अमेरिका में दिए गए राहुल गांधी के बयानों पर भारतीय जनता पार्टी ने बहुत आक्रामक हमला किया है। यह हमला सिर्फ लोकतांत्रिक आलोचना तक सीमित नहीं है बल्कि राहुल गांधी की जीभ काटने और जान से मारने की धमकी तक पहुंच गया है। राहुल गांधी को देशद्रोही कहना, बीते दिनों की बात हो चुकी है। अब उन्हें आतंकी नंबर एक बताया जा रहा है। विपक्ष के प्रमुख नेता की ऐसी आलोचना क्या किसी लोकतांत्रिक देश में संभव है? राहुल गांधी ने पहले भी ब्रिटेन, अमेरिका और अन्य देशों में भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस की हिंदुत्ववादी सत्ता संस्कृति की आलोचना की है। वे भारत में बढ़ती असहिष्णुता और नफरत के बारे में अपनी राय व्यक्त करते रहे हैं। पहले भी भारतीय जनता पार्टी राहुल गांधी का विरोध करती थी, लेकिन तब हिंसाप्रेरक और उकसाने वाली भाषा नहीं होती थी। इस समय राहुल गांधी को खुलेआम हत्या की धमकी दी जा रही है- 'जो तेरी दादी का हाल हुआ था, वही तेरा भी हो सकता है।' महाराष्ट्र शिवसेना के एक नेता ने राहुल गांधी की जीभ काटने के लिए 11 लाख की सुपारी घोषित कर दी। कांग्रेस ने जब इसका विरोध किया तो एक बीजेपी नेता ने कहा कि राहुल गांधी की जीभ काटने के बजाय जला देनी चाहिए!
इन दिनों राहुल गांधी पर बेहद सुनियोजित ढंग से हमला किया जा रहा है। सिखों के कड़ा और पगड़ी पहनने तथा गुरुद्वारे जाने की स्वतंत्रता की रक्षा वाले बयान पर सिख नेताओं को आगे करके राहुल गांधी को हत्या की धमकी दी गई। जबकि राहुल गांधी ने अन्य सभी धर्मों की स्वतंत्रता के बारे में बात कही थी। आरक्षण पर दिए गए राहुल गांधी के बयान पर भाजपा और भी ज्यादा मुखर है।
आरक्षण खत्म करने संबंधी एक सवाल के जवाब में राहुल गांधी ने कहा था कि सामाजिक भेदभाव, शोषण और अन्याय समाप्त होने तथा सामाजिक समानता स्थापित होने के बाद आरक्षण समाप्त करने पर विचार किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा था कि भारत में अभी ऐसी स्थितियां नहीं हैं। इस बयान को आरक्षण विरोधी बताकर खुद अमित शाह ने ट्वीट किया। भारतीय जनता पार्टी के कई नेताओं के साथ-साथ अन्य दलित पिछड़े नेताओं को राहुल गांधी के खिलाफ बयानबाजी करने के लिए लगा दिया गया। इतना ही नहीं, भारतीय जनता पार्टी की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहयोगी पार्टियों के नेता भी, मसलन चिराग पासवान, जीतनराम मांझी और मायावती ने राहुल गांधी को आरक्षण विरोधी बताते हुए कांग्रेस पर हमला बोला।
दरअसल, भारतीय जनता पार्टी के लिए राहुल गांधी सबसे बड़ी मुसीबत बन गए हैं। राहुल गांधी सामाजिक न्याय की राजनीति कर रहे हैं। उनकी छवि दलित, पिछड़े और आदिवासियों के हितैषी नेता की बन गई है। राहुल गांधी खुलकर जाति जनगणना और आरक्षण बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। आदिवासियों की अस्मिता के सवाल पर उन्होंने नरेंद्र मोदी को भी बनवासी के स्थान पर आदिवासी कहने के लिए मजबूर कर दिया। 1952 से आदिवासियों के बीच काम कर रहे आरएसएस की वैचारिकी को राहुल गांधी ने एक झटके में खत्म कर दिया।
आरएसएस आजादी के आंदोलन के समय से ही हिंदू राष्ट्र स्थापित करने और मनुस्मृति के आधार पर संविधान लिखने की हिमायती रही है। आरक्षण खत्म करने की मुनादी करने वाली आरएसएस घोषित रूप से वर्णव्यवस्था और जातिगत असमानता की समर्थक है। राजनीतिक मजबूरी के चलते पिछले दो-तीन साल से मोहन भागवत ब्राह्मणवाद और आरक्षण के मुद्दे पर संभलकर बोल रहे हैं। यह परिवर्तन आरएसएस की दोगली नीति का परिचायक है। राहुल गांधी ने पिछले दो साल से आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी के सावरकरवादी हिंदुत्व में पलीता लगा रखा है। इसीलिए राहुल गांधी की छवि को तोड़ने के लिए आरक्षण संबंधी बयान को विकृत करके सुनियोजित विरोध किया जा रहा है।
