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पन्नू हत्या साजिश और विकास यादव प्रकरण से क्या भारत कुछ सीखेगा?

पन्नू हत्या साजिश और विकास यादव प्रकरण से क्या भारत कुछ सीखेगा?

अमेरिका से लेकर कनाडा तक और उनके मित्र देशों के सामने भारत की जो छीछालेदर हो रही है, उसके जिम्मेदार पूर्व रॉ अधिकारी विकास यादव के दिल्ली में बैठे हैंडलर हैं। मोदी सरकार और उसके आला अफसरों की नाकाम हसरतों का अंजाम यह सारा मामला है, जिसकी कड़ियां लॉरेंस बिश्नोई से भी जुड़ी हुई हैं। पढ़िये वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह का विश्लेषणः 

भर्तृहरि के नीतिशतक का एक श्लोक है : वारंग्नेव नृपनीतिर्नेकरूपा (तवायफ की तरह राजनीति भी अनेक रूपों वाली होती है). वर्तमान में भी पन्नू हत्या प्रयास के आरोप में फंसी भारत सरकार का एक भोंडा और निहायत बेवकूफाना चेहरा पूरे देश को शर्मसार कर रहा है या यूं कहें कि शर्म छुपाने को एक लोकोक्ति वाला “गूलर का पत्ता” (फिग लीफ) भी नहीं रहा. अमेरिका में सिख अलगाववादी नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू हत्या के प्रयास का प्रकरण एक ऐसी हीं शर्मनाक घटना है.  

पूरी दुनिया में प्राचीन काल से दूसरे देशों में अपने देश को लेकर “क्या चल” रहा है इसकी जानकारी शासकों को रखनी होती है और अगर कुछ भारी देश-अहित की बात पुष्ट होती है तो तदनुसार कदम उठाये जाते हैं. इसकी शर्त मात्र एक होती है --- अपने इस अघोषित (खुफिया) तंत्र की और इसके इनपुट या सरकार के कदम की जानकारी किसी भी कीमत पर सार्वजनिक न हो. भारत इस शर्त में न केवल बुरी तरह असफल रहा बल्कि इसके बचकाने कदम ने देश को विश्व में हंसी का पात्र बना दिया. कुल मिलाकर इंटेलिजेंस ऑपरेशन का जिम्मा कुछ “मोस्ट अनइंटेलीजेंट” लोगों के हाथ में दिया गया जो अंडरकवर ऑपरेशन्स का ककहरा भी नहीं जानते थे.

हुआ यूं कि भारत के दूतावासों को जानकारी थी और है कि कनाडा और अमेरिका में जड़ जमा चुके कुछ अलगाववादी सिखों द्वारा खालिस्तानी मांग और आतंकवाद को फिर से उभारने और उसके लिए धन दे रहे हैं. अन्य मुल्कों की तरह भारत के विदेशी दूतावासों में भी कार्यरत लोगों में ऐसी जानकरी जुटाने वाले लोग होते हैं और उनके “सोर्स”, “कॉन्टेक्ट्स” और “एसेट्स” भी होते हैं. 

इसके बाद अचानक अमेरिका ने नाराजगी भरे शब्दों में जून, 2023 में भारत को इत्तिला दी कि भारत सरकार की कैबिनेट सचिवालय द्वारा नियुक्त एक अधिकारी (सीसी-1) ने एक आर्म्स डीलर निखिल गुप्ता के जरिये पन्नू को मरवाने की सुपारी किसी “किराये के हत्यारे” को दी. निखिल गुप्ता ने पन्नू की हत्या के लिए जिस व्यक्ति को सुपारी की पहली क़िस्त (15000 डॉलर या दस लाख रुपये) दी (कुल ठेका एक लाख डॉलर याने 83 लाख रुपये) का था) वह दरअसल अमेरिकी सरकार के ड्रग्स डिपार्टमेंट का अंडरकवर अधिकारी था. इसने निखिल गुप्ता को हीं नहीं बल्कि उस भारतीय अधिकारी को जिसने निखिल गुप्ता को आदेश दिया था, बेवकूफ बनाते हुए कुछ वक्त माँगा. उसने गुप्ता के जरिये उसे अधिकारी को बताया कि भारतीय पीम मोदी की अमेरिका यात्रा होने जा रही है लिहाज़ा ऐसे हत्या से बवाल बढ़ जाएगा. लेकिन यात्रा के बाद निखिल गुप्ता ने वो सारे फोटोज और फैक्ट्स उस तथाकथित “कॉन्ट्रैक्ट किलर” को उपलब्ध कराये जिसमें कनाडा में एक दिन पहले याने 18 जून, 2023 को सिख आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर को ऐसे हीं एक ऑपरेशन में मार दिया गया था. गुप्ता ने कहा कि अब जल्द हीं पन्नू को भी ख़त्म किया जाये. अमेरिकी सरकार को ये सारी साजिश अंडरकवर बताता रहा.

