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आरोपः ईवीएम बनाने वाली कंपनी के 4 स्वतंत्र निदेशक भाजपा से जुड़े हुए हैं 

आरोपः ईवीएम बनाने वाली कंपनी के 4 स्वतंत्र निदेशक भाजपा से जुड़े हुए हैं 

आर्थिक मामलों की खबरें देने वाली वेबसाइट मनी लाइफ डॉट इन ने खबर दी है कि भारत सरकार में सचिव स्तर के अधिकारी रह चुके सेवानिवृत आएएस अधिकारी ईएएस शर्मा ने चुनाव आयोग को पत्र लिख कर कहा है कि ईवीएम बनाने वाली कंपनी के 4 स्वतंत्र निदेशक भाजपा से जुड़े हुए रहे हैं। 

आर्थिक मामलों की खबरें देने वाली वेबसाइट मनी लाइफ डॉट इन ने खबर दी है कि भारत सरकार में सचिव स्तर के अधिकारी रह चुके सेवानिवृत आएएस अधिकारी ईएएस शर्मा ने चुनाव आयोग को पत्र लिख कर कहा है कि ईवीएम बनाने वाली कंपनी के 4 स्वतंत्र निदेशक भाजपा से जुड़े हुए रहे हैं। 

मनी लाइफ डॉट इन की 29 जनवरी को पब्लिश होने वाली एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ईएएस शर्मा ने इस मामले पर भारतीय चुनाव आयोग से स्पष्टीकरण देने को कहा है। साथ ही उन्होंने मांग की है कि संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया जाए कि भाजपा से जुड़े इन व्यक्तियों को निदेशक पद से हटाया जाए। 

उन्होंने मांग की है कि भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) और इसके द्वारा की गई कार्रवाई का विवरण इस देश के लोगों को देखने के लिए सार्वजनिक डोमेन में रखा जाए। उन्होंने अपने पत्र में पूछा है कि क्या भाजपा से जुड़े पदाधिकारी भारत इलेक्ट्रॉनिक्स के मामले चला सकते हैं, जो ईवीएम बनाती है। 

मनी लाइफ डॉट इन की रिपोर्ट कहती है कि ईएएस शर्मा ने मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार और दो अन्य चुनाव आयुक्तों को लिखे पत्र में कहा है कि  मैंने आपके ध्यान में लाया था कि कैसे कम से कम चार ऐसे लोग जो भाजपा से जुड़े हैं को भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) के बोर्ड में "स्वतंत्र" निदेशक के रूप में नामित किया गया है। 

बीईएल इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के लिए सॉफ्टवेयर विकसित करने के अत्यधिक संवेदनशील काम में लगी हुई है।  इसमें उन्होंने आरोप लगाया है कि, इसका तात्पर्य यह है कि एक राजनीतिक दल के रूप में भाजपा की बीईएल के मामलों को चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका है। जिससे यह अपरिहार्य निष्कर्ष निकलता है कि भाजपा बीईएल के कामकाज की निगरानी करती रहती है। 

मेरे द्वारा कुछ समय पहले इस परेशान करने वाले तथ्य को भारतीय चुनाव आयोग के ध्यान में लाने के बावजूद, मुझे लगता है कि आयोग ने जानबूझकर कार्रवाई नहीं करने का फैसला किया है। इससे पता चलता है कि आयोग चुनावों में सत्तारूढ़ भाजपा के पक्ष में चुनावी मैदान को खुलेआम झुकाए जाने को लेकर चिंतित नहीं है। 

उन्होंने सवाल उठाया है कि क्या आयोग को भाजपा के एक महत्वपूर्ण पदाधिकारी को बीईएल के बोर्ड में 'स्वतंत्र' निदेशक के रूप में नामित किया जाना बेहद आपत्तिजनक नहीं लगता है? कंपनी अधिनियम कहता है कि एक स्वतंत्र निदेशक को कंपनी के मामलों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। 

मौजूदा मामले में, यह विशेष कंपनी ईवीएम के निर्माण और आपूर्ति में निकटता से लगी हुई है, खासकर ऐसे समय में जब ईवीएम की तकनीक और इसमें हेरफेर की आशंका के खिलाफ आलोचना बढ़ रही है। 

उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि यह विडंबनापूर्ण है कि, ईवीएम के खिलाफ उठाए गए सवालों पर फिर से विचार करने के लिए सहमत होने के बजाय, भारतीय चुनाव आयोग इसका बचाव करने के दूसरे चरम पर चला गया है। वस्तुतः इसे देवता घोषित कर दिया है, और इस कठोर वास्तविकता से अपनी आंखें बंद कर ली हैं कि कई देशों ने इसका उपयोग बंद कर दिया है।

आयोग ने ईवीएम के वोटों की गिनती को कागजी मतपत्रों के साथ सत्यापित करने से इनकार करके सार्वजनिक चिंता को बढ़ा दिया है। स्पष्ट रूप से, बीईएल में भाजपा से जुड़े व्यक्तियों को स्वतंत्र निदेशकों के रूप में रखने में हितों का टकराव है। 

इससे कई तरह की चिंताएं पैदा होती हैं 

मनी लाइफ डॉट इन की रिपोर्ट कहती है कि ईएएस शर्मा ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों को लिखे पत्र में एक स्वतंत्र निदेशक को लेकर कहा है कि बीईएल की वेबसाइट भाजपा के सदस्य के रूप में उनकी पृष्ठभूमि को गर्व से प्रदर्शित करती है। 

उन्होंने कहा है कि यह तथ्य है कि चुनाव आयोग द्वारा पूरी तरह से समर्थित बीईएल ने अपने स्रोत कोड को एक खुले स्वतंत्र ऑडिट के अधीन करने से इनकार कर दिया है। यह कदम हमारे देश में ईवीएम का उपयोग करने के तरीके और हेरफेर के प्रति उनकी संवेदनशीलता के बारे में जनता की चिंताओं को मजबूत करता है।

ईएएस शर्मा इस पत्र में कहते हैं कि मुझे सबसे अधिक परेशान करने वाली बात यह लगी है कि चुनाव आयोग, स्पष्ट रूप से एक संवैधानिक प्राधिकारी के रूप में स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से चुनाव कराने के संरक्षक के रूप में अपनी भूमिका को पूरी तरह से महसूस नहीं कर रहा है। 

उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा है कि क्या चुनाव आयोग को इस बात पर अपनी आंख बंद कर लेनी चाहिए कि सत्तारूढ़ राजनैतिक दल ने बीईएल के मामलों को चलाने के लिए अपने चार प्रतिनिधियों को नियुक्त करवाया है। क्या इसका मतलब यह नहीं है कि भारतीय चुनाव आयोग अब खुद को एक स्वतंत्र संवैधानिक प्राधिकरण नहीं मानता है? 

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