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बंगाल में दाग़ियों के भरोसे है बीजेपी?

बंगाल में दाग़ियों के भरोसे है बीजेपी?

अमित शाह के दौरे के समय शनिवार को अपने दल-बल के साथ भगवा झंडा थामने वाले शुभेंदु अधिकारी हों या फिर दो साल पहले टीएमसी से नाता तोड़ कर बीजेपी के पाले में जाने वाले मुकुल राय, किसी का दामन उजला नहीं है। 

लोहे से लोहे को काटने वाली कहावत तो सबने सुनी होगी। पश्चिम बंगाल में अगले विधानसभा चुनावों में दो-तिहाई बहुमत के साथ सत्ता में आने का दावा करने वाली बीजेपी अब मामूली फेरबदल के साथ राजनीति में भी इसी कहावत को चरितार्थ करने पर तुली है। पार्टी ने टीएमसी सरकार के कथित भ्रष्टाचार के मुक़ाबले के लिए उन्हीं दाग़ी नेताओं की बैशाखी पर चलने का फ़ैसला किया है जो पहले से ही भ्रष्टाचार और हत्या तक के आरोपों से जूझ रहे हैं। यानी पार्टी यहाँ दाग़ियों से ही दाग़ धोने का फ़ॉर्मूला अपना रही है।

दो साल पहले टीएमसी से नाता तोड़ कर बीजेपी के पाले में जाने वाले मुकुल राय हों या फिर अमित शाह के दौरे के समय शनिवार को अपने दल-बल के साथ भगवा झंडा थामने वाले शुभेंदु अधिकारी, किसी का दामन उजला नहीं है। बीजेपी इन दोनों नेताओं को अपनी सबसे बड़ी पकड़ मानते हुए अपनी कामयाबी पर इतरा रही है। 

लेकिन सारदा चिटफंड घोटाले में भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझने वाले इन दोनों नेताओं में से मुकुल राय पर तृणमूल कांग्रेस विधायक सत्यजीत विश्वास की हत्या तक के आरोप हैं। हत्या की जाँच करने वाली सीआईडी की टीम ने इस महीने की शुरुआत में अदालत में जो पूरक आरोपपत्र दायर किया है उसमें राय का नाम शामिल है। इससे पहले टीएमसी में रहने के दौरान सीबीआई सारदा मामले में उनसे कई दिनों तक पूछताछ कर चुकी है। इसी तरह सारदा चिटफंड के मालिक सुदीप्त सेन ने बीते दिनों जेल से सीबीआई को भेजे पत्र में जिन पाँच नेताओं का ज़िक्र किया है उनमें मुकुल राय और शुभेंदु अधिकारी के नाम भी शामिल हैं।

वैसे, यह राजनीति की विडंबना ही है कि हत्या जैसे संगीन अपराधों को भी राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित क़रार देकर राजनेता अपना दामन उजला बताने की नाकाम कोशिश करते नज़र आते हैं। अब यह परंपरा बन गई है। 

बीजेपी के पाँच नेताओं को अपने ख़िलाफ़ दायर हिंसा भड़काने के मामलों में गिरफ्तारी से बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक की शरण लेनी पड़ रही है। यह बात दीगर है कि दूसरे दलों के मुक़ाबले ख़ुद के पाक-साफ़ होने का दावा करने वाली बीजेपी भी इन दलों से अलग नहीं है।

हाथरस मामले में सीबीआई की ओर से दायर आरोप पत्र इसकी हालिया मिसाल है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार चीख-चीख कर कहने में जुटी थी कि हाथरस में गैंग रेप ही नहीं हुआ है। वहाँ जाने वाले पत्रकारों तक को गिरफ्तार कर लिया गया।

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पश्चिम बंगाल में बीते लोकसभा चुनावों से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने टीएमसी के भ्रष्टाचार को ही सबसे बड़ा मुद्दा बना रखा है। अपने आरोपों को वजनी बनाने के लिए दोनों नेता तोलाबाज़ी (उगाही) और सिंडीकेट के अलावा ममता के भतीजे सांसद अभिषेक बनर्जी का नाम बार-बार लेते रहे हैं। लेकिन कथनी और करनी में फर्क साबित करते हुए पार्टी ने तृणमूल कांग्रेस से आने वाले तमाम दाग़ियों और बागियों के लिए अपने दरवाज़े खोल रखे हैं। दरअसल, पार्टी की मुश्किल यह है कि उसके पास बंगाल में ममता बनर्जी की कद-काठी का कोई नेता नहीं है।

