बीजेपी से सीट बँटवारे पर सहमति नहीं, अकाली दल नहीं लड़ेगा दिल्ली चुनाव
केंद्र सरकार में एनडीए का सहयोगी शिरोमणी अकाली दल अब बीजेपी के साथ दिल्ली का चुनाव नहीं लड़ेगा। पहले नागरिकता क़ानून व एनआरसी पर खटपट और फिर चुनाव में सीटों के बँटवारे पर सहमति नहीं बन पाने के बाद अकाली दल ने चुनाव नहीं लड़ने की बात की पुष्टि की। कहा जा रहा है कि दोनों दलों के बीच इस पर भी विवाद था कि बीजेपी चाहती थी कि अकाली दल के नेता बीजेपी के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ें। 2015 में भी अकाली दल के चार में से दो उम्मीदवार उसी फ़ॉर्मूले पर चुनाव लड़े थे। तब आम आदमी पार्टी ने चुनाव में ज़बरदस्त प्रदर्शन करते हुए 67 सीटें जीती थीं और अकाली दल एक भी सीट नहीं जीत पाया था।
हालाँकि, चुनाव में सीट बँटवारे की बात नहीं बनने की बात से ज़्यादा अकाली दल इस पर ज़ोर देत रही है कि नागरिकता क़ानून को लेकर दोनों दलों के बीच में खटपट है। इससे पहले शिरोमणि अकाली दल के प्रवक्ता दलजीत सिंह चीमा ने भी दिन में कहा था कि उनके दल का नागरिकता संशोधन क़ानून यानी सीएए पर जो रुख है उससे बीजेपी खफ़ा हो गई है और उसने निर्णय किया कि दिल्ली चुनाव में गठबंधन नहीं होगा।
बता दें कि जब पंजाब की विधानसभा में विवादास्पद नागरिकता संशोधन क़ानून को रद्द करने वाला प्रस्ताव पास किया गया था तब इस प्रस्ताव का बीजेपी के सहयोगी शिरोमणि अकाली दल ने भी समर्थन किया था। अकाली दल वही दल है जिसने संसद में नागरिकता संशोधन विधेयक का समर्थन किया था। प्रस्ताव का समर्थन करते हुए अकाली दल के नेता बिक्रम मजीठिया ने कहा था, 'यदि लोगों को लाइन में खड़ा होना पड़े और यह साबित करना पड़े कि उनका जन्म कहाँ हुआ था तो हम ऐसे किसी क़ानून के ख़िलाफ़ हैं।'
जो बात पंजाब सरकार के प्रस्ताव में कही गई है वही बात अकाली दल भी कहता रहा है। प्रस्ताव में कहा गया है कि नागरिकता क़ानून संविधान के अनुच्छेद 14 का भी उल्लंघन है, जो सभी व्यक्तियों को क़ानूनों की समानता और समान सुरक्षा के अधिकार की गारंटी देता है। अकाली दल ने भी आज यही कहा कि वह ऐसे क़ानून का समर्थन नहीं करेगा जो धर्म और जाति के आधार पर बाँटता हो।