यहाँ तक कि जिस कार में पहली क़िस्त दी गयी उसका फोटो भी अंडरकवर अधिकारी ने अमेरिकी सरकार को उपलब्ध करा दी. जाहिर है अमेरिकी सरकार ने “ऑपरेशन” असफल कर दिया. भारत सरकार ने इस घटना में अपनी भूमिका से प्रारंभिक दौर में सीधे इनकार किया. लेकिन जब अमेरिका सख्त हुआ और बातचीत का रिकॉर्ड, हिटमैन को पैसे दिए जाने का फोटो और सीसी-1 का भारत की सेना का यूनिफार्म पहने फोटो दिखाया तो भारत सकते में आ गया.

“मरता क्या न करता”, तत्काल मोदी सरकार ने इस घटना की जांच में सहयोग करने का वादा किया. इस बीच अमेरिका ने विगत सप्ताह डिप्टी एनएसए और एक आईपीस अधिकारी, जो सीबीआई में रह चुके थे, की टीम ने  अमेरिका जा कर “कुसूरवार” की मानिंद कबूल किया कि सीसी-1 “अब” भारत सरकार की सेवा में नहीं है. दिल्ली में भी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इन्हीं शब्दों का प्रयोग किया. मुतमईन अमेरिका ने प्रेस कांफ्रेंस में भारत की संजीदगी की सराहना की.

  • विकास यादव के बाद क्याः पता चला कि स्थिति प्रतिकूल देखते हुए विकास यादव को पहले पैरेंट इकाई –सीआरपीऍफ़ – में वापस भेजा गया, फिर सेवा से हटा दिया गया और ताज़ा जानकारी के अनुसार उसे एक्सटॉर्शन (भयादोहन), किडनैपिंग और मारपीट और हथियार प्रयोग के आरोप में विगत 18, दिसम्बर को गिरफ्तार कर लिया गया था. उसे इस वर्ष 22 अप्रैल को जमानत मिली. उस पर उक्त आरोप दिल्ली के एक मोहल्ले रोहिणी के एक व्यक्ति ने लगाया था. जमानत देते हुए जिला कोर्ट ने उसे सरकारी अधिकारी बताया और कहा कि इनके पिछले रिकॉर्ड से इनके आदतन अपराधी होने की शंका नहीं है. दिल्ली पुलिस ने इसका विरोध नहीं किया. 

यहाँ सवाल उठाता है कि क्या विकास का मुंह बंद कराने के लिए यह सब किया गया? अचानक विदेश में इतना बड़ा ऑपरेशन करने वाला एक अधिकारी साधारण गुंडे की तरह एक्सटॉर्शन जैसा घटिया अपराध कैसे कर सकता है?


  • क्या इसे भारत में अभियुक्त दिखा कर इसके प्रत्यार्पण की भावी   अमेरिकी मांग से बचने का बहाना बनाया गया है. यह सच है कि सरकार की विकास के खिलाफ जो भी कार्रवाइयों हो रही हैं या होंगीं—जैसे नौकरी से निकालना, उसे एक्सटॉर्शनिस्ट करार देना, उसे मुकदमें में फंसाना—उससे रॉ, आईबी और राज्यों में उसकी इकाइयां (एसआईबीज) के लोगों में सरकार के प्रति अविश्वास बढेगा और मनोबल गिरेगा.

करीब 11 माह के बाद अब अमेरिका की एफ़बीआइ ने अपने दस्तावेजों में वर्णित आरोपी सीसी-1 का नाम उजागर करते हुए विकास यादव उर्फ़ “विकास” उर्फ़ “अमानत” का नाम सार्वजानिक कर दिया और उसे देश का “मोस्ट वांटेड” अपराधी मानते हुए उसे कोर्ट में लाने के उपक्रम शुरू कर दिए हैं. न्यूयॉर्क कोर्ट में अमेरिका जांच एजेंसी एफ़बीआई ने दूसरा आरोपपत्र दाखिल करते हुए आरोप लगाया कि अमेरिकी नागरिक और खालिस्तान-समर्थक गुरुपतवंत सिंह “पन्नू” की हत्या के प्रयास की साजिश में इस भारतीय अधिकारी ने एक व्यक्ति को पैसे दे कर पन्नू की हत्या के लिए “हिटमैन” तलाशने का काम सौंपा था. दरअसल जिस व्यक्ति को हिटमैन समझा था वह दरअसल अमेरिका ड्रग्स डिपार्टमेंट का अंडरकवर अधिकारी निकला. उसने इस अधिकारी और  रिकॉर्ड से पता चला कि सीआईएसऍफ़ का यह अधिकारी भारत की खुफिया एजेंसी “रॉ” में डेप्युटेशन पर था.

यहाँ सवाल यह उठता है कि क्या विकास यादव स्वयं हीं यह सब कुछ कर रहा था या उसे रॉ चीफ की हरी झंडी थी.


इतना पैसा (पहली क़िस्त करीब 1500 डॉलर या दस लाख रुपये) क्या एक अधिकारी दे सकता है? अगर उसे भारत सरकार की नौकरी से निकाला गया तो क्या इस गुनाह में वह अकेला था? अगर नहीं तो क्या इससे सत्ता में बैठे लोगों की किरकिरी न हीं होगी और क्या रॉ के अधिकारियों का मनोबल नहीं टूटेगा? अंततः क्या भारत अमेरिका अपराधी विकास को अमेरिकी एजेंसी एफबीआई को सौंपेगा ? 

बड़ा सवालः इस पूरे प्रकरण में सवाल भारत सरकार की नीयत का नहीं है क्योंकि हर सरकार अपने देश को सुरक्षित रखने के लिए यह सब कुछ करती है. अमेरिका का सीआईए, इजराइल का मोसाद. आदि ये सब करते हैं। क्या रॉ के अधिकारी को किराये के हत्यारे की पहचान दरयाफ्त नहीं करनी चाहिए थी? यह तो इंटेलिजेंस ऑपरेशन की पहली शर्त होती है. कुछ वर्ष पहले तक जूनियर अधिकारियों को कम से कम दस वर्षों तक रॉ छोटे-छोटे ऑपरेशन्स दे कर उन्हें ट्रेनिंग दे कर परिपक्व करता था. लेकिन यह प्रथा हाल में ख़त्म कर दे गयी और बिना सघन फील्ड ऑपरेशन की ट्रेनिंग के अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में भेज दिया जा रहा है.

कनाडा के ऑपरेशन में भी निज्जर जरूर मारा गया लेकिन पांच देशों (अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, कनाडा और न्यूज़ीलैण्ड) के संगठन “फाइव आईज” जो खुफिया जानकरी का एक-दूसरे के बीच आदान-प्रदान करता है—ने कनाडा को बताया कि भारत के कैनेडियन दूतावास में तैनात का एक आईपीएस अधिकारी इस ऑपरेशन का प्रभारी है. उस अधिकारी को सरकार ने तत्काल वापस किया. यहाँ भी सवाल उठता है कि क्या इस आईपीएस अधिकारी को इतनी भी समझ नहीं थी कि सीक्रेट ऑपरेशन की पहली शर्त है – ओपन लाइन से ऑपरेशन की बात नहीं की जाती. 

पाकिस्तान में रॉ सफल इसलिए हैं कि वहाँ काउंटर सर्विल्लांस नाममात्र को है और अधिकारी खुद ही इतने भ्रष्ट है कि पैसा मिलने पर वे स्वयं ही “सब कुछ” करने को तैयार रहते हैं.                        

(लेखक एनके सिंह ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन (बीईए) के पूर्व महासचिव हैं।)

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