पश्चिम बंगाल के दो दिनी दौरे पर पहुँचे अमित शाह ने भी एक बार फिर इसी मुद्दे को उठाया है। उनका कहना था कि माँ, माटी और मानुष के नारे के साथ सत्ता में आने वाली तृणमूल कांग्रेस ने अब इस नारे तोलाबाज़ी, तुष्टिकरण और भतीजावाद में बदल दिया है। मेदिनीपुर की अपनी रैली में शाह ने यह भी साफ़ कर दिया कि बंगाल में सत्ता हासिल करने के लिए बीजेपी दलबदलुओं पर ही निर्भर है। उनका कहना था, ‘शुभेंदु समेत दस विधायकों का पार्टी में शामिल होना तो एक शुरुआत है। चुनाव आते-आते दीदी (ममता) अकेली रह जाएँगी। ममता ने बंगाल में बीजेपी की सुनामी की कल्पना तक नहीं की होगी।’ शाह ने दोहराया कि अगले चुनावों में पार्टी दो सौ से ज़्यादा सीटें जीतेगी। पूरा बंगाल दीदी के ख़िलाफ़ है। बीजेपी सत्ता में आते ही राज्य को सोनार बांग्ला (सोने का बंगाल) बना देगी।

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कल तक दीदी का गुणगान करने वाले शुभेंदु अधिकारी को भी अब बीजेपी में शामिल होते ही सरकार और टीएमसी का भ्रष्टाचार नज़र आने लगा है। हाल तक मंत्री रहते उन्होंने बंगाल में क़ानून व व्यवस्था की गिरती स्थिति पर कोई टिप्पणी नहीं की थी। लेकिन अपनी राजनीतिक महात्वाकांक्षाओं को ठेस लगते देख कर उनको अचानक तमाम कमियाँ नज़र आने लगीं। उन्होंने शाह के साथ मंच पर पहुँच कर उनके पैर छू कर आशीर्वाद लिया और उनकी शान में जम कर कसीदे पढ़े। शुभेंदु का कहना था कि अबकी टीएमसी सत्ता में नहीं लौटेगी। शाह की रैली में जाने से ठीक पहले उन्होंने टीएमसी कार्यकर्ताओं के नाम एक खुला पत्र भी लिखा है। दस पेज के अपने पत्र में उन्होंने कहा है कि ज़मीनी कार्यकर्ताओं ने ख़ून-पसीना बहा कर पार्टी के पैर जमाने में मदद की थी। लेकिन उनको पार्टी में कोई अहमियत नहीं मिली।

शुभेंदु ने लिखा है कि टीएमसी में अब निजी हितों को तरजीह दी जा रही है। अब राज्य के लोग ही बंगाल का भविष्य तय करेंगे।

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उनका आरोप है कि बीते दस साल के दौरान राज्य में कोई विकास नहीं हुआ। यही वजह है कि सरकार को अब दरवाज़े पर सरकार जैसे कार्यक्रमों का आयोजन करना पड़ रहा है। इसी वजह से उन्होंने पार्टी छोड़ने का फ़ैसला किया है। अब हमें एक साथ नई राह पर चलना होगा। शुभेंदु ने कहा है कि तृणमूल कांग्रेस अब हिंसा और धमकियों पर उतर आई है।

यह बात दीगर है कि तृणमूल कांग्रेस से इस्तीफ़ा देने के फौरन बाद शुभेंदु को राज्यपाल जगदीप धनखड़ के पास जाकर ख़ुद को बचाने की गुहार लगानी पड़ी। उन्होंने राज्यपाल से अंदेशा जताया कि सरकार उनको झूठे मामलों में फँसा सकती है। इसके बाद राज्यपाल ने इस मुद्दे पर ममता बनर्जी को दो पेज का पत्र भी लिख भेजा।

अब तृणमूल कांग्रेस ने कहा है कि शुभेंदु कोई दूध के धुले नहीं हैं और पार्टी जल्दी ही उनका कच्चा चिट्ठा खोलेगी।

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