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अम्बाला सीट पर हार-जीत में डेरा सच्चा सौदा भी अहम फ़ैक्टर

अम्बाला सीट पर हार-जीत में डेरा सच्चा सौदा भी अहम फ़ैक्टर

हरियाणा की अम्बाला लोकसभा सीट पर मुख्य मुक़ाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच है। प्रत्याशियों की हार-जीत में जातिगत समीकरणों के अलावा डेरा सच्चा सौदा भी एक अहम फ़ैक्टर है। 

हरियाणा में आरक्षित अम्बाला लोकसभा सीट पर मौजूदा बीजेपी सांसद रतन लाल कटारिया के सामने कांग्रेस ने पूर्व केन्द्रीय मंत्री राज्यसभा सांसद कुमारी शैलजा को उतारा है। कांग्रेस इसे अपनी सबसे मज़बूत सीटों में शामिल करती है। यहाँ, इनेलो, आप और बीएसपी सहित दूसरे दल भी चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन मुख्य मुक़ाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही है। यहाँ पर प्रत्याशियों की हार-जीत में जातिगत समीकरणों के अलावा डेरा सच्चा सौदा भी एक अहम फ़ैक्टर है।

डेरा सच्चा सौदा श्रद्धालु भी चुनावों में अहम भूमिका निभाते आये हैं। 2014 के विधानसभा चुनावों में डेरा के समर्थक एकजुट बीजेपी के साथ थे जिसके चलते कई विधानसभा क्षेत्रों में बीजेपी प्रत्याशियों को फ़ायदा मिला। लेकिन इस बार डेरा समर्थकों का रुख़ साफ़ नहीं है। अम्बाला लोकसभा क्षेत्र के हलके अम्बाला शहर, अम्बाला छावनी, मुलाना, नारायणगढ़, कालका व यमुनानगर में उनकी तादाद अच्छी ख़ासी है। डेरा प्रमुख जेल में हैं अभी यह देखा जाना है कि राजनेता वोटों के लिए अब किसके आगे गुहार लगाते हैं और बाबा किस पर मेहरबान होते हैं। अम्बाला में निरंकारी अनुयाइयों की तादाद भी ठीक-ठाक है। कहा जाता है कि उनके रुख़ का भी अम्बाला के नतीजों पर असर पड़ता है।

क्या हैं जातिगत समीकरण

पंजाब से अलग होकर हरियाणा के नया प्रदेश बनने के बाद अम्बाला लोकसभा सुरक्षित सीट हमेशा से बेहद ख़ास रही है। चंडीगढ़ से सटे अम्बाला लोकसभा चुनाव क्षेत्र के तहत आने वाले नौ विधानसभा क्षेत्रों में मुलाना व साढौरा रिजर्व हैं, जबकि अम्बाला शहर, अम्बाला छावनी, कालका, पंचकूला, जगाधरी, यमुनानगर व नारायणगढ़ सामान्य हैं। शहरी मतदाताओं की तादाद भी यहाँ ज़्यादा है। अम्बाला शहर, अम्बाला छावनी, कालका, पंचकूला, यमुनानगर और जगाधरी के साथ गाँव भी जुड़े हुए हैं। जो शहरी इलाक़ा ही है।  यहाँ 45 फ़ीसदी मतदाता अनुसूचित और पिछड़ा वर्ग के हैं। लेकिन यहाँ ब्राह्मण, बनिया, पंजाबी व राजपूत वोट बैंक भी इतना बड़ा है कि प्रत्याशी की जीत-हार के फ़ैसले में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होती रही है।

जातिगत लिहाज़ से देखा जाये तो यहाँ अनुसूचित जाति- 2.72 लाख, पिछड़ी जाति- 90,000 वाल्मीकि-99,000 अरोड़ा खत्री-1.72 लाख, ब्राह्मण-1.55 लाख, बनिया, महाजन 1.20 लाख, राजपूत-73,000, जाट 1.15 लाख, गुर्जर-75,000  मुसलिम-37,000, लबाना, 35,000, कम्बोज, 22,000, झीवर-56,000 और सिख (जाट सिख) 1.10 लाख मतदाता हैं।

शैलजा और कटारिया दो-दो बार रहे हैं सांसद

कटारिया मौजूदा लोकसभा सांसद हैं और कुमारी शैलजा राज्यसभा सांसद। दोनों ही इस लोकसभा क्षेत्र से दो-दो बार सांसद चुने जा चुके हैं। इनेलो, आप और बसपा भी अपने-अपने तरीक़े से चुनाव में डटे हैं। लेकिन बीजेपी के लिये इस बार पिछले चुनाव जैसा माहौल यहाँ दिखाई नहीं देता। ग्रामीण इलाक़ों में कटारिया को भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। लोगों का आरोप है कि कटारिया अपने कार्यकाल के दौरान लोगों से दूर रहे। हालाँकि अपने प्रचार में कटारिया केंद्र सरकार के कार्यों का लेखा-जोखा रख रहे हैं।

शैलजा की बेदाग़ छवि 

दो बार अम्बाला से सांसद चुनी गई शैलजा की बेदाग़ छवि कटारिया पर भारी पड़ रही है। शैलजा बीजेपी सांसद की कार्यशैली को ही निशाने पर ले रही हैं। बीजेपी अम्बाला को अपनी परंपरागत सीट मानती है और उसने जब हरियाणा, हरियाणा जनहित कांग्रेस और इनेलो से चुनावी गठबंधन किया तो अम्बाला की सीट हमेशा अपने पास रखी। इस बार इनेलो का वोट बैंक खिसका है, जबकि जेजेपी को पहली बार अपनी ताक़त दिखानी है।

नौ चुनावों में सात बार कांग्रेस जीती

1957 से अब तक देखा जाए तो अम्बाला सीट पर नौ चुनाव में सात बार कांग्रेस का ही शासन रहा, लेकिन 1996 के बाद से कांग्रेस यहाँ अपना करिश्मा दिखाने में कमज़ोर पड़ गई। 11वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में यह सीट बीजेपी और 1998 में बीएसपी के खाते में चली गई। 1999 में रतनलाल कटारिया ने एक बार फिर यह सीट बीजेपी की झोली में वापस डाल दी। हालाँकि, 2004 और 2009 के चुनाव में उन्हें लगातार दो बार हार का सामना करना पड़ा। लेकिन, 2014 में मोदी लहर के सहारे उन्होंने यहाँ से एक बार फिर जीत दर्ज की।

चुनाव आयोग के 31 जनवरी 2019 के नवीनतम आँकड़ों के मुताबिक़ इस बार अम्बाला संसदीय सीट पर 17,81,432 लोग अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। इनमें से पुरुष मतदाता 9,51,899 व महिला मतदाता 8,22,953 हैं। 18 से 35 साल के मतदाताओं की तादाद करीब 42 फ़ीसदी है।

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