अफ़ग़ानिस्तान के ख़ुरासान में बैठा शख़्स आका बना हुआ है। उसे साथ मिला है पाकिस्तान की ख़ुफिया एजेंसी आईएसआई का, नाम और समर्थन मिला है आईएसआईएस का। देश में इंडियन मुजाहिदीन की तरह ख़तरनाक आतंकी संगठनों की जड़ें जमाने का काम देश में हो रहा है। इस काम के लिए 'रेडिकलाइजेशन' का सहारा लिया जा रहा है।इंडियन मुजाहिदीन के समूल ख़ात्मे से सीखने के बाद आईएसआई ने इस बार 'होमलैंड-टेररिजम' के लिए इंटरनेट के साथ-साथ आसानी से उपलब्ध सामानों को आतंक फैलाने का ज़रिया बनाने का फै़सला किया है। देश की जांच एजेंसियाँ इस नतीजे पर पहुंची हैं कि नाम से लेकर बम तक का सामान स्थानीय स्तर पर उपलब्ध हो जाए, इस बात का ख़ास ख़्याल रखा जा रहा है।
एनआईए यानी नेशनल इन्वेस्टिगेटिव एजेंसी की 26 दिसंबर तड़के की गई कार्रवाई, आईएसआईएस समर्थक संगठन हरकत-उल-हर्ब-इसलाम के 10 लोगों की गिरफ़्तारी भी उपरोक्त जानकारी को पुख़्ता कर रही है। एनआईए के सूत्रों के मुताबिक़ पकड़े गए नए मॉड्यूल में ज़्यादातर लोग लोहे के काम से जुड़े हुए हैं। एनआईए के एक अधिकारी के मुताबिक़ वेल्डिंग के कारोबारी और छात्रों को जोड़कर नए-नए छोटे संगठन बनाना नई आतंकी नीति है।
इस नीति के जनक पाकिस्तान की ख़ुफिया एजेंसी आईएसआई है और युवाओं में आईएसआईएस के क्रेज़ को देखते हुए उसका समर्थन या यूँ कहिए कि उससे संबद्ध किया जा रहा है। इस नीति से पाकिस्तान को लाभ है। क्योंकि सीधे उसका नाम ना होकर आईएसआईएस का जुड़ रहा है। जानकारी यह भी है कि अफ़गानिस्तान के ख़ुरासान से चल रहा रेडिक्लाइज़ेशन का काम संभालने वाला शख़्स भी आईएसआईएस का ही है।ग़ौरतलब है कि 2010 तक देश में इडियन मुजाहिदीन नाम का ख़तरनाक आतंकी संगठन का खौफ़ व्याप्त था। लेकिन भारतीय एजेंसियाँ इस खाैफ़ को समाप्त करने में सफल हुईं। भारत में इंडियन मुजाहिदीन की तर्ज़ पर ही संगठन ख़ड़ा करने की आईएसआईएस ने बीच में भी कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुआ। इसके बाद ऑनलाइन 'रेडिकलाइजेशन' का जन्म हुआ।
भारत में स्थानीय स्तर पर युवाओं को 'रेडिकलाईज' करने का फ़ायदा यह है कि संदेह होता है आईएसआईएस पर और काम होता है पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई का। इस तरह पाकिस्तान तस्वीर में आए बग़ैर ही अपनी योजना को अंजाम दे देता है।
फ़िदायीन हमले की ऑनलाइन ट्रेनिंग
कुछेक साल पहले तक आईएसआईएस ऑनलाइन 'रेडिकलाइजेशन' के जरिए युवाओं को भर्ती तो कर रही थी मगर उन्हें टारगेट नहीं दे रही थी क्योंकि हमले का सामान भारत भेजना नामुकिन हो रहा था। विशेषज्ञों के मुताबिक़, आईएसआईएस की इस समस्या को पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी ने हल कर दिया। अब यह नीति बनी कि 'रेडिकलाइजेशन' के ज़रिए जो युवा भर्ती हों उन्हें केवल पैसा भेजा जाए। बाक़ी का साजो-सामान भर्ती होने वाले युवाओं को स्थानीय बाजार में आसानी से मिल जाए इसका फ़ॉर्मूला दिया जाए। इसीलिए ऑनलाइन 'रेडिकलाइजेशन' के जरिए भर्ती होने वाले युवाओं को बम बनाने की और फ़िदायीन हमले की ट्रेनिंग भी ऑनलाइन दी जा रही है। मगर एनआईए सूत्रों की मानें तो 26 दिसंबर को हुई कार्रवाई में बरामद सामान उपरोक्त जानकारी को पुख़्ता कर रहे हैं।
एनआईए के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक़ बरामद रॉकेट लॉन्चर में हमला करने के लिए किसी ख़ास तैयारी की ज़रूरत नहीं है बल्कि स्थानीय पटाखों से बने सामान ही काफ़ी थे। कट्टे औऱ पिस्टल की बरामदगी भी उपरोक्त ज़ानकारी को पुख्ता कर रही है। इसीलिए एजेंसियाँ मान रही हैं कि इस कार्रवाई ने देश में फिर से और बहुत रफ़्तार से फैल रहे ख़तरे का आगाज भी किया है। पहली बार इस कार्रवाई में ख़ुलासा हुआ है कि आईएसआईएस समर्थित संगठन हमले की साज़िश रच रहा है। सूत्र बताते हैं कि यह सिर्फ दस लोगों का मॉड्यूल नहीं था बल्कि इसमें कम से कम अभी 15-20 और लोग हो सकते हैं जिनकी गिरफ़्तारी के बाद भी निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता।
ख़ास बात यह कि इस तरह के मॉड्यूल फ़िदायीन हमलों की तैयारी में हैं। एनआईए के सूत्रों के मुताबिक़ देश में फ़िदायीन हमले का बड़ा ख़तरा है। गिरफ़्तार कथित आतंकियों से मिले विडियो आदि से साबित हो रहा है कि ख़तरनाक साज़िश रची जा रही है जो बहुत ख़ामोशी से अंजाम भी दी जा सकती है। इस समय एजेंसियों को दो ख़तरों की आशंका सता रही है। पहला ख़तरा है हिज़्बुल मुजाहिदीन का एनआईए ने 10 अक्टूबर को आतंकी कमरूज्जा के ख़िलाफ़ केस दर्ज किया था। इस एफ़आईआर में बताया गया है कि हिज़्बुल जम्मू कश्मीर से निकल कर देश भर में यहाँ तक कि पूर्वोत्तर हिस्सों में भी पाँव फैलाने लगा है।
'ऑनलाइन रेडिकलाइजेशन' को पकड़ना बेहद मुश्किल होता है क्योंकि यह इंटरनेट पर होता है, घर बैठे होता है और एक साथ हज़ारों लोगों को प्रभावित किया जा सकता है। इसलिए यह बड़ी चुनौती बन कर उभर रहा है।
आईएसआईएस के साथ मिलकर आतंक फैलाने की साज़िश
दूसरा सबसे बड़ा ख़तरा है आईएसआई का। आईएसआईएस के साथ मिलकर भारत में आतंक फैलाने की गहरी साज़िश काफ़ी ख़तरनाक है, क्योंकि अब खेल आईएसआईएस से संबद्ध छोटे संगठन बनाकर साज़िश रचने का है। संयोग से या जैसे भी एजेंसियाँ अभी तक कामयाब ज़रूर हो रही हैं लेकिन ज़रा सोचिए अगर ज़ाकिर मूसा के अमरोहा में छिपने की सूचना नहीं होती तो ना तो एजेंसियों को इस मॉड्यूल की सूचना मिलती और ना ही इतनी बड़ी धर-पकड़ हो पाती।
'ऑनलाइन रेडिकलाइजेशन' किसी देश के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है।
एनआईए के ही एक अधिकारी की मानें तो हरकत-उल-हर्ब-ए-इसलाम जैसे कितने संगठन आईएसआई की शह और आईएसआईएस से संबद्ध होकर देश भर में ज़हर फैला रहे हैं, यह कहना नामुमकिन है। डराने वाली बात यह भी कि इनके टारगेट पर छात्र और वैसे युवा हैं जो छोटा-मोटा परंगपरागत पेशे से जुड़े हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि नई आतंकी नीति के फ़्रेम में ये फिट बैठते हैं। एनआईए के ही एक अधिकारी की मानें तो युवाओं में आईएसआईएस का क्रेज़ है और रेडिक्लाइज़ेशन इसी का परिणाम है, हालाँकि गृह मंत्रालय से लेकर हरेक राज़्य में 'रेडिकलाइजेशन' यानी इंटरनेट के माध्यम से युवाओं को आतंकी बनाने से रोकने के लिए विशेष इकाई का गठन हो चुका है। मगर शायद आपको जानकर आश्चर्य हो कि केवल महाराष्ट्र एटीएस को इस मामले में ख़ास कामयाबी मिली है। 2016 जनवरी से लेकर सितंबर 2018 तक महाराष्ट्र एटीएस ने 115 युवाओं को डी-रेडिक्लाइज़ेशन के माध्यम से बचाया था। केवल महाराष्ट्र में यह संख्या यह बताने के लिए काफ़ी है कि देश भर में रेडिक्लाइज़ेशन का कितना बड़ा ख़तरा मंडरा रहा है। ऐसा नहीं है कि दूसरे राज्यों की पुलिस ने रेडिक्लाइज़ेशन के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं की है मगर फ़ोकस इस पर नहीं है। विशेषज्ञों की मानें तो पढ़े-लिखे युवाओं को 'रेडिकलाइजेशन' से बचाना सबसे बड़ी चुनौती है औऱ इसके लिए सरकारी एजेंसियों के पास अभी कोई ठोस कार्य योजना नहीं है।