बीजेपी की इस साजिश का खुलासा डॉ. आंबेडकर के प्रपौत्र राजरत्न आंबेडकर ने किया है। एक वीडियो जारी करके राजरत्न आंबेडकर ने कहा है कि राहुल गांधी के खिलाफ बोलने के लिए उन्हें बीजेपी ने अप्रोच किया था।
राजरत्न आंबेडकर ने राहुल गांधी के आरक्षण संबंधी बयान की पड़ताल करते हुए कहा कि जो राहुल गांधी ने बोला, वही आंबेडकरवादी चाहते हैं। दरअसल, हम भी चाहते हैं कि आरक्षण ख़त्म हो। लेकिन जब तक सामाजिक असमानता और अन्याय है, आरक्षण ख़त्म नहीं किया जा सकता। गौरतलब है कि यही बात राहुल गांधी ने कही थी।
यह समझना भी ज़रूरी है कि राजरत्न आंबेडकर का बयान क्यों मायने रखता है? राजरत्न आंबेडकर ना तो राजनीतिक व्यक्ति हैं और ना ही कांग्रेस और राहुल गांधी के समर्थक हैं। राजरत्न आंबेडकर बाबासाहेब आंबेडकर के प्रपौत्र हैं। डॉ. आंबेडकर ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में (1954) बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया का गठन किया था। उसके वर्तमान अध्यक्ष राजरत्न आंबेडकर हैं। बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया के जरिए बाबा साहब सामाजिक जागरूकता और बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार करना चाहते थे। डॉ. आंबेडकर का पहला लक्ष्य सांस्कृतिक जागरण का था। उनका स्पष्ट मानना था कि समाज में सांस्कृतिक जागरण पैदा होने के बाद ही राजनीतिक सत्ता स्थापित हो सकती है। बौद्ध धर्म के सांस्कृतिक जागरण के बाद मौर्य साम्राज्य स्थापित हुआ। इसी तरह शिवाजी की सत्ता स्थापित होने से पूर्व मराठी संतों की वाणी ने सांस्कृतिक जागरण पैदा किया था।
आजादी के आंदोलन में और उसके बाद भी डॉ. आंबेडकर का सबसे बड़ा लक्ष्य सांस्कृतिक जागरण था। इसीलिए उन्होंने लोगों से शिक्षित बनने और अपने इतिहास को जानने के लिए प्रेरित किया। दलितों को इतिहास बताते हुए उन्होंने कहा कि आप उस बुद्धिस्ट परंपरा के वारिस हैं जिसने इस देश में सबसे बड़ा मौर्य साम्राज्य स्थापित किया। बौद्ध धर्म ने हिंदुत्व को पराजित किया और दुनिया के करीब पचास देशों तक पहुंचा। डॉ. आंबेडकर हिन्दू धर्म से मुक्त करके दलितों को पुनः बौद्ध धम्म की ओर मोड़ना चाहते थे। बाबा साहब के दिवंगत होने के बाद बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया का जो काम रुक गया था, उसे वर्तमान में राजरत्न आंबेडकर आगे बढ़ाने में लगे हैं। वे बुद्धिस्ट हैं और पूरी शिद्दत के साथ भारत में ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में जाकर बौद्ध धर्म पर चिंतन, व्याख्यान और संवाद स्थापित करते हैं। उनका लक्ष्य बाबा साहब के उपरोक्त सपने को पूरा करना है। उन्होंने कोई राजनीतिक दल नहीं बनाया। उनकी कोई राजनीतिक आकांक्षा भी नहीं दिखाई पड़ती है।
डॉ. आंबेडकर के परिवार में और भी लोग हैं लेकिन दलितों के बीच आज राजरत्न आंबेडकर सर्वाधिक लोकप्रिय और सम्मानित हैं। इसके कुछ कारण हैं। पहला कारण, डॉ. आंबेडकर से उनकी शक्ल बहुत कुछ मिलती है। पिछले वर्ष गोरखपुर में उनके साथ मंच शेयर करते हुए स्वयं मैंने यह देखा था कि लोग उनमें बाबा साहब का अंश देखकर अभिभूत हैं। लोगों के मन में उनके प्रति अथाह सम्मान है। कुछ बुजुर्ग उनको छूने के लिए रोते हुए मंच पर चढ़ गए। दूसरा कारण खुद उन्होंने इसी मंच पर बताया था। उनका नाम राजरत्न, डॉ. आंबेडकर के बेटे के नाम पर रखा गया। बाबा साहब राजरत्न को बहुत प्यार करते थे। 1926 में राजरत्न बहुत बीमार हो गए। इलाज नहीं मिल पाने के कारण 19 जुलाई 1926 को उनकी मौत हो गई। पैसे के अभाव के कारण बाबासाहब अपने सबसे प्रिय बेटे राजरत्न को नहीं बचा सके। यही नाम राजरत्न आंबेडकर को मिला। राहुल गांधी के आरक्षण संबंधी बयान के संदर्भ में राजरत्न आंबेडकर का वीडियो आने के बाद भाजपा पूरी तरह से नंगी हो गई है।