शिवसेना में पहली बार ऐसा देखने को मिला जब किसी नेता ने बाला साहेब ठाकरे के साथ किसी और नेता का नाम भी लिया। अमूमन शिवसैनिक बाला साहेब ठाकरे को ही हिंदुत्व का योद्धा बताते रहे हैं। लेकिन महाराष्ट्र में सियासी संकट खड़ा करने वाले एकनाथ शिंदे ने बाला साहेब ठाकरे के साथ आनंद दिघे का भी नाम लिया है।
इसलिए यह सवाल जरूर खड़ा होता है कि आखिर आनंद दिघे कौन हैं। क्या वह शिवसेना की सियासत में इतने बड़े नाम थे कि एकनाथ शिंदे ने उनका नाम बाला साहेब ठाकरे के साथ लिया।
आनंद दिघे ठाणे-कल्याण के इलाके के ताकतवर शिवसैनिक थे। दिघे ठाणे-कल्याण के इलाके में अपना दरबार लगाते थे और लोगों की समस्याओं को सुलझाते थे। शिवसैनिक आज भी उन्हें पूरी श्रद्धा के साथ याद करते हैं। वह इस इलाके में समानांतर अदालत चलाते थे और जो वह कहते थे, उनकी बात सभी मानते थे।
ठाणे में दिघे का इतना वर्चस्व था कि बाला साहेब ठाकरे भी उन पर लगाम नहीं लगा सके। इसे ध्यान में रखते हुए ही शिवसेना ने 2001 में आनंद दिघे की मौत के बाद एकनाथ शिंदे को ठाणे-कल्याण के इलाके में कभी भी फ्री हैंड नहीं दिया।
शिंदे को बढ़ाया आगे
आनंद दिघे ने ही एकनाथ शिंदे को महाराष्ट्र की सियासत में आगे बढ़ाया। दिघे ने शिंदे को 1997 में ठाणे नगर निगम में पार्षद बनवाया और फिर नगर निगम में सदन का नेता भी बनाया। 2001 में आनंद दिघे की मौत के बाद शिंदे ने ठाणे-कल्याण में उनकी जगह पर शिवसेना को मजबूत करने का काम शुरू किया।
किनारे लगाने की कोशिश
शिवसेना की सियासत को जानने वाले लोग यह भी कहते हैं कि ठाकरे परिवार आनंद दिघे की मौत के बाद एकनाथ शिंदे के पार्टी में दबदबे को लेकर घबराहट महसूस करता था और उनका कद कम करने की कोशिश की जा रही थी। शिंदे के समर्थकों का कहना है कि शिंदे के मंत्रालय में हस्तक्षेप किया जाता था और उन्हें शिवसेना में किनारे लगाने की कोशिश की गई। उनके समर्थकों का यह भी कहना है कि पार्टी के बड़े फैसलों में भी एकनाथ शिंदे की राय नहीं ली जाती थी।
एकनाथ शिंदे को शिवसेना का संकटमोचक कहा जाता है और जब तक बाला साहेब ठाकरे जीवित रहे तब तक महाराष्ट्र में तमाम बड़े फैसलों में वह शिंदे की राय लेते थे।
महाराष्ट्र का भावी मुख्यमंत्री
ठाणे इलाके के शिवसैनिक बीते कुछ सालों में कई बार एकनाथ शिंदे को महाराष्ट्र का भावी मुख्यमंत्री बताने वाले पोस्टर भी लगा चुके हैं। कहा जाता है कि इसे लेकर ठाकरे परिवार में काफी नाराजगी थी।
मराठी फिल्म धर्मवीर
मई के महीने में आनंद दिघे पर धर्मवीर नाम की एक मराठी फिल्म बनी थी। आनंद दिघे की मौत के बाद कई तरह की चर्चाएं हुई थीं और इन पर आज तक विराम नहीं लग सका है। उनकी मौत के पीछे असली वजह क्या है यह आज तक सामने नहीं आई है।
धर्मवीर को पूरे राज्य में अच्छा-खासा रिस्पांस मिला था। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अपनी पत्नी रश्मि के साथ इस फिल्म को देखा था और इस दौरान एकनाथ शिंदे और उनके सांसद बेटे श्रीकांत शिंदे भी मौजूद रहे थे।
लेकिन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने फिल्म के अंतिम 10 मिनट नहीं देखे थे क्योंकि उसमें आनंद दिघे की मौत कैसे हुई, यह दिखाया गया था। दिघे को एक दुर्घटना के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था और जब वह इससे उबर रहे थे तो कहा जाता है कि उन्हें हार्ट अटैक आ गया था।
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा था कि उन्होंने फिल्म के अंतिम 10 मिनट इस वजह से नहीं देखे क्योंकि दिघे की मौत शिवसेना के परिवार के लिए बड़ा झटका था। ठाकरे ने कहा था कि उन्होंने दिघे की मौत के बाद बाला साहेब ठाकरे को बेहद परेशान होते हुए देखा था। हालांकि उन्होंने फिल्म की तारीफ की थी और कहा था कि इसमें आनंद दिघे के जीवन को बेहतर ढंग से दिखाया गया है।
नारायण राणे का ट्वीट
एक वक्त में शिवसेना के दिग्गज नेता रहे और वर्तमान में केंद्रीय मंत्री नारायण राणे ने शिंदे की बगावत के बाद एकनाथ शिंदे को बधाई दी और कहा था कि उन्होंने सही समय पर सही फैसला लिया है वरना वह भी जल्द ही आनंद दिघे होते।
साल 2000 में हुए हादसे में जब एकनाथ शिंदे के दोनों बच्चों की मौत हो गई थी तब आनंद दिघे ने ही एकनाथ शिंदे को सहारा दिया था और उन्हें राजनीति में खड़ा किया था। इस बात को एकनाथ शिंदे कई बार कह चुके हैं।