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मंत्रिमंडल में राजनाथ पर भारी शाह, बाद में अहम समितियों में शामिल किए गए सिंह

मंत्रिमंडल में राजनाथ पर भारी शाह, बाद में अहम समितियों में शामिल किए गए सिंह

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में नंबर 2 कौन है? रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह या फिर गृह मंत्री अमित शाह? तसवीर अब साफ़ होने लगी है। यदि कैबिनेट समितियों को आधार मानें तो क्या अमित शाह भारी नहीं पड़ रहे हैं राजनाथ सिंह पर?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में नंबर 2 कौन है रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह या फिर गृह मंत्री अमित शाह तसवीर अब साफ़ होने लगी है। केंद्र सरकार ने नीति निर्धारण करने वाली जिन आठ समितियों की घोषणा की उन सभी में अमित शाह शामिल हैं, लेकिन राजनाथ सिंह को मात्र दो समितियों में स्थान मिल पाया है। ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिर्फ़ 6 समितियों में रहेंगे। इसका साफ़ मतलब है कि बाक़ी दो समितियों की अध्यक्षता भी अमित शाह करेंगे। शपथ-ग्रहण समारोह में जब प्रधानमंत्री के बाद राजनाथ सिंह को शपथ दिलाई गई और अमित शाह को तीसरे नंबर पर रखा गया तब कयास लगाया जा रहा था कि राजनाथ सिंह की वरिष्ठता बनी रहेगी। लेकिन जब विभागों का वितरण हुआ और राजनाथ सिंह को गृह मंत्रालय से हटा कर रक्षा मंत्रालय दिया गया और गृह मंत्रालय अमित शाह को सौंपा गया तब से ही राजनीतिक हलकों में चर्चा चल रही थी कि अमित शाह ही नंबर दो होंगे। अब मंत्रिमंडल की नीति निर्धारण समितियों के गठन के बाद साफ़ होने लगा है कि सरकार में मोदी के बाद शाह का दबदबा बरक़रार रहेगा।

राजनाथ सिंह को मंत्रिमंडल की सुरक्षा मामलों की समिति में रखना एक तरह की अनिवार्यता है, सो वह इसमें हैं। इसके अलावा उनको सिर्फ़ आर्थिक मामलों की समिति में जगह मिली है। राजनाथ सिंह का नाम राजनीतिक मामलों की समिति में भी नहीं है। नीति निर्धारण में इस समिति की भूमिका अति महत्वपूर्ण होती है।

आम तौर पर वरिष्ठ मंत्रियों को इसमें ज़रूर रखा जाता है। एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति में सिर्फ़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह रहेंगे। वरिष्ठ पदों पर नियुक्ति का फ़ैसला यही समिति करती है।

दो नयी समितियाँ

मोदी सरकार ने मंत्रिमंडल की दो नयी समितियों की घोषणा भी की है। इनमें पहली है- निवेश और विकास कमेटी। दूसरी है- रोज़गार और कौशल विकास समिति। ये दोनों ही समितियाँ मोदी सरकार की राजनीतिक ज़रूरत हैं। मार्च-अप्रैल और मई में लोकसभा चुनाव अभियान के दौरान सरकार बड़ी चालाकी से यह बताने की कोशिश करती रही कि निवेश और रोज़गार के मोर्चे पर सबकुछ ठीक चल रहा है। आँकड़े छिपाए गए। जो कुछ लीक होकर बाहर आ गए उन्हें अपूर्ण बताया गया। लेकिन सरकार बनने के तुरंत बाद जब सरकारी आँकड़े सामने आए तो यह साफ़ हो गया कि चुनाव अभियान के दौरान बहुत कुछ छिपाया गया। 2018-2019 की चौथी तिमाही में देश का आर्थिक विकास दर यानी जीडीपी 5.8 प्रतिशत रह गयी, जबकि 2017-2018 में यह 6.8 प्रतिशत थी। सरकार ने 2018-2019 के लिए 7.2 प्रतिशत का लक्ष्य रखा था। और इस तरह दुनिया में सबसे तेज़ी से विकास के पायदान से भारत पीछे खिसकने लगा। हालाँकि विश्व बैंक का अब भी मानना है कि 2019-20 से आगे के तीन वर्षों तक भारत सबसे तेज़ी से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना रहेगा। 

लेबर फ़ोर्स सर्वे की जिस रिपोर्ट को चुनाव अभियान के दौरान छिपाने की कोशिश की गई उसे 30 मई को सार्वजनिक किया गया। इसमें बताया गया कि देश में बेरोज़गारी दर 6.1 प्रतिशत पहुँच गई है जो पिछले 45 वर्षों में सबसे ज़्यादा है। यानी ग़ैर-बीजेपी दलों का यह कहना बिल्कुल सही था कि पिछली सरकार के दौरान बेरोज़गारी बढ़ी और इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि सरकार के अनुमान के अनुसार निवेश नहीं हुआ। 

जिन समितियों में मोदी नहीं उसमें अमित शाह

ज़ाहिर है कि इन दोनों मुद्दों पर ख़ास तौर पर ध्यान देने के लिए मंत्रिमंडल स्तर की समितियाँ बनाई गई हैं। दोनों ही समितियों में गृह मंत्री तो हैं, लेकिन रक्षा मंत्री नहीं हैं। अब यह तर्क दिया जा सकता है कि निवेश और रोज़गार से रक्षा मंत्री का सीधा संबंध तो होता नहीं है, तो इसका प्रति तर्क यह है कि गृह मंत्री का भी सीधे तौर पर इससे संबंध नहीं होता है। आवास को लेकर बनी मंत्रिमंडल समिति में प्रधानमंत्री नहीं हैं इसलिए इसकी अध्यक्षता गृह मंत्री अमित शाह करेंगे। इसी तरह संसदीय मामलों की समिति में भी प्रधानमंत्री नहीं हैं और इसकी अध्यक्षता भी शाह के ज़िम्मे है। शाह के बाद सबसे ज़्यादा 7 समितियों में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण हैं। रेल मंत्री पीयूष गोयल 5 समितियों में शामिल हैं। निवेश और विकास की नई बनी समिति में प्रधानमंत्री के साथ अमित शाह, नितिन गडकरी, निर्मला सीतारमण और पीयूष गोयल होंगे। रोज़गार और कौशल विकास की समिति में भी शाह, निर्मला सीतारमण और पीयूष गोयल के अलावा नरेंद्र तोमर, शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल, धर्मेंद्र प्रधान, महेंद्र नाथ पांडे, संतोष गंगवार और हरदीप सिंह पुरी होंगे।

मंत्रिमंडल की ये समितियाँ इसलिए महत्वपूर्ण होती हैं कि ज़्यादातर नीतिगत फ़ैसले इन समितियों में किये जाते हैं। संसदीय मामलों की समिति से राजनाथ सिंह को दूर रखने का एक कारण यह माना जा रहा है कि उनकी मौजूदगी में अध्यक्षता का मौक़ा अमित शाह को नहीं मिलता।

वैसे मोदी युग की ये समितियाँ चौंकाने वाली बिल्कुल नहीं हैं। भारतीय जनता पार्टी के चुनाव अभियान समिति के मुखिया के रूप में अमित शाह ने 2014 में और अध्यक्ष के रूप में 2019 के चुनावों में जिस तरह की जीत दिलायी उससे ही यह तय हो गया कि मोदी के बाद नंबर तो शाह का ही है। लेकिन एक महत्वपूर्ण बात यह है कि 2014 में राजनाथ सिंह पार्टी के अध्यक्ष थे और मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित कराने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी। लेकिन शाह गुजरात से ही मोदी की ख़ास पसंद हैं। राजनाथ सिंह को आगे-पाछे यह स्वीकार करना होगा।

राजनाथ और 4 समितियों में  

इससे जुड़ी ख़बरें छपने और उस पर सरकार की खूब किरकिरी होने के बाद राजनाथ सिंह को और पाँच कैबिनेट समितियों में शामिल किया गया। उन्हें संसदीय मामले, राजनीतिक मामले, निवेश व विकास मामले, रोज़गार और कौशल विकास से जुड़ी समितियों में भी शामिल कर लिया गया है। इसके बाद सिर्फ़ कैबिनेट नियुक्ति समिति ही है, जिसमें राजनाथ सिंह नहीं है। इस समिति में अमित शाह और प्रधानमंत्री को छोड़ कोई नहीं है। इस तरह वह अब 6 कैबिनेट समितियों के सदस्य हैं। 

इस्तीफ़े की धमकी

समझा जाता है कि सिर्फ़ दो कैबिनेट समितियों में शामिल किए जाने की वजह से सिंह बेहद नाराज़ थे। एनडीटीवी की ख़बर पर भरोसा किया जाए तो राजनाथ सिंह ने रक्षा मंत्री पद से इस्तीफ़ा देने तक की धमकी दे दी थी। 

पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस नाटकीय घटनाक्रम ने यह साफ़ कर दिया कि बीजेपी किस तरह बदल चुकी है। अब इस पार्टी पर अमित शाह की पकड़ एकदम मजबूत हो चुकी है। अब यहाँ वही होगा, जो वह चाहेंगे। वह अपने लोगों को सरकार में तरजीह देंगे और सरकार अपने ढंग से चलाएँगे। राजनाथ सिंह उनसे वरिष्ठ हैं, लेकिन अमित शाह अपने गुट के लोगों को तमाम अहम जगहों पर तैनात करेंगे। इसलिए राजनाथ सिंह जैसे वरिष्ठों के पर कतरे जाएँगे और उनकी उपेक्षा की जाएगी। समझा जाता है कि उन्हें सिर्फ़ दो कैबिनेट समितियों में शामिल कर यही संकेत दिया गया था। राजनाथ सिंह ने इसे समझ लिया और एक तरह से बग़ावत कर दी। सरकार के पदभार ग्रहण करते ही इस तरह के झटकों से पार्टी की फ़जीहत होती। इसलिए उन्हें शांत किया गया और उन्हें दूसरी चार समितियों में शामिल कर लिया गया। इसके बावजूद उन्हें उस समिति में नहीं रखा गया, जिसमें शाह और मोदी हैं। एक बात साफ़ कर दी गई कि वह अमित शाह के बाद ही हैं। राजनाथ सिंह को बदली हुई स्थिति को शायद स्वीकार करना होगा। 

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