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ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे जारी रहेगाः इलाहाबाद हाईकोर्ट

ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे जारी रहेगाः इलाहाबाद हाईकोर्ट

वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में एएसआई सर्वे जारी रहेगा। यह सर्वे इसलिए होना है, ताकि पता लगाया जा सके कि मस्जिद क्या किसी मंदिर के खंडहर पर बनाई गई थी। इस खबर को जल्द ही और अपडेट किया जाएगा। 

वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे पर इलाहाबाद हाईकोर्ट गुरुवार 3 अगस्त को अपना फैसला सुना दिया। हाईकोर्ट ने मस्जिद कमेटी की आपत्तियों को खारिज करते हुए एएसआई को निर्देश दिया है को वो सर्वे का काम जारी रखे। अदालत ने कहा कि इंसाफ के लिए ऐसा करना जरूरी है।

वाराणसी जिला अदालत ने 21 जुलाई को चार महिलाओं की याचिका के आधार पर एएसआई सर्वे का आदेश दिया था। उसमें दावा किया गया था कि यह तय करने का एकमात्र तरीका है कि ऐतिहासिक मस्जिद एक हिंदू मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी या नहीं। ज्ञानवापी मस्जिद मशहूर काशी विश्वनाथ मंदिर के ठीक बगल में स्थित है।

एएसआई ने 24 जुलाई को इसका सर्वे शुरू किया था, लेकिन मस्जिद समिति के संपर्क करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कुछ ही घंटों के भीतर इस पर रोक लगा दी थी। मस्जिद समिति ने तर्क दिया था कि यह मस्जिद एक हजार साल से अधिक पुरानी है और कोई भी खुदाई इसे अस्थिर कर सकती है, जिससे यह गिर सकती है। समिति ने यह भी तर्क दिया था कि ऐसा कोई भी सर्वे धार्मिक स्थलों के आसपास मौजूदा कानूनों का उल्लंघन है।

हालाँकि, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया था कि सर्वे किसी भी तरह से मस्जिद की बनावट में बदलाव नहीं करेगा और उसने जोर दिया कि वहां "एक ईंट भी नहीं हटाई गई है और न ही इसकी योजना बनाई गई है।"

भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि सर्वे योजना में केवल माप, फोटोग्राफी और रडार अध्ययन शामिल हैं। अदालत ने याचिकाकर्ताओं को आदेश को चुनौती देने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट जाने की अनुमति दी। 26 और 27 जुलाई को मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने गुरुवार 3 अगस्त के लिए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

ज्ञानवापी मस्जिद मामला 2021 में तब सुर्खियों में आया था जब महिलाओं के एक समूह ने साल के सभी दिनों में ज्ञानवापी परिसर में हिंदू देवताओं की पूजा करने की अनुमति के लिए वाराणसी की निचली अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

पिछले साल अप्रैल में कोर्ट ने इस याचिका के आधार पर परिसर के वीडियो सर्वेक्षण का आदेश दिया था। जब मई में सर्वे किया गया, तो वहां एक संरचना की कथित खोज की गई जिसके बारे में याचिकाकर्ताओं का दावा था कि वह 'शिवलिंग' है।

हालांकि, मस्जिद प्रबंधन समिति ने कहा कि वो चीज 'वज़ूखाना' में एक फव्वारा है, जिससे पानी आता रहता है जहां लोग नमाज पढ़ने से पहले अपने शरीर को स्वच्छ करने के लिए अपने हाथ और पैर धोते हैं। इसे वजू कहा जाता है। मामले की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उसी महीने कथित 'शिवलिंग' वाले वजूखाना को सील करने का आदेश दिया था।

पिछले साल सितंबर में, वाराणसी जिला जज, जिनके पास मामला सुप्रीम कोर्ट द्वारा ट्रांसफर किया गया था, ने मस्जिद समिति की चुनौती को खारिज कर दिया, जिसमें तर्क दिया गया था कि परिसर के अंदर हिंदू देवताओं की पूजा करने का महिलाओं का अनुरोध सुनवाई योग्य नहीं था।

इस साल मई में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी समिति की याचिका को खारिज कर दिया। ज्ञानवापी मस्जिद उन कई मस्जिदों में से एक है, जिनके बारे में कुछ लोगों का मानना ​​है कि इन्हें हिंदू मंदिरों के खंडहरों पर बनाया गया था। यह अयोध्या और मथुरा के अलावा तीन मंदिर-मस्जिद विवादों में से एक था, जिसे भाजपा ने 1980 और 1990 के दशक में उठाया था।

योगी का चौंकाने वाला बयान

ज्ञानवापी मस्जिद पर हाल ही में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने बयान दिया था कि इसे मस्जिद कहने पर दिक्कत होगी। उन्होंने यह भी कहा था कि इस ऐतिहासिक भूल को सुधारते हुए दूसरे पक्ष को यह क्षेत्र हिन्दू पक्ष को सौंप देना चाहिए। मुख्यमंत्री योगी के इस बयान से सरकार की इतनी स्पष्ट मंशा पहली बार सामने आई है। लेकिन कुल मिलाकर ज्ञानवापी पर अदालत का फैसला ही मान्य होगा, जिसे लंबी प्रक्रिया से गुजरना है।

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