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ऑल्ट न्यूज़ : ग़लत तथ्यों पर बनाया गया 'यूपीएससी जिहाद' कार्यक्रम!

ऑल्ट न्यूज़ : ग़लत तथ्यों पर बनाया गया 'यूपीएससी जिहाद' कार्यक्रम!

'यूपीएससी जिहाद' की बात करने वाले सुदर्शन टीवी ने जानबूझ कर तथ्यों को ग़लत रूप से पेश किया, भ्रामक व झूठी जानकारी के आधार पर कार्यक्रम बनाया, जिसकी बहुत चर्चा हुई और जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने फ़िलहाल रोक लगा रखी है।

'यूपीएससी जिहाद' की बात करने वाले सुदर्शन टीवी ने जानबूझ कर तथ्यों को ग़लत रूप से पेश किया, भ्रामक व झूठी जानकारी के आधार पर कार्यक्रम बनाया, जिसकी बहुत चर्चा हुई और जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने फ़िलहाल रोक लगा रखी है।

'ऑल्ट न्यूज़' की पड़ताल पर नज़र डालने से यह साफ हो जाता है कि इस चैनल ने पत्रकारिता के सभी मानदंडों को ताक पर रख कर एक के बाद एक 6 ग़लत दावों के आधार पर कार्यक्रम का पहला एपिसोड बनाया।

अधिक मुसलमान चयनित

सुदर्शन टीवी के इस कार्यक्रम में दावा किया गया है कि यूपीएससी की परीक्षा में मुसलमान उम्मीदवारों की तादाद यकायक बहुत बढ़ गई है। यह साबित करने की कोशिश की गई है कि एक सुनियोजित तरीके से नौकरशाही में मुसलमानों की घुसपैठ कराई जा रही है।

ऑल्ट न्यूज़ ने कहा है कि यूपीएससी की वेबसाइट के आँकड़ों से यह साफ हो जाता है कि कुल पास उम्मीदवारों में मुसलमान उम्मीदवार सिर्फ़ 3 से 5 प्रतिशत ही हैं, जो उनकी आबादी के लिहाज़ से काफी कम है।

कितने मुसलमान

यूपीएससी 2015 में कुल 1078 लोगों का अंतिम रूप से चयन हुआ था, जिसमें 36 मुसलमान थे। इसके अगले साल 2016 में यह तादाद 50 हो गयी, लेकिन उस साल अंतिम चयन होने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ कर 1099 हो गयी थी। उसके बाद 2017 में कुल 990 लोगों का चयन हुआ था, जिसमें 52 मुसलमान थे। साल 2018 में यह संख्या 28 पर आ गयी। इस साल अंतिम चयन होने वालों की संख्या भी घट कर 759 हो गयी थी।

 - Satya Hindi

यानी सिर्फ़ 2017 में ही सिविल सर्विसेज़ परीक्षा में मुसलिमों की संख्या में थोड़ा इज़ाफ़ा हुआ था। लेकिन टीवी के शो में जानबूझ कर 2018 का आंकड़ा गायब कर दिया गया है, जिसमें पिछले साल के मुकाबले संख्या में गिरावट देखी जा सकती थी।

उम्र में छूट

सुदर्शन टीवी का दूसरा ग़लत दावा है कि मुसलमानों को अधिकतम उम्र में छूट दी गई है। हिन्दुओं के लिए अधिकतम उम्र 32 साल है जबकि मुसलमानों के लिए यह सीमा 35 साल रखी गई है।  

लेकिन संघ लोक सेवा आयोग के 12 फ़रवरी, 2020 को जारी नोटिफ़िकेशन में सभी उम्मीदवारों की न्यूनतम आयु सीमा 21 साल है। उच्चतम आयु सीमा 1 अगस्त, 2020 तक 32 साल है। इसमें सभी कैटेगरी में अलग-अलग तरीके से छूट दी गयी है। अनुसूचित जाति - अनुसूचित जनजाति की ऊपरी आयु सीमा में अधिकतम 5 साल की और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए अधिकतम 3 साल की छूट है।

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मुसलिम उम्मीदवारों में पिछड़े वर्ग के लोग ओबीसी को दी गयी ऊपरी आयु सीमा की रियायतें पाने के हक़दार होते हैं। लेकिन यह छूट केवल मुसलमान ही नहीं, हिन्दुओं को भी मिलती है। यह बताना कि ओबीसी का लाभ अकेले मुसलिम उठाते हैं, सरासर ग़लत है।

सुदर्शन न्यूज़ ने जानबूझ कर शरारतपूर्ण तरीके से हिन्दुओं की तुलना जनरल कैटेगरी से की और मुसलमानों को ओबीसी की छूट का हवाला देते हुए ग़लत जानकारी दी कि मुसलमानों को परीक्षा में फ़ायदा मिलता है।

अधिक बार परीक्षा देने की छूट

सुदर्शन टीवी ने यह भी ग़लत दावा किया कि मुसलमान अधिक बार परीक्षा में बैठ सकते हैं। उसने ज़ोर देकर कहा कि हिन्दुओं को 6 बार जबकि मुसलमानों को 9 बार परीक्षा देने की छूट है।

यूपीएससी के नोटिफ़िकेशन में कहा गया है कि ओबीसी, एससी और एसटी के अलावा सभी उम्मीदवार 6 बार परीक्षा दे सकते हैं, विकलांगों को भी 9 मौके मिलते हैं। यह भी ध्यान देने लायक है कि जनरल कैटेगरी में आने वाले मुसलमानों को ही 6 बार ही परीक्षा देने की छूट है।

