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असम की राजनीति में बड़े बदलाव के संकेत, कांग्रेस और एआईयूडीएफ़ में गठबंधन

असम की राजनीति में बड़े बदलाव के संकेत, कांग्रेस और एआईयूडीएफ़ में गठबंधन

बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्व में एआईयूडीएफ़ ने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने पर सहमति जताई है।

कांग्रेस को हराने के लिए असम की राजनीति में आने के सोलह साल बाद इत्र विक्रेता बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्व में ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ़) ने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने पर सहमति जताई है।

रविवार को अजमल की अध्यक्षता में एआईयूडीएफ़ की कोर कमेटी ने चुनावों से पहले ‘महागठबंधन’ बनाने और सीट-बँटवारे की व्यवस्था के साथ चुनाव लड़ने के कांग्रेस के प्रस्ताव को औपचारिक रूप से मंजूरी दे दी। कोर कमेटी की बैठक के तुरंत बाद अजमल ने गौहाटी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (जीएमसीएच) का दौरा किया और कांग्रेस के दिग्गज नेता और तीन बार के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई से मुलाक़ात की, जो कोविड -19 स्वास्थ्य मुद्दों के साथ वहाँ भर्ती हैं। अजमल ने गोगोई से मुलाक़ात के बाद पत्रकारों से कहा, ‘कांग्रेस के साथ हमारा गठबंधन निश्चित हो चुका है। जैसे ही गोगोई को अस्पताल से छुट्टी दी जाएगी, हम सारी औपचारिकताएँ तय करने के लिए विस्तृत चर्चा करेंगे।’

गोगोई ने एक बार अजमल का यह कहते हुए मज़ाक़ उड़ाया था कि ‘बदरुद्दीन कौन है।’ लेकिन प्रमुखता बढ़ने के बाद अजमल की पार्टी के प्रति गोगोई का रुख बदल गया। एआईयूडीएफ़ ने 2014 के आम चुनावों में 14 लोकसभा सीटों में से तीन और 2016 में 126 विधानसभा सीटों में से 13 जीतीं। वास्तव में इस बार, कांग्रेस के सूत्रों के अनुसार, गोगोई ने बीजेपी और उसके क्षेत्रीय सहयोगियों को हराने के लिए अजमल की पार्टी के साथ हाथ मिलाने के लिए स्वयं पहल की। बीजेपी ने 2016 में कांग्रेस से सत्ता हासिल की थी। 2001 से 2016 तक गोगोई सीएम थे।

3 अक्टूबर, 2005 को अपने वोट बैंक के रूप में अल्पसंख्यकों के साथ गठित एआईयूडीएफ़ ने बीजेपी की तुलना में कांग्रेस को अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी मानते हुए चुनाव लड़ा। इसकी वैचारिक प्रतिद्वंद्वी बीजेपी असम में 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद एक विकल्प के रूप में उभर रही थी। बीजेपी ने दो क्षेत्रीय शक्तियों असम गण परिषद (एजीपी) और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) के साथ मिलकर 2016 में असम में अपनी पहली सरकार बनाई।

जब इंगित किया गया कि कांग्रेस को अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी मानते हुए एआईयूडीएफ़ का गठन किया गया था, तो पार्टी महासचिव अमीनुल इसलाम ने कहा, 

‘राजनीति में कोई स्थायी दुश्मन या दोस्त नहीं होता है। हम अब सभी बीजेपी विरोधी दलों के साथ हाथ मिलाने और बीजेपी की सांप्रदायिक राजनीति और जन-विरोधी नीतियों को हराने के लिए तैयार हैं।


अमीनुल इसलाम, महासचिव, एआईयूडीएफ़

सूत्रों ने कहा कि कांग्रेस और एआईयूडीएफ़ दोनों अब बीपीएफ़ में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं। बीपीएफ़ का बीजेपी के साथ रिश्ता बिगड़ता जा रहा है। 2016 के चुनावों में बीपीएफ़ ने 12 सीटें जीतीं और वह बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार की सहयोगी है। लेकिन बीजेपी इस बार बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद क्षेत्रों में बीपीएफ़ के विरोध में यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल के साथ जा सकती है। 

