+
राज्यसभा चुनाव: कांग्रेस के भीतर हुई टिकटों की बंदरबांट?

राज्यसभा चुनाव: कांग्रेस के भीतर हुई टिकटों की बंदरबांट?

कांग्रेस के राज्यसभा उम्मीदवारों की सूची में चौंकाने वाली बात यह है कि पार्टी को महाराष्ट्र से कोई मराठी, छत्तीसगढ़ से कोई छत्तीसगढ़ी और राजस्थान से कोई राजस्थानी नेता नहीं मिला। 

कांग्रेस ने राज्यसभा उम्मीदवारों की जो सूची जारी की है उसे देखकर खुद कांग्रेसी हैरान हैं। ऐसा नहीं है कि इनमें कोई नाम नया है या कोई उम्मीदवार अयोग्य है। बल्कि, हैरानी की वजह यह है कि राजनीतिक नजरिए से इस सूची में कोई रणनीति नज़र नहीं आती। 

राज्यसभा उम्मीदवारों की सूची में प्रियंका गांधी का नाम नहीं है तो यही वह इकलौती महत्वपूर्ण बात है जो कांग्रेस नेतृत्व को नैतिक बल देती है।

राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे प्रदेश जहां कांग्रेस चुनाव में जाने की तैयारी कर रही है वहां से कोई राजस्थानी या छत्तीसगढ़ी राज्यसभा में न जाए तो यह हैरान करने वाला निर्णय लगता है। 

राजस्थान और छत्तीसगढ़ के लिए यह भावनात्मक मुद्दा हो सकता है जिस बारे में शायद कांग्रेस नेतृत्व सोच नहीं सका है। कमोबेश ऐसी ही भावना का सामना महाराष्ट्र में भी कांग्रेसजनों को विधानसभा चुनाव के वक्त करना पड़ सकता है।

गहलोत-पायलट ने क्यों होने दी बंदरबांट?

राजस्थान से राज्यसभा के लिए तीन नामों को तय किया गया है- रणदीप सुरजेवाला, मुकुल वासनिक और प्रमोद तिवारी। तीनों नेता बड़े हैं लेकिन इनमें से किसी का संबंध राजस्थान से नहीं है। दो सवाल तुरंत पैदा होते हैं। क्या कोई राजस्थानी नेता राज्यसभा के योग्य नहीं मिला? 

दूसरा सवाल पैदा होता है कि राजस्थान से बाहर के उम्मीदवारों पर राजस्थानी नेतृत्व को कोई आपत्ति क्यों नहीं हुई? 

 - Satya Hindi

दोनों ही सवालों के जवाब तलाशने के लिए भी कई सवाल करने होंगे। क्या राजस्थान में अगले विधानसभा चुनाव के लिए चेहरा तय कर लिया गया है? या चेहरा तय करने से पहले भावी चेहरों के सामने ‘समर्पण’ दिखाने की अघोषित शर्त थोप दी गयी है? 

आखिर क्यों मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट को इस बात पर नाराज़गी नहीं होनी चाहिए कि राजस्थान के हिस्से से राज्यसभा जाने वाले नेताओं का हक छीन लिया गया है? 

अगर नाराज़गी नहीं है तो क्या यह अंदरखाने किसी मोल-तोल का नतीजा है? अगर हां, तो इसे कांग्रेस के भीतर बची-खुची मलाई की बंदरबांट क्यों नहीं माना जाए?

छत्तीसगढ़ नेतृत्व ने ‘समर्पण’ किया या हुई मोल-तोल?

छत्तीसगढ़ की स्थिति भी राजस्थान जैसी है। छत्तीसगढ़ के नेताओं को राज्यसभा भेजने के बजाए रंजीत रंजन और राजीव शुक्ला को यहां से राज्यसभा उम्मीदवार बनाया गया है। बिहार और यूपी में कांग्रेस विधानसभा चुनाव में फिसड्डी साबित हुई। 

लोकसभा चुनावों में भी ऐसे नेता कांग्रेस की ताकत में कुछ बढ़ोतरी कर पाएंगे, ऐसा नहीं लगता। फिर इन नेताओं के लिए दूसरे प्रदेश का हक क्यों छीना गया? छत्तीसगढ़ के लोगों को इससे क्या फायदा होगा?- इसका जवाब जनता जरूर कांग्रेस से पूछती रहेगी। 

 - Satya Hindi

राजस्थान और छत्तीसगढ़ दोनों प्रदेशों में कांग्रेस की सरकार है और दोनों ही जगहों पर नेतृत्व बदलने की आवाज़ उठती रही है क्योंकि नेतृत्व ने अपने ही नेताओं से ऐसा वादा कर रखा था। दोनों ही प्रदेशों में मुख्यमंत्री या इस पद पर दावे कर रहे नेताओं की चुप्पी है। 

दोनों ही राज्यों में चुनाव भी होने वाले हैं और जनता के बीच यह मुद्दा जरूर उठेगा कि छत्तीसगढ़ हो या राजस्थान- इनका हक क्यों छीन लिया गया?

महाराष्ट्र में भी बवाल

महाराष्ट्र एक और प्रदेश है जहां कांग्रेस अपने दम पर तो नहीं लेकिन गठबंधन सरकार में है। यहां से वह एक उम्मीदवार को राज्यसभा भेजने की क्षमता रखती है। यहां भी कांग्रेस को कोई मराठी नेता नहीं मिल सका। यूपी के कांग्रेसी नेता इमरान प्रतापगढ़ी को वफादारी का इनाम कांग्रेस देना चाहती थी मगर ऐसा करते हुए महाराष्ट्र के वफादार कांग्रेसियों की अनदेखी तो हुई। 

फिल्म अभिनेत्री नगमा ने ट्वीट कर पूछा है कि 18 साल की उनकी वफादारी में इमरान प्रतापगढ़ी के मुकाबले क्या कमी रह गयी? ऐसे सवाल कई नेताओं के मन में होंगे। कुछ सामने आएंगे, कुछ नहीं आएंगे।

हुड्डा के डर से भागे सुरजेवाला?

कांग्रेस की सूची में चौंकाने वाली बात यह भी लगती है कि रणदीप सुरजेवाला को हरियाणा से राज्यसभा उम्मीदवार नहीं बनाकर अजय माकन को बनाया गया है। रणदीप सुरजेवाला हरियाणा के मूल निवासी हैं। यहीं से वे दो बार विधायक और हुड्डा मंत्रिपरिषद के सदस्य रह चुके हैं। प्रदेश में कांग्रेस के वरिष्ठ पदों पर भी रह चुके हैं। 

इसके बावजूद हरियाणा से उन्हें उम्मीदवार बनाना कांग्रेस नेतृत्व को सुरक्षित क्यों नहीं लगा? ऐसा लगता है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा और रणदीप सुरजेवाला के बीच 36 के आंकड़ों के कारण कांग्रेस नेतृत्व जोखिम उठाने को तैयार नहीं हुआ। 

अगर ऐसा है तो यह नेतृत्व की मजबूती नहीं, कमजोरी को बताता है कि रणदीप सुरजेवाला जैसे कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और मुख्य प्रवक्ता को भी पार्टी उनके ही मातृ प्रदेश से उम्मीदवार नहीं बना सकती। अजय माकन को हरियाणा से राज्यसभा उम्मीदवार बनाए जाने से पता चलता है कि नाम तय करने में भूपेंद्र सिंह हुड़्डा महत्वपूर्ण फैक्टर रहे। 

खुशकिस्मत रहे विवेक तन्खा

तमिलनाडु से पी. चिदम्बरम, कर्नाटक से एस. जयरमेश जैसे नाम राज्यसभा के लिए चुने गये हैं तो इस पर शायद ही कोई सवाल खड़े हो। मध्यप्रदेश से विवेक तन्खा को दोबारा राज्यसभा भेजा जा रहा है तो इस फैसले पर भी कोई सवाल नहीं बनता। 

जी-23 का सदस्य होकर भी विवेक तन्खा खुशनसीब हैं कि उनका हश्र आनन्द शर्मा, गुलाम नबी आज़ाद जैसे नेताओं की तरह नहीं हुआ। न ही उन्हें कपिल सिब्बल की तरह राज्यसभा के लिए कांग्रेस छोड़नी पड़ी और निर्दलीय उम्मीदवार बनकर किसी राजनीतिक दल के साथ साठगांठ करनी पड़ी। 

कांग्रेस ने राज्यसभा में भेजने के लिए जो टीम चुनी है उसमें कोई नाम चौंकाने वाला नहीं है। चौंकाने वाली बात सिर्फ इतनी है कि महाराष्ट्र से कोई मराठी नहीं मिला, तो छत्तीसगढ़ से कोई छत्तीसगढ़ी।राजस्थान से भी कोई राजस्थानी नेता नहीं खोज पायी कांग्रेस जबकि हरियाणा से दिल्ली के नेता राज्यसभा जाएंगे तो जो हरियाणा के हैं वो राजस्थान से चुने जाएंगे। यह स्थिति बताती है कि राज्यसभा की सीटों की कांग्रेस के भीतर बंदरबांट हुई है।

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें