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राहुल की करीबी की वजह से मिला अजय माकन को कोषाध्यक्ष पद?

राहुल की करीबी की वजह से मिला अजय माकन को कोषाध्यक्ष पद?

कांग्रेस ने दिल्ली के प्रमुख नेता अजय माकन को अपना राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष पद सौंपा है। अभी तक पवन कुमार बंसल इस पद को संभाल रहे थे। अजय माकन पिछले दिनों राजस्थान कांग्रेस में आए संकट के दौरान चर्चा में आए थे। लेकिन अचानक ही उन्हें इस पद के मिलने की वजहें तलाशी जा रही हैं। 

कांग्रेस ने रविवार को दिल्ली के वरिष्ठ नेता और पूर्व महासचिव अजय माकन को पूर्व रेल मंत्री और चंडीगढ़ के पूर्व लोकसभा सांसद पवन कुमार बंसल की जगह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का कोषाध्यक्ष नियुक्त किया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की ओर से जारी एक आदेश में कहा गया कि पार्टी बंसल की सेवाओं की सराहना करती है।

बंसल को दिसंबर 2020 में एआईसीसी का अंतरिम कोषाध्यक्ष नियुक्त किया गया था। वो लगभग तीन वर्षों से इस पद पर बने हुए थे। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस साल 20 अगस्त को पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा घोषित पुनर्गठित कांग्रेस कार्य समिति की नियमित सदस्यता से बाहर किए जाने के बाद से बंसल एआईसीसी कोषाध्यक्ष के कार्यालय में जा ही नहीं रहे थे। इसलिए खड़गे ने माकन की नियुक्ति की।

कांग्रेस में कोषाध्यक्ष पद पर हमेशा भरोसेमंद नेता को सौंपा जाता रहा है। सीताराम केसरी इसकी मिसाल हैं। वो जब तक जिन्दा रहे कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रहे। फिर अहमद पटेल आए। पटेल के निधन के बाद पवन कुमार बंसल को लाया गया था। खड़गे अब कांग्रेस में नई टीम खड़ी कर रहे हैं और अधिकांश पर अब राहुल गांधी समर्थक ही हैं। लेकिन अजय माकन की नियुक्ति चौंकाने वाली है।

पिछले दिनों राजस्थान में जब सचिन पायलट ने बगावत कर दी तो खड़गे ने अजय माकन के नेतृत्व में एक टीम को राजस्थान संकट हल करने के लिए भेजा था। आरोप था कि माकन ने वहां सचिन पायलट का पक्ष ले लिया और उसी तरह की रिपोर्ट कांग्रेस आलाकमान को भेज दी। लेकिन अशोक गहलोत और उनके समर्थकों ने बाजी पलट दी। खड़गे, माकन और सचिन पायलट को पीछे हटना पड़ा। हालांकि उस समय अजय माकन की गतिविधियों को पार्टी के नजरिए से सही नहीं माना गया, लेकिन समझा जाता है कि माकन राष्ट्रीय नेतृत्व के इशारे पर काम कर रहे थे, जो पायलट को सीएम बनाना चाहता था।

गहलोत के बाजी पलटने के बाद अजय माकन वापस लौटे औऱ राजस्थान के प्रभारी महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया था। माकन के पास फिलहाल कोई काम नहीं था लेकिन पार्टी उनसे महत्वपूर्ण काम ले रही थी। इसी क्रम में वो छत्तीसगढ़ मिशन पर पार्टी की स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्य के रूप में रायपुर में थे। वहीं पर उन्हें अपने कोषाध्यक्ष पद पर नियुक्ति की सूचना मिली थी। उन्होंने खड़गे का शुक्रिया अदा करने के अलावा इस नियुक्ति के लिए सोनिया गांधी और राहुल गांधी का भी शुक्रिया अदा किया।

अजय माकन की नियुक्ति से यह भी साफ हो गया कि दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर हाल ही अरविंदर सिंह लवली की नियुक्ति भी माकन की सलाह पर की गई थी। इस तरह दिल्ली प्रदेश कांग्रेस में माकन युग लौट रहे है। कांग्रेस जानती है कि लोकसभा चुनाव में और पार्टी को दिल्ली में खड़ी करने के लिए ऐसे नेताओं की जरूरत है जिनकी जनता में अपील हो। अरविंदर सिंह लवली जमीनी नेता माने जाते हैं। इसी तरह दिल्ली में अब कई पुराने चेहरों की वापसी हो रही है। यहां यह साफ करना जरूरी है कि अजय माकन और लवली दोनों ही आम आदमी पार्टी से किसी भी तरह का गठबंधन किए जाने के खिलाफ हैं। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस की राजनीति अब पूरी तरह से बदल जाएगी।

बंसल की नाराजगी

सीडब्ल्यूसी में जब पवन कुमार बंसल को बतौर विशेष आमंत्रित भी नहीं रखा गया तो वो नाराज हो गए। उन्होंने अपने कोषाध्यक्ष दफ्तर में जाना बंद कर दिया। उन्होंने कई जगह सामने आया कि कांग्रेस कोषाध्यक्ष पद को कमजोर किया जा रहा है, जबकि यह महत्वपूर्ण पद होता है। क्योंकि कांग्रेस प्रोटोकॉल के मुताबिक कांग्रेस अध्यक्ष के बाद कोषाध्यक्ष पद सबसे महत्वपूर्ण होता है। उन्होंने इसकी शिकायत सोनिया गांधी और राहुल गांधी से भी की थी। बंसल की नाराजी की एक वजह यह भी थी कि सीडब्ल्यूसी में जब जी23 के नेता और शशि थरूर, सचिन पायलट जैसे असंतुष्ट नेता तक जगह पा सकते हैं तो वो क्यों नहीं। बताया जाता है कि सोनिया और राहुल ने कहा कि खड़गे के निर्णय में गांधी परिवार कोई दखल नहीं देना चाहता। इस तरह गांधी परिवार के नजदीक होने के बावजूद बंसल की नाराजगी दूर नहीं हो सकी। 

कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद खड़गे ने संगठन को जिन्दा करने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए। इस वजह से पार्टी काफी गतिशील नजर आई। जमीन से जुड़े नेताओं को पद सौंपने के उनके फैसले की काफी तारीफ भी हुई। बंसल प्रकरण से साफ हो गया कि गांधी परिवार ने उन्हें पार्टी को जिन्दा करने की जिम्मेदारी सौंपी है। पवन कुमार बंसल चंडीगढ़ से लंबे समय तक सांसद रहे। लेकिन कांग्रेस के अंदर और बाहर उनकी मास अपील कभी नहीं रही। 

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