प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को रूस की यात्रा पर मॉस्को पहुँचे। उन्होंने अपने नये कार्यकाल के अपने पहले द्विपक्षीय दौरे के लिए रूस को चुना, वह भी तब जब आम तौर पर भारत के नये प्रधानमंत्री अपनी पहली यात्रा पड़ोसी देशों में करने की प्रथा का पालन करते रहे हैं। पीएम मोदी खुद पहले ऐसा करने के लिए पड़ोसी देशों को चुनते रहे थे। लेकिन इस बार उन्होंने रूस को चुना है। तो क्या पीएम मोदी की इस यात्रा के गहरे मायने हैं और क्या पश्चिमी दुनिया के लिए गहरे संदेश हैं?
इन सवालों के जवाब पाने से पहले यह जान लें कि आख़िर इस यात्रा को लेकर क्या कहा गया है। आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार मोदी और पुतिन अपनी बैठक के दौरान दोनों देशों के बीच बहुआयामी संबंधों की समीक्षा करेंगे और आपसी हितों के मौजूदा क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर विचार साझा करेंगे। मॉस्को में मोदी के कार्यक्रम में पुतिन के साथ एक निजी बैठक, प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता, रेस्ट्रिक्टेड वार्ता, प्रधानमंत्री और उनके प्रतिनिधिमंडल के लिए पुतिन द्वारा आयोजित लंच जैसा कार्यक्रम शामिल है। बहरहाल, मॉस्को में पहुँचने पर उनका गार्ड ऑफ़ ऑनर से स्वागत किया गया।
क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने एक साक्षात्कार में कहा है कि मॉस्को में मोदी का कार्यक्रम व्यापक होगा। उन्होंने कहा, 'जाहिर है, एजेंडा व्यापक होगा, अगर इसे अति व्यस्त नहीं कहा जाए। यह एक आधिकारिक यात्रा होगी, और हमें उम्मीद है कि दोनों राष्ट्राध्यक्ष अनौपचारिक तरीके से भी बातचीत कर पाएंगे... हम एक बहुत ही महत्वपूर्ण और पूर्ण यात्रा की उम्मीद कर रहे हैं, जो रूसी-भारतीय संबंधों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।'
क्रेमलिन ने कहा है कि क्रेमलिन में आमने-सामने की बातचीत और प्रतिनिधिमंडलों की बातचीत दोनों होंगी। रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि रक्षा सहयोग, आपसी व्यापार, तकनीक और अंतरिक्ष के क्षेत्र में बातचीत तो होगी ही, रूस में भारतीयों के फंसे होने का मुद्दा भी उठ सकता है।
रूस में भारतीयों की मौजूदगी से संबंधों में खटास पैदा हुई है, जिनके बारे में माना जाता है कि उन्हें यूक्रेन में युद्ध में शामिल होने के लिए गुमराह किया गया है। चार भारतीय मारे गए हैं और 10 वापस आ गए हैं, लेकिन माना जाता है कि 40 अन्य अभी भी रूस में हैं। भारत ने उन्हें जल्द से जल्द रिहा करने के लिए कहा है, और मोदी की यात्रा के दौरान इस मुद्दे पर चर्चा होने की उम्मीद है।
क्रेमलिन ने इस बात पर भी जोर दिया है कि पश्चिम प्रधानमंत्री मोदी की आगामी रूस यात्रा पर करीब से और ईर्ष्या से नज़र रख रहा है।
क्रेमलिन के प्रवक्ता ने कहा है, 'वे ईर्ष्यालु हैं- इसका मतलब है कि वे इस पर बारीकी से नज़र रख रहे हैं। उनकी नज़दीकी निगरानी का मतलब है कि वे इसे बहुत महत्व देते हैं। और वे गलत नहीं हैं, और इसमें बहुत महत्व देने वाली बात है।'
मोदी की यह रूस यात्रा भारत और पश्चिमी देशों के बीच कई बैठकों के कुछ दिनों बाद हो रही है। जी7 में मोदी ने यूक्रेन के नेता के अलावा पश्चिमी देशों के नेताओं से भी मुलाक़ात की। इसके बाद अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने नई दिल्ली का दौरा किया। इसके बाद कांग्रेसी माइकल मैककॉल और पूर्व अमेरिकी हाउस स्पीकर नैन्सी पेलोसी के नेतृत्व में अमेरिकी कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल ने धर्मशाला में दलाई लामा और शीर्ष भारतीय नेतृत्व से मुलाकात की।
मोदी पुतिन से लगभग उसी समय मिलेंगे जब उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन यानी नाटो के 32 देशों के नेता रूस विरोधी सैन्य गठबंधन की 75वीं वर्षगांठ मनाने के लिए 9-11 जुलाई तक वाशिंगटन डीसी में जुटेंगे।
वैसे, पीएम मोदी और व्लादिमीर पुतिन के बीच वार्षिक शिखर सम्मेलन दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी में सबसे ऊँच स्तर का संवाद है। यानी यह हर साल होता रहा है। मोदी की यात्रा दोनों देशों के नेताओं के बीच 2000 से चल रही वार्षिक द्विपक्षीय शिखर बैठकों की श्रृंखला का हिस्सा है। रणनीतिक साझेदारी में सर्वोच्च संस्थागत संवाद यानी 21 शिखर सम्मेलन अब तक भारत और रूस में हो चुके हैं। दिसंबर 2021 में अपने अंतिम शिखर सम्मेलन के बाद से मोदी और पुतिन ने द्विपक्षीय सहयोग पर प्रगति की समीक्षा करने और आपसी हितों के क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए कम से कम 10 बार टेलीफोन पर बातचीत की।
भारत और रूस के बीच सात दशकों का घनिष्ठ संबंध रहा है। खासकर रक्षा क्षेत्र में यह संबंध उल्लेखनीय रहा है और साल दर साल इसका अन्य क्षेत्रों में भी विस्तार ही हुआ है।
पूर्व के यूएसएसआर से भारत को रक्षा उपकरण मिलते रहे थे और अब भी भारत की ज़रूरत का क़रीब 60-70 फ़ीसदी रक्षा उपकरण रूस से ही आते हैं। हालाँकि हाल के कुछ दशकों में भारत ने अमेरिका, फ्रांस, इज़राइल जैसे देशों से भी रक्षा उपकरण ख़रीदने शुरू किए हैं।
व्यापार घाटे पर बात होगी?
पहले भारत और रूस के बीच व्यापार 2025 तक 30 बिलियन डॉलर करने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन 2023-24 में ही दोनों देशों के बीच व्यापार दोगुना होकर 65 बिलियन डॉलर से भी ज़्यादा हो गया। दरअसल, यह यूक्रेन युद्ध के बाद रूस से तेल के आयात बढ़ने की वजह से हुआ। इस तरह पहले से ही काफ़ी ज़्यादा व्यापार घाटा अब बहुत तेज़ी से बढ़ गया। रूस के साथ भारत का व्यापार घाटा वित्त वर्ष 2023-24 में क़रीब 60 बिलियन डॉलर हो गया।
इस बीच, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रविवार को कहा कि मोदी की रूस यात्रा उनके और पुतिन के लिए 'व्यापार सहित कई मुद्दों पर सीधी बातचीत' करने का एक शानदार अवसर है। उनके अनुसार, भारत और रूस के बीच कुछ मुद्दों को हल करने की आवश्यकता है। जयशंकर ने कहा, 'कुछ मुद्दे हैं... जैसे व्यापार असंतुलन। इसलिए नेतृत्व के स्तर पर प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन के लिए एक-दूसरे से बैठकर सीधे बात करने का यह एक शानदार अवसर होगा। और फिर जाहिर है, उनके निर्देशों के अनुसार, हम देखेंगे कि रिश्ते को कैसे आगे बढ़ाया जाए।'
अब सभी की निगाहें 8-9 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा पर होंगी, जहाँ वे राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मिलने वाले हैं। दो साल पहले रूस-यूक्रेन संघर्ष शुरू होने के बाद से यह मोदी की क्रेमलिन की पहली यात्रा है।