कांग्रेस और एआईयूडीएफ़ आसू और असम जातीयतावादी युवा छात्र परिषद द्वारा गठित असम जातीय परिषद और अखिल गोगोई के केएमएसएस द्वारा गठित राइज़र दल को भी 'महागठबंधन' में शामिल होने के लिए मनाने की कोशिश कर रहे हैं।  

पहले गोगोई जैसे दिग्गज कांग्रेस नेता कहते रहे हैं कि एआईयूडीएफ़ एक ‘सांप्रदायिक’ पार्टी और बीजेपी की ‘बी टीम’ है, जो कांग्रेस के वोट को काटने के लिए उम्मीदवार खड़ी करती है। प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की पहले यह राय थी कि असम में, जो पहचान के मुद्दों से भड़का हुआ है, एआईयूडीएफ़ के साथ किसी भी गठबंधन को सांप्रदायिक रूप से ध्रुवीकरण माना जा सकता है, जिससे बीजेपी को मदद मिलेगी।

बीजेपी ने पहले भी असम में कई बार कांग्रेस-एआईयूडीएफ़ गुप्त समझौते का आरोप लगाया है, भले ही कांग्रेस ने इस साल के शुरू में राज्यसभा सीट के लिए गठबंधन से पहले हमेशा इस बात से इनकार किया हो।

बीजेपी नेता यह भी बताते हैं कि 2019 के आम चुनावों में एआईयूडीएफ़ ने कलियाबोर निर्वाचन क्षेत्र में तरुण गोगोई के बेटे गौरव गोगोई के ख़िलाफ़ उम्मीदवार नहीं उतारा था। गौरव ने सीट जीती - लेकिन तब, उन्होंने 2014 में भी सीट जीती थी, जब एआईयूडीएफ़ ने उनके ख़िलाफ़ उम्मीदवार खड़ा किया था।

हालाँकि अतीत में दोनों के बीच एक गठबंधन को लेकर सुगबुगाहट होती रही है, लेकिन कभी भी उनके बीच आधिकारिक समझौता नहीं हुआ था।

कांग्रेस की राज्य इकाई के अध्यक्ष और राज्यसभा के सदस्य रिपुन बोरा ने कहा, ‘कोई भी व्यक्ति जो बीजेपी को सत्ता से हटाना चाहता है, हम उनसे जुड़ने की अपील करते हैं। हम बीजेपी विरोधी राजनीतिक मोर्चा बनाएँगे।’ 

अतीत के मतभेदों को भूलना होगा: एआईयूडीएफ़

बोरा ने बताया कि 2016 में बीजेपी ने अगप, बीपीएफ़ और जातीय समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले अन्य समूहों के साथ गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा था। उन्होंने कहा, ‘हम अकेले लड़े थे - इस बार हम गठबंधन बनाकर लड़ेंगे।’

एआईयूडीएफ़ के महासचिव अमीनुल इसलाम ने कहा, ‘हमें अतीत के मतभेदों को भूलना होगा, और एक सामान्य न्यूनतम कार्यक्रम के माध्यम से असमिया लोगों और असम के भविष्य को सुरक्षित करने की दिशा में काम करना होगा। हम उम्मीद कर रहे हैं कि हाल में गठित सभी आंचलिक दल हमारे साथ आएँगे।’

कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार इस साल की शुरुआत में राज्य में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) के विरोध में हुए जन आंदोलन ने स्थिति बदल दी है। विरोध प्रदर्शनों के ज़रिये पूरे राज्य में बीजेपी के ख़िलाफ़ आक्रोश व्यक्त किया गया।

1985 असम समझौते ने असम में ‘अवैध विदेशियों’ का पता लगाने के लिए 24 मार्च, 1971 की मध्यरात्रि की कट-ऑफ़ निर्धारित की - असम एनआरसी में उसी कट-ऑफ़ का उपयोग किया गया है। असम में विपक्ष और सामाजिक-राजनीतिक समूहों के अनुसार सीएए के प्रावधानों ने 31 दिसंबर, 2014 तक गैर-मुसलिम प्रवासियों को स्वीकार करने के लिए कट-ऑफ़ का विