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मणिपुर पर अमेरिका भी चिंतित, पीड़ितों से हमदर्दी जताई

मणिपुर पर अमेरिका भी चिंतित, पीड़ितों से हमदर्दी जताई

मणिपुर पर विदेश में भी चिन्ता बढ़ रही है। अमेरिका ने इस पर चिन्ता जताते हुए पीड़ितों से हमदर्दी की बात कही है। पिछले दिनों यूरोपियन संसद में भी यह मामला उठा था। लेकिन भारत ने हमेशा इसे अपना आंतरिक मामला बताकर आरोपों को खारिज करता रहा है। देखना है कि अमेरिका की प्रतिक्रिया पर भारत क्या कहता है।

संयुक्त राज्य अमेरिका ने रविवार को कहा कि वह मणिपुर राज्य में दो महिलाओं को नग्न घुमाते हुए दिखाए गए वायरल वीडियो की रिपोर्टों से बहुत चिंतित है, यह एक यौन उत्पीड़न का मामला है जिसने देश को गुस्से में डाल दिया है। 

यह हमला, जिसमें भीड़ ने कथित तौर पर बलात्कार किया और नग्न महिलाओं को घुमाया, दो महीने पहले हुआ था, लेकिन इसने राष्ट्रीय और पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया क्योंकि वीडियो पिछले सप्ताह सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। पुलिस ने कुछ गिरफ्तारियां की हैं। रॉयटर्स के मुताबिक अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने इस घटना को "क्रूर" और "भयानक" बताया और कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका पीड़ितों के प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त करता है।

विदेश विभाग के प्रवक्ता ने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने मणिपुर हिंसा के शांतिपूर्ण समाधान को बढ़ावा दिया है और अधिकारियों से सभी समूहों, घरों और पूजा स्थलों की सुरक्षा करते हुए मानवीय जरूरतों पर प्रतिक्रिया देने का आग्रह किया।

इस घटना पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद के बाहर बयान दिया लेकिन भारत की संसद के अंदर उन्होंने इस पर कोई बयान नहीं दिया। वीडियो वायरल होने के बाद ही पीएम मोदी बोले। जबकि वहां हिंसा की घटनाएं पिछले ढाई महीने से चल रही हैं। इस समय भारतीय संसद भी चल रही है। लेकिन संसद के अंदर पीएम के बयान की मांग को लेकर वहां भी सरकार और विपक्ष के बीच गतिरोध बना हुआ है।

मई में कुकी को दिए जाने वाले आदिवासी आरक्षण को लेकर जनजातीय कुकी लोगों और बहुसंख्यक जातीय मैतेई के बीच तीव्र जातीय संघर्ष के दौरान 21 और 19 वर्ष की आयु की लड़कियों पर यौन हमले किए गए। उनसे गैंगरेप किया गया। उनके घरों को लूटा गया, जला दिया गया, कई लोगों की हत्या कर दी गई। भारत सरकार ने 32 लाख की आबादी वाले राज्य में हजारों अर्धसैनिक और सेना की टुकड़ियों को भेजने के बाद काबू पाने की कोशिश की। लेकिन इसके तुरंत बाद छिटपुट हिंसा और हत्याएं फिर से शुरू हो गईं और तब से राज्य में तनाव बना हुआ है। मणिपुर में हिंसा भड़कने के बाद से कम से कम 125 लोग मारे गए हैं और 40,000 से अधिक लोग अपना घर छोड़कर भाग गए हैं।

यूरोपियन यूनियन की संसद में भी उठा मामलाः फ्रांस के स्ट्रासबर्ग स्थित यूरोपीय संसद ने हाल ही में एक प्रस्ताव पारित कर मणिपुर हिंसा को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार की कड़ी आलोचना की थी। प्रस्ताव में भारत में अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर भी नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना की गई है। यूरोपीय यूनियन की संसद में 6 संसदीय समूहों की तरफ से प्रस्तुत इस प्रस्ताव में मणिपुर में पिछले दो महीने से चल रही हिंसक वारदातों को न रोक पाने के लिए मोदी सरकार के तरीकों की तीखी आलोचना की है। इसमें कहा गया है कि हिंदू बहुसंख्यकवाद को बढ़ावा देने वाली राजनीति से प्रेरित और बंटवारा करने वाली नीतियों और आतंकी समूहों की गतिविधियों में हुई बढ़ोतरी से हम चिंतित हैं।

यूरोपीय संसद से पारित इस प्रस्ताव में मणिपुर में हिंसा के बाद कर्फ्यू लगाने और इंटरनेट पर रोक लगाने के राज्य सरकार के फैसले की कड़ी आलोचना की गई। कहा है कि इससे मीडिया और सिविल सोसाइटी को हिंसा की सही सूचना नहीं मिल पा रही है और उन्हें रिपोर्टिंग में मुश्किल आ रही है। प्रस्ताव में कहा गया है कि सामाजिक विभाजन पैदा करने वाली नीतियों को लेकर हम चिंतित है। ये नीतियां हिंदू बहुसंख्यकवाद को बढ़ावा देती हैं। हाल के वर्षों में भारत में धार्मिक स्वतंत्रता में गिरावट आई है। विभिन्न तरह के भेदभाव वाले कानूनों और प्रथाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है। इन सब के कारण ईसाई, मुस्लिम, सिख और आदिवासी समुदायों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

हिंसा राजनीति से प्रेरित हैः प्रस्ताव में कहा गया है कि हमने भारतीय अधिकारियों से अनुरोध किया है कि वो जातीय और धार्मिक हिंसा को तुरंत रोके। धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए सरकार सभी जरुरी कदम उठाए। इसमें कहा गया है कि अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति असहिष्णुता ने मणिपुर में हिंसा को भड़काया है। यह हिंसा राजनीति से प्रेरित है। प्रस्ताव में कहा गया है कि सामाजिक विभाजन पैदा करने वाली नीतियों को लेकर हम चिंतित है। ये नीतियां हिंदू बहुसंख्यकवाद को बढ़ावा देती हैं। हाल के वर्षों में भारत में धार्मिक स्वतंत्रता में गिरावट आई है। विभिन्न तरह के भेदभाव वाले कानूनों और प्रथाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है। इन सब के कारण ईसाई, मुस्लिम, सिख और आदिवासी समुदायों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

प्रस्ताव में भारत सरकार से आग्रह किया गया है कि वह संयुक्त राष्ट्र की सिफारिशों को मानते हुए आफ्स्पा को खत्म करे और सुरक्षा बलों द्वारा शक्ति के प्रयोग पर संयुक्त राष्ट्र के मूलभूत सिद्धांतों का पालन सुनिश्चित करे। इसमें मणिपुर के सभी पक्षों से संयम बरतने की अपील की गई है। नेताओं से भी भड़काऊ बयानबाजी बंद करने की अपील की गई है ताकि तनाव खत्म करने में मदद मिल सके।   

भारत ने किया प्रस्ताव को खारिज 

भारत ने यूरोपियन यूनियन की संसद से पारित इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया है। भारतीय विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि मणिपुर की मौजूदा स्थिति पर भारत सरकार अपना रुख स्पष्ट कर चुकी है। इसके बावजूद यूरोपियन यूनियन की संसद में इस प्रस्ताव को पेश किया गया है। जो कि आपत्तिजनक है।  उन्होंने कहा कि,यह पूरी तरह से भारत का आंतरिक मामला है और हम यूरोपीय संसद में होने वाली घटनाओं से अवगत हैं। यूरोपीय सांसदों से भी इस संबंध में बात की है। 

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