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सफ़ूरा ज़रगर को जेल में रखने का अमेरिकन बार एसोसिएशन ने किया विरोध, भारत की आलोचना

सफ़ूरा ज़रगर को जेल में रखने का अमेरिकन बार एसोसिएशन ने किया विरोध, भारत की आलोचना

अमेरिकन बार एसोसिएशन के सेंटर फ़ॉर ह्यूमन राइट्स ने जामिया मिलिया इसलामिया की शोध छात्रा सफ़ूरा ज़रग़र की गिरफ़्तारी और उनके जेल में पड़े रहने पर गहरी आपत्ति जताई है।

अमेरिकन बार एसोसिएशन के सेंटर फ़ॉर ह्यूमन राइट्स ने जामिया मिलिया इसलामिया की शोध छात्रा सफ़ूरा ज़रग़र की गिरफ़्तारी और उनके जेल में पड़े रहने पर गहरी आपत्ति जताई है और भारत की आलोचना की है। 

इस संस्था ने पूरे मामले को अंतरराष्ट्रीय विधि मानकों और भारत ने जिन अंतरराष्ट्रीय समझौतों पर दस्तख़त किए हैं, उनका उल्लंघन माना है। उसने कहा है, 'मुक़दमा के पहले गिरफ़्तारी कुछ ख़ास मामलों में ही वैध हैं और ऐसा नहीं लगता है कि ज़रगर के मामले में इस तरह की कोई बात है।'

इस संस्था ने यह भी कहा है कि 'इंटरनेशनल कॉनवीनेंट ऑन सिविल एंड पोलिटिकल राइट्स यह साफ़ कहता है कि यह सामान्य नियम नहीं होना चाहिए कि मुक़दमा शुरू होने के पहले ही किसी को जेल में डाल दिया जाए।'

क्या है मामला

उन पर दिल्ली दंगों की साजिश रचने का आरोप लगाया गया है। दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट ने पिछले सप्ताह उनकी ज़मानत याचिका खारिज कर दी। ज़रगर ने नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ आन्दोलन में भाग लिया था। लेकिन उन्हें अनलॉफुल एक्विविटीज़ प्रीवेन्शन एक्ट के तहत गिरफ़्तार किया गया है।

 - Satya Hindi

सफ़ूरा के गर्भवती होने, ख़राब स्वास्थ्य और कोरोना फैलने की आशंका के मद्देनज़र मजिस्ट्रेट ने उन्हें ज़मानत दे दी। लेकिन उसके बाद पुलिस ने दिल्ली दंगों की साजिश रचने का आरोप लगा कर यूएपीए की धाराएं लगा दीं।

अमेरिकी संस्थान ने यह भी कहा है कि ज़रगर के गर्भवती होने की स्थिति को ध्यान में रखा जाना चाहिए। महिला क़ैदियों के साथ होने वाले व्यवहार पर संयुक्त राष्ट्र के नियम भी साफ कहते हैं कि किसी गर्भवती महिला के जेल में रखने के बजाय दूसरे उपाय अपनाए जाने चाहिए। 

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