एनपीआर के आधार पर एनआरसी बनेगा, मोदी सरकार 9 बार कह चुकी है
नैशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस (एनआरसी) को लेकर उठ रहे तमाम सवालों के बीच मंगलवार को जब केंद्रीय कैबिनेट ने नैशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) को मंजूरी दी, तो सवालों की बाढ़ ही आ गई। पहला सवाल यह उठा कि क्या एनपीआर का एनआरसी से कोई संबंध है। ऐसे ही कुछ सवालों का जवाब देते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने न्यूज एजेंसी एएनआई को दिये एक इंटरव्यू में कहा है कि एनपीआर का एनआरसी से कोई संबंध नहीं है। शाह ने कहा कि दोनों ही अलग-अलग क़ानूनों से संचालित होते हैं और एनपीआर के आंकड़ों को एनआरसी के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। मंगलवार को ही केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भी कहा था कि एनपीआर का एनआरसी से कोई संबंध नहीं है।
इंटरव्यू में अमित शाह ने कहा, ‘एनपीआर एक डाटाबेस है जिसके आधार पर नीति बनती है जबकि एनआरसी में लोगों की नागरिकता का सबूत माँगा जाता है। उन्होंने कहा कि एनपीआर को एनआरसी के लिए इस्तेमाल किये जाने की बातें सिर्फ अफ़वाह हैं।’ सरकार के गृह मंत्री और वरिष्ठ मंत्री के इन बयानों के बाद क्या मान लिया जाना चाहिए कि एनपीआर और एनआरसी का आपस में कोई संबंध नहीं है।
लेकिन तथ्य कुछ और ही कहानी कहते हैं। अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में छपी एक ख़बर में कहा गया है कि तथ्यों के मुताबिक़, एनआरसी को एनपीआर के आधार पर नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत नागरिकता नियम 2003 में निर्दिष्ट किया गया है। वास्तव में एनपीआर एनआरसी के लिए बनाए गए नियमों का हिस्सा और एक भाग है। अख़बार के मुताबिक़, इतना ही नहीं, नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में कम से कम नौ बार संसद को बताया कि एनआरसी को एनपीआर के आंकड़ों के आधार पर बनाया जाएगा।
हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से जारी 2018-19 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है, ‘एनपीआर नागरिकता क़ानून के प्रावधानों के तहत भारतीय लोगों के राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरआईसी) को बनाने की दिशा में पहला क़दम है।’
संसद में 8 जुलाई, 2014 को कांग्रेस के सांसद राजीव सातव की ओर से पूछे गए एक सवाल के लिखित जवाब में तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा, ‘एनपीआर की योजना की समीक्षा की गई है और यह फ़ैसला लिया गया है कि एनपीआर को पूरा किया जाना चाहिए जिससे यह ‘तार्किक निष्कर्ष’ तक पहुंच सके। एनपीआर में प्रत्येक व्यक्ति की नागरिकता की स्थिति के सत्यापन के बाद एनआरआईसी का निर्माण होना है।’ इसके बाद 15 जुलाई और फिर 22 जुलाई को रिजिजू ने लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान एक बार फिर एनपीआर और एनआरआईसी को आपस में जोड़ा।
23 जुलाई को भी उन्होंने राज्यसभा में ऐसा ही बयान दिया। 29 नवंबर, 2014 को रिजिजू ने राज्य सभा में बताया, ‘एनपीआर भारत के हर सामान्य नागरिक की नागरिकता की स्थिति को सत्यापित करके एनआरआईसी को बनाने की दिशा में पहला क़दम है। यह भी वही जवाब था जो रिजिजू पहले लोकसभा में दे चुके थे।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, 21 अप्रैल और 28 जुलाई, 2015 को तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हरिभाई परथीभाई चौधरी ने लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान ‘तार्किक निष्कर्ष’ वाले बयान को दोहराया। 13 मई, 2015 को राज्यसभा में रिजिजू ने एक बार फिर यही बात कही।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, 11 नवंबर 2016 को, रिजिजू ने राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान अपनी पुरानी बात को दोहराते हुए कहा, ‘सरकार ने जनसंख्या रजिस्टर तैयार करने को मंजूरी दे दी है और इसमें देश के लोगों के बारे में जानकारी शामिल है। जनसंख्या रजिस्टर की तैयारी नागरिकता अधिनियम, 1955 के नागरिकता नियम (2003) के साथ पढ़े गए भारतीय नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर यानी एनआरआईसी की तैयारी का एक हिस्सा है।’
मंगलवार के अमित शाह के इंटरव्यू को अगर आपने ध्यान से सुना होगा तो उसमें उन्होंने कई बार कहा कि एनआरसी को लेकर कोई बात नहीं हुई है। यही बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी रैली में कही था कि एनआरसी को लेकर कोई भी चर्चा सरकार में नहीं हुई है।
लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के एनआरसी को लेकर दिए गए बयान के बाद सवाल उठ रहा है कि केंद्र सरकार का आख़िर एनआरसी को लेकर क्या स्टैंड है। क्योंकि सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियो मौजूद हैं जिनमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को 2024 से पहले देश भर में एनआरसी को लागू करने की बात कहते सुना जा सकता है। लेकिन तथ्य यह कहते हैं कि सरकार ख़ुद 9 बार संसद में एनपीआर को एनआरसी से जोड़ चुकी है और कह चुकी है कि एनपीआर एनआरसी को बनाने की दिशा में पहला क़दम है।
बंदी गृह को लेकर शाह ने इंटरव्यू के दौरान कहा कि असम और कर्नाटक में बंदी गृह हैं। जबकि प्रधानमंत्री मोदी ने रैली में कहा था कि देश में कोई बंदी गृह नहीं है। हालाँकि शाह ने बंदी गृह को एनआरसी के साथ जोड़ने से इनकार किया। शाह ने कहा कि विपक्ष एनपीआर के ख़िलाफ़ राजनीतिक कारणों से आवाज़ उठा रहा है।
ओवैसी, अखिलेश ने बोला हमला
एआईएमआईएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि एनपीआर एनआरआईसी को बनाने की दिशा में पहला क़दम है। इसके बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा, 'जब सरकार ने ख़ुद ही राज्य सभा में कहा है कि एनपीआर ही एनआरसी का आधार होगा तो ये भाजपाई और कितना झूठ बोलकर लोगों को गुमराह करेंगे. इनके ‘छिपे उद्देश्यों’ का अब भण्डाफोड़ हो चुका है। देश एक था, एक है, एक रहेगा!’
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की ख़बर के मुताबिक़ तो यह साफ़ पता चलता है कि एनपीआर एनआरसी की दिशा में बढ़ रहा पहला प्रयास है। लेकिन सरकार के गृह मंत्री इससे इनकार कर रहे हैं। नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर पहले से ही देश भर में बवाल चल रहा है और विपक्षी दलों की राज्य सरकारों ने इसे लागू करने से इनकार कर दिया है। ऐसे में सरकार का दायित्व है कि वह स्थिति को स्पष्ट करे लेकिन उसके बयानों से स्थिति उलझती जा रही है और सवाल पर सवाल पैदा हो रहे हैं।