक' तैयार करता है। इस चक्कर में कई बार वे समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी से मुँह मोड़ लेते हैं। यही सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में हुआ। आत्महत्या को हत्या के रूप में पेश करने की कोशिश की गई। यह कोई हवा हवाई बातें नहीं हैं, बल्कि इस पर एक अध्ययन हुआ है कि आख़िर इस मुद्दे को 'हत्या' के रूप में पेश क्यों किया गया। यह अध्ययन मिशिगन यूनिवर्सिटी में एक एसोसिएट प्रोफ़ेसर के नेतृत्व में अध्ययनकर्ताओं की एक टीम ने किया है। अध्ययन में पता चला है कि जो कंटेंट बिल्कुल निराधार हत्या की साज़िश को उछाल रहे थे, उन्हें आत्महत्या के कंटेंट से कहीं ज़्यादा लोगों ने देखा।

सुशांत सिंह राजपूत पर 14 जून से 12 सितंबर 2020 के बीच सोशल मीडिया की सामग्री का अध्ययन किया गया है। इसमें मुख्य तौर पर ट्वीट, यूट्यूब वीडियोज और ट्रेंड शामिल हैं। इसमें ग़लत सूचनाओं को अधिक ट्रैक्शन मिला यानी अधिक लोगों ने उन्हें हाथोंहाथ लिया। इस रिपोर्ट का शीर्षक है- 'Anatomy of a Rumors: Social Media and Suicide of Sushant Singh Rajput' यानी 'अफवाहों की संरचना: सोशल मीडिया और सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या'। 

अध्ययन में कहा गया है कि कोरोना लॉकडाउन के बीच भारतीय अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की 'आत्महत्या' ने कई महीनों तक चलने वाले प्राइम टाइम कवरेज के मीडिया उन्माद को भड़काया। रिपोर्ट में कहा गया है कि दो महत्वपूर्ण पैटर्न मिले। पहला, ट्विटर पर रीट्वीट रेट स्पष्ट रूप से बताते हैं कि कमेंट करने वालों ने इस मामले के बारे में बात कर इससे लाभ उठाया। इसमें मीडिया हाउस आगे रहे। दूसरा, राजनेता मामले को 'आत्महत्या' के बजाय 'हत्या' के रूप में पेश कर इसे अलग मोड़ देने में सहायक बने। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस पूरे मामले को कुछ राजनेताओं, पत्रकारों और मीडिया हाउस ने अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल किया हो सकता है। इसमें साफ़ तौर पर कहा गया है कि इसके लिए ग़लत सूचनाओं का सहारा लिया गया। 

ग़लत सूचनाओं का ज़िक्र शायद इसलिए किया गया क्योंकि अधिकतर मीडिया रिपोर्टों या फिर नेताओं के बयानों में सुशांत की मौत को हत्या बताने के पीछे कोई पुष्ट बात नहीं कही जा रही थी। अधिकतर बार तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा गया। यह बात एम्स की रिपोर्ट और सीबीआई के बयान से भी ज़ाहिर होती है। 

सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में अब सीबीआई की रिपोर्ट भी आत्महत्या की ओर ही इशारा कर रही है। एम्स ने हाल ही में मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर कहा है कि सुशांत ने आत्महत्या की थी।

एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अब सीबीआई की जाँच में भी कुछ ऐसे तथ्य आए हैं। सुशांत की मौत के सीन को रिक्रिएट किया गया यानी उस घटना को उसी तरह से पेश कर पड़ताल की गई। लेकिन इसमें भी कोई गड़बड़ी नहीं मिली। सुशांत के बैंक खाते के ऑडिट में भी कोई ऐसी गड़बड़ी नहीं पाई गई है जिससे कुछ संदेह पैदा हो। पहले भी इन आरोपों की जाँच प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने की थी और उसे सुशांत के पिता के के सिंह के आरोप सही नहीं लगे। सुशांत के बैंक खाते से इतने रुपये रिया को ट्रांसफ़र किए जाने का ईडी को कोई भी सबूत नहीं मिला।

लेकिन ऐसी रिपोर्टों के आते रहने के बावजूद कई मीडियाकर्मी, मीडिया हाउस और राजनेता हत्या की नैरेटिव बनाते रहे। इसी को लेकर मिशिगन यूनिवर्सिटी की रिसर्च टीम ने क़रीब हज़ारों यूट्यूब वीडियो और ट्वीट का विश्लेषण किया। ये पत्रकार, मीडिया हाउस और राजनेता से जुड़े थे। 

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उस रिपोर्ट में कहा गया है कि इस पूरे मामले के शिकार अधिकतर महिलाएँ रही हैं। रिया चक्रवर्ती पर चौतरफ़ा हमला किया गया, उनके चरित्र का हनन किया गया और आख़िरकार ड्रग्स के मामले को लेकर जेल में डाल दिया गया। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दीपिका पादुकोण, सारा अली ख़ान, श्रद्धा कपूर और रकुल प्रीत सिंह को निशाने पर लिया गया। ट्रोल और मुख्यधारा के मीडिया ने कयासों के आधार पर इनके ख़िलाफ़ ख़बरें चलाईं। 

अध्ययन में पाया गया है कि बीजेपी से जुड़े सोशल मीडिया के अकाउंट ‘हत्या’ शब्द का इस्तेमाल करने में अधिक आक्रामक थे। यानी साफ़ तौर पर बीजेपी से जुड़े लोगों ने ‘आत्महत्या’ कहने के पक्ष में नहीं रहे।

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