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तेलतुमडे रिहा,अदालत ने माना, गिरफ़्तारी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़

तेलतुमडे रिहा,अदालत ने माना, गिरफ़्तारी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़

अदालत न दलित चिंतक आनंद तेलतुमडे की रिहाई का आदेश देते हुए उनकी गिरफ़्तारी पर पुलिस की तीखी आलोचना की है। 

प्रोफेसर आनंद तेलतुमडे की गिरफ़्तारी पर शनिवार को महाराष्ट्र पुलिस को मुँह की खानी पड़ी। गिरफ़्तारी के 12 घंटे के अंदर ही पुणे की सत्र अदालत ने प्रफेसर तेलतुमडेकी रिहाई के आदेश जारी कर दिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक 11 फ़रवरी के पहले तेलतुमडे को गिरफ़्तार नहीं किया जा सकता। इस दौरान वह गिरफ़्तारी से बचने के लिए अदालत से अग्रिम ज़मानत के लिए अपील भी कर सकते हैं। 

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प्रोफेसर तेलतुमडे को शनिवार तड़के 3.30 पर मुंबई हवाई अड्डे पर गिरफ़्तार कर लिया गया था। इसके बाद दिन में उन्हें अदालत में पेश किया गया, जहाँ उनकी रिहाई का आदेश दिया गया। तेलतुमडे ने पुणे की स्थानीय अदालत में अग्रिम ज़मानत की याचिका दायर की थी। 1 फ़रवरी को उनकी याचिका को निरस्त कर दिया था। अदालत ने अपने आदेश में लिखा कि तेलतुमडे के ख़िलाफ़ प्रथम दृष्ट्या काफ़ी साक्ष्य हैं, लिहाज़ा, उनकी गिरफ़्तारी और हिरासत में पूछताछ ज़रूरी है। इसलिए, उन्हें अग्रिम ज़मानत नहीं दी जा सकती है। तेलतुमडे ने याचिका रद्द होने के बाद अदालत को बताया था कि वह मुंबई हाई कोर्ट में इस आदेश को चुनौती देंगे। तेलतुमडे बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए ही मुंबई गए थे, जहां हवाई अड्डे पर ही उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया था। 

तेलतुमडे की गिरफ़्तारी का फ़ैसला काफ़ी हैरान करने वाला था, क्योंकि 14 जनवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि 11 फ़रवरी 2019 तक उन्हें गिरफ़्तार न किया जाए। इस बीच वे चाहें तो अग्रिम ज़मानत के लिए स्थानीय अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। तब सुप्रीम कोर्ट ने तेलतुमडे के ख़िलाफ़ दायर एफ़आईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया था। तेलतुमडे  पर आरोप है कि भीमा कोरेगाँव में जो हिंसा हुई, उससे उनके तार जुड़ते हैं। साथ ही, उन पर यह भी आरोप है कि वह माओवादियोें से भी उनके रिश्ते थे। सुप्रीम कोर्ट ने तेलतुमडे के ख़िलाफ़ चल रही जाँच में दखल देने से भी इनकार कर दिया था। बंबई हाईकोर्ट ने भी उनकी गिरफ़्तारी पर रोक लगा रखी थी। तेलतुमडे की गिरफ़्तारी सुप्रीम कोर्ट के आदेश की साफ़ अवहेलना है। यह बात शनिवार को पुणे के सेशन्स कोर्ट ने भी मानी। सवाल यह उठता है कि क्या मुंबई  पुलिस को सुप्रीम कोर्ट के आदेश की जानकारी नहीं थी। यह बात फ़िलहाल गले नहीं उतरती कि महाराष्ट्र पुलिस को यह बात नहीं पता थी। साफ़ है कि तेलतुमडे की गिरफ़्तारी एक बड़ी योजना का हिस्सा है, जिसमें जान बूझ कर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया गया है। 

ऐसा लगता है कि महाराष्ट्र की पुलिस कतई नहीं चाहती थी कि मुंबई हाईकोर्ट से किसी तरह की राहत मिले। याद दिला दें कि अर्बन नक्सलवाद के नाम पर वरिष्ठ पत्रकार गौतम नवलखा की गिरफ़्तारी पर दिल्ली हाईकोर्ट ने रोक  लगा दी थी। इस वजह से गौतम नवलखा फ़िलहाल जेल से बाहर हैं, जबकि इसी मामले में उनके नौ साथी सीखचों के पीछे हैं। 

तेलतुमडे की गिरफ़्तारी पर मानवाधिकार कार्यकर्ता और प्रबुद्ध नागरिक हक्के बक्के रह गए थे। इन लोगों का मानना था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद अगर तेलतुमडे जैसे लोगों को गिरफ़्तार किया जा सकता है तो फिर इस देश में कोई भी सुरक्षित नहीं है। इनका यह भी मानना था कि यह सब कुछ विरोध की आवाज़ दबाने की साजिश है। पुणे सत्र न्यायालय के फ़ैसले के बाद यह बात सच भी साबित होती है। 

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