कम मार्क्स पर चयन

सुदर्शन टीवी के कार्यक्रम में यह भी दावा किया गया है कि मुसलमान उम्मीदवारों का कम मार्क्स पर ही चयन हो जाता है। उनके लिए कट- ऑफ़ मार्क्स कम होता है। यह कट- ऑफ़ मार्क्स धर्म के आधार पर नहीं होता है। इसमें ओबीसी,  के तहत आने वाले मुसलमानों को वही छूट मिलती है जो हिन्दुओं को मिलती है। सुदर्शन टीवी ने चालाकी से हिन्दुओं के जनरल कैटेगरी के उम्मीदवारों के मार्क्स की तुलना मुसलमानों के ओबीसी उम्मदवारो से की, जो निश्चित रूप से कम है।

मुफ़्त कोचिंग

सुदर्शन टीवी ने मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़हर उगलने और पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार को निशाने पर लेने के लिए दावा किया कि मनमोहन सिंह की सरकार ने मुसलमानों के लिए 4 कोचिंग सेन्टर खोले। ये कोचिंग सेंटर मुसलिम बहुल विश्वविद्यालयों में खोले गए।

'द प्रिंट' ने एक ख़बर में कहा है कि केंद्र सरकार ने 2009 और 2010 के बीच 5 कोचिंग सेंटर खोले। सिविल सेवा और अन्य सरकारी परीक्षाओं की तैयारी करवाने के लिए वंचित समुदायों को मुफ़्त आवासीय कोचिंग की सुविधा देने के लिए यह कदम उठाया गया था। राजस्थान के बांसवाड़ा के पुलिस एसपी कवेंद्र सिंह सागर 2014 में जामिया के कोचिंग सेंटर के स्टूडेंट थे। उन्होंने 'द प्रिंट' को कहा है, 'यहां सिर्फ़ मुसलमान ही नहीं बल्कि सभी वंचित समूह, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिलाओं को यह सुविधा दी गयी है।'

लेकिन टीवी कार्यक्रम में जामिया मिलिया इसलामिया को निशाने पर लिया गया और कहा गया कि यह यूपीएससी जिहाद का केंद्र बन चुका है।

सच तो यह है कि सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय एससी और ओबीसी छात्रों को बग़ैर धार्मिक भेदभाव के मुफ़्त कोचिंग देता है।

केंद्र सरकार के अल्प संख्यक मामलों के मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी का कहना है कि 140 से ज़्यादा अल्पसंख्यकों ने परीक्षा पास की है। उन्होंने कहा, 'मोदी सरकार के समावेशी सशक्तिकरण ने सुनिश्चित किया है कि अल्पसंख्यक समुदाय के कई लोग शीर्ष पदों पर पहुंचे हैं।'

कई राज्य सरकारें भी ग़रीब और वंचित समुदाय के छात्रों को मुफ़्त कोचिंग कराती हैं। इसमें दिल्ली, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, केरल और तेलंगाना प्रमुख हैं।

मुसलमानों को तरजीह

आल्ट न्यूज़ के अनुसार सुदर्शन टीवी ने यह भी ग़लत दावा किया कि इंटरव्यू में मुसलमानों को तरजीह दी जाती है। टीवी के मुख्य संपादक सुरशे चह्वाणके कहते हैं, 'मैं आपको मॅाक इंटरव्यू का क्लिप दिखता हूँ। यह एक मॅाक इंटरव्यू है। मैं दावा नहीं कर रहा हूं कि यह असली इंटरव्यू है। तैयारी के लिए तमाम इंटरव्यू लिए जाते हैं। ऐसा ही एक इंटरव्यू सोशल मीडिया से लिया गया है। यह मेरा नहीं है, अगर मैं लेता तो आप कहते यह मैनेज किया हुआ है।' इसके बाद वह एक क्लिप चलाते हैं।

लेकिन वह बहुत ही चालाकी से यह छुपा ले जाते हैं कि यह क्लिप एक प्राइवेट आईएएस कोचिंग सेंटर, दृष्टि आईएएस का है। यह मॅाक इंटरव्यू अज़हरुद्दीन ज़हीरुद्दीन काज़ी का है जिनकी यूपीएससी 2019 परीक्षा में ऑल इंडिया रैंक 315 थी।

ऑल्ट न्यूज़ क कहना है कि इंटरव्यू लेने वाले ने सुदर्शन न्यूज़ पर दिखाई गयी बात वाकई कही थी, लेकिन चैनल ने पूरा नहीं बल्कि वीडियो के कटे हुए हिस्से को दिखाया। ओरिजिनल वीडियो में इंटरव्यूवर कह रहे हैं कि इंटरव्यू में बहुत कम मुसलिम उम्मीदवार क्वालिफ़ाई कर पाते हैं। उन्होंने उम्मीदवार को अपना इंटरव्यू दूसरों से अलग एक्स्पेक्ट करने की सलाह देते हुए कहा, 'हम लगभग सभी कैंडिडेट को यह बात बोलते हैं… इसके फ़ायदे भी हैं, नुक़सान भी हैं।'

दरअसल, इंटरव्यू लेने वाले ने अज़हरुद्दीन काज़ी को इंटरव्यू के दौरान उनके सामाजिक-आर्थिक परिवेश के कारण आने वाली चुनौतियों को गिनवाए ताकि वे बेहतर परफ़ॉर्म कर पायें।

सवाल उठता है कि सुदर्शन ने झूठ पर आधारित यह कार्यक्रम क्यों बनाया वह क्या साबित करना चाहता है वह क्यों नहीं बताता कि पूरे देश में केंद्र सरकार की नौकरियों में कितने मुसलमान हैं वह क्यों नहीं बताता कि अभी भी कितने मुसलमान यूपीएससी की परीक्षा पास कर पाते हैं

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