चिंतन शिविर: राहुल के फिर से अध्यक्ष बनने का रास्ता साफ?
उदयपुर चिंतन शिविर में कांग्रेस नेताओं ने दो दिनों तक मैराथन माथापच्ची और बहस मुबाहिसे के बाद कुछ ऐसे फैसले किए हैं, जो अगर ईमानदारी से लागू हो गए तो कांग्रेस का कायापलट हो सकता है। पूरे देश में पदयात्रा से लेकर भारत जोड़ो के नारे के जरिए कांग्रेस अब 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा और मोदी सरकार की चुनौती का मुकाबला करेगी।
जनता से सीधे जुड़ने के लिए दो अक्तूबर को गांधी जयंती के दिन कन्याकुमारी से कश्मीर तक शुरू की जाने वाली कांग्रेस की पदयात्रा (इसका एलान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने समापन भाषण में किया) की अगुआई खुद राहुल गांधी कर सकते हैं। हालांकि, इसकी घोषणा अभी नहीं हुई है।
शिविर का एक लाइन में निचोड़ यह है कि कांग्रेस में फिर राहुल गांधी के नेतृत्व का उदय हुआ है और पिछले कुछ समय से उनके खिलाफ उठने वाले असंतोष के स्वर न सिर्फ शांत हो गए हैं बल्कि उनके समर्थन के स्वर में बदलने लगे हैं।
इस चिंतन शिविर का एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि भले ही नेहरू-गांधी परिवार के तीनों सदस्य सोनिया, राहुल और प्रियंका की शिविर में सक्रिय भागीदारी थी, लेकिन पूरे शिविर पर राहुल गांधी का प्रभाव सर्वाधिक दिखाई दिया। बतौर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उद्घाटन भाषण में शिविर की दिशा तय की, लेकिन समापन सत्र में उनका भाषण बेहद संक्षिप्त रहा, जबकि राहुल गांधी ने ज्यादा विस्तार से अपनी बात कही।
वहीं, प्रियंका गांधी ने भाषण न देकर अपनी भूमिका विचार विमर्श तक ही सीमित रखी। यह भी पार्टी और परिवार की भावी दिशा और दशा का एक अहम संकेत है। यानी पार्टी शीर्ष स्तर पर भी परिवार की भूमिका को सीमित रखना चाहती है और कांग्रेस के उदयपुर नवसंकल्प चिंतन शिविर से पार्टी में राहुल गांधी की सर्व स्वीकार्यता पर मुहर लग गई है और उनके निर्विरोध कांग्रेस अध्यक्ष बनने का रास्ता साफ हो गया है।
भले ही कांग्रेस ने अपने कायाकल्प के तमाम उपाय उदयपुर नवसंकल्प चिंतन शिविर के विचार मंथन से निकाले हैं, लेकिन इन पर पीके यानी प्रशांत किशोर के ब्लूप्रिंट का असर दिखता है। अब इन पर एक्शन आरजी यानी राहुल गांधी और उनकी टीम को करना है।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि पीके अपने ब्लू प्रिंट को खुद लागू करना चाहते थे जबकि पार्टी उसे सामूहिक रूप से लागू करना चाहती थी। अब राहुल गांधी ने खुद इस चुनौती को स्वीकार किया है और पीके द्वारा सुझाए गए तमाम उपायों में से महत्वपूर्ण सुझावों को चिंतन शिविर के विचार मंथन से निकले नतीजों की शक्ल में लागू करवाने की जिम्मेदारी खुद राहुल गांधी ने संभाली है।
शिविर के तीसरे दिन कांग्रेस कार्यसमिति ने विभिन्न विषयों पर गठित छह समूहों के विचार मंथन के जिन निष्कर्षों को मंजूर किया और जिनकी घोषणा शिविर के अंतिम यानी समापन सत्र में की गई, उनमें सबसे प्रमुख है जनता के साथ पार्टी का जो संवाद और संबंध पिछले कई वर्षों से टूट गया है, उसे कायम करने और जीवंत बनाने के लिए कांग्रेस देशव्यापी पदयात्राएं आयोजित करेगी। इसकी घोषणा करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि दो अक्तूबर गांधी जयंती के दिन से कन्याकुमारी से कश्मीर तक कांग्रेस पदयात्रा आयोजित करेगी, जिसे पार्टी के नौजवान नेता संचालित करेंगे लेकिन उसमें वरिष्ठ नेताओं की शिरकत भी होगी।
इससे पहले अपने संबोधन में पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी कहा कि अक्तूबर में कांग्रेस पदयात्रा करेगी और जनता के साथ सीधे संवाद करेगी। इसके अलावा कांग्रेस महासचिव अजय माकन ने कहा कि कांग्रेस कार्यकर्ता पूरे देश में अपने अपने जिला मुख्यालयों से 75 किलोमीटर के दायरे में पदयात्राएं करेंगे।
इसके साथ ही कांग्रेस ने उदयपुर नवसंकल्प शिविर से नया नारा दिया है- भारत जोड़ो। इसका एलान करते हुए अजय माकन ने कहा कि नौ अगस्त 1942 को अगर कांग्रेस ने नारा दिया था- अंग्रेजों भारत छोड़ो तो आज 15 मई 2022 को हमारा नारा है- भारत जोड़ो। इस नारे को मंच से लेकर पांडाल तक पूरे जोर शोर से लगाया गया।
दरअसल, कांग्रेस में बदलाव लाने के लिए जो फैसले लिए गए हैं, वो सारी बातें उस ब्लू प्रिंट का हिस्सा हैं जो कांग्रेस नेतृत्व और शीर्ष नेताओं के साथ 12 घंटे से भी ज्यादा चली बैठक में चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर यानी पीके ने पेश किया था और इसे लागू करने के लिए ही कांग्रेस अध्यक्ष ने एक आठ सदस्यीय एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप का गठन करने का एलान किया था।
उन्होंने पीके को कांग्रेस में शामिल होकर इस समूह का सदस्य बनकर अपने ब्लू प्रिंट को लागू करने का प्रस्ताव दिया, जिसे प्रशांत किशोर ने यह कहकर नामंजूर कर दिया था कि जब तक उन्हें उनके ब्लू प्रिंट को लागू करने की पूरी स्वतंत्रता और ताकत नहीं दी जाएगी, वह कांग्रेस और एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप का हिस्सा नहीं बनेंगे। इसके बाद पीके और कांग्रेस के रास्ते अलग-अलग हो गए।
कांग्रेस नेतृत्व के करीबी सूत्रों के मुताबिक, जहां प्रशांत किशोर को अपना ब्लू प्रिंट लागू करने की पूरी आजादी देने के पक्ष में प्रियंका गांधी थीं, लेकिन राहुल गांधी किसी एक व्यक्ति को एकाधिकार देने की बजाय उसे सामूहिक रूप से लागू करवाना चाहते थे और सोनिया गांधी ने भी राहुल की बात पर मुहर लगाई। इसके बाद पीके ने अपना रास्ता अलग किया, जिसे लेकर पार्टी और परिवार में राहुल के सामने यह चुनौती खड़ी हो गई कि वह कांग्रेस के कायाकल्प के लिए सुझाए गए उपायों को लागू करवाएं।
राहुल ने इस चुनौती को स्वीकार किया और उदयपुर नवसंकल्प चिंतन शिविर के छह समूहों में गहन विचार मंथन के बाद संगठन में आमूल चूल बदलाव के लिए जो फैसले लिए गए हैं, उनको लागू करवाना भी उनकी टीम की जिम्मेदारी होगी।
इन फैसलों में कांग्रेस संगठन को ब्लॉक, मंडल, शहर जिला प्रदेश स्तर पर पुनर्गठित करना, नीचे से ऊपर तक पचास फीसदी पद पचास साल से कम उम्र के नेताओं को देना, पार्टी की शीर्ष संस्था कांग्रेस कार्यसमिति में भी 50 फीसदी पद पर 50 वर्ष से कम उम्र के नेताओं को लाना, कार्यसमिति में एक उप समिति बनाकर कांग्रेस अध्यक्ष को समय समय पर विभिन्न राजनीतिक आर्थिक सामाजिक और अन्य महत्वपूर्ण विषयों मुद्दों पर सलाह और सुझाव देना, शीर्ष स्तर पर संगठन में तीन नए विभागों का गठन आदि शामिल हैं।
इसके अलावा पांच साल से ज्यादा किसी एक पद पर किसी एक व्यक्ति को न रहने देना, पार्टी में शामिल होने वालों को कम से कम पांच साल तक काम करने के बाद किसी पद पर नियुक्त करना, समय-समय पर नीचे से ऊपर तक के पदाधिकारियों के कामकाज का मूल्यांकन करते हुए अच्छा काम करने वालों को पदोन्नति और काम को अंजाम न दे पाने वालों की छुट्टी, पार्टी और सत्ता में परिवारों का असर कम करने और परिवारवाद के आरोपों से मुक्ति पाने के लिए एक परिवार एक व्यक्ति को पद और टिकट के फॉर्मूले को लागू करने जैसे कई कठोर फैसले टीम राहुल किस हद तक लागू करवा पाएगी, इस पर कांग्रेस की भावी दिशा और दशा निर्भर करेगी।
सोशल मीडिया नीति
इसके अलावा मीडिया और संचार विभाग और रणनीति को ज्यादा कारगर बनाने के लिए शिविर में जो उपाय सुझाए गए हैं, उन पर भी पीके द्वारा दिए गए ब्लू प्रिंट का असर दिखता है। इसलिए केंद्रीय स्तर से लेकर नीचे तक संगठन की मीडिया और सोशल मीडिया नीति और रणनीति को ज्यादा समावेशी, व्यापक और असरदार बनाने के लिए कई बदलाव सुझाए गए हैं। इसके लिए हो सकता है कि कांग्रेस को अपने मीडिया विभाग के ढांचे में भी आमूल चूल परिवर्तन करना पड़े।अभी भी यह जिम्मेदारी राहुल गांधी के भरोसेमंद रणदीप सिंह सुरजेवाला, रोहन गुप्ता और उनकी टीम के पास है, इसलिए अगर इन्हें बदला नहीं जाता तो इन्हें भी अपने कामकाज को और ज्यादा असरदार बनाना होगा।
शिविर की सबसे बड़ी कामयाबी है कि पार्टी नेतृत्व अपने लगभग सभी नए पुराने नेताओं को एक साथ बिठाने और विचार मंथन करने में कामयाब रहा। उद्घाटन से लेकर समापन सत्र तक अगर टीम राहुल के वफादार माने जाने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे, अधीर रंजन चौधरी, केसी वेणुगोपाल, अजय माकन, अशोक गहलोत, भूपेश बघेल, दिग्विजय सिंह, अंबिका सोनी, मोहन प्रकाश, अविनाश पांडे जैसे नेता पूरी गर्मजोशी में दिखाई दिए, तो असंतोष के स्वर उठाने वाले जी-23 के नेता गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, मनीष तिवारी, मुकुल वासनिक आदि भी पूरी तरह सक्रिय दिखे।
वहीं, वरिष्ठ नेता और अपनी बात बेलाग और बेलौस तरीके से साफ साफ कहने वाले जनार्दन द्विवेदी और परिवार व पार्टी के निष्ठावान सुरेश पचौरी को भी शिविर में बुलाकर सम्मान और स्थान दिया गया, तो प्रियंका गांधी के करीबी माने जाने वाले राजीव शुक्ला, आचार्य प्रमोद कृष्णम जैसे नेताओं ने भी अपनी बात खुलकर रखी।
आचार्य ने तो सोनिया राहुल और प्रियंका समेत सभी वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में यह भी कह दिया कि राहुल गांधी अध्यक्ष पद संभालें, यह सबकी इच्छा है,लेकिन अगर किसी कारण से वह यह जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते हैं तो प्रियंका गांधी को यह अध्यक्ष बनाया जाए। प्रमोद कृष्णम ने यह सवाल भी किया कि प्रियंका को अध्यक्ष बनाया जाए या फिर उनसे भी ज्यादा जन स्वीकार्य कोई दूसरा चेहरा पार्टी में हो तो बताएं। अपने इस बयान से आचार्य प्रमोद कृष्णम ने एक नई बहस छेड़ी जरूर, लेकिन शिविर का स्वर और माहौल राहुल गांधी मय ही रहा।
शिविर के चिंतन और मंथन का एक अघोषित संदेश है कि सितंबर में होने वाले पार्टी अध्यक्ष पद के चुनाव में राहुल गांधी ही संगठन और परिवार दोनों की पसंद होंगे और उनका एक बार फिर कांग्रेस अध्यक्ष बनना लगभग तय है।
एक तरह से उदयपुर नवसंकल्प शिविर को राहुल गांधी की पार्टी में निर्विरोध स्वीकार्यता बनाने की कवायद भी माना जा सकता है।
अमर उजाला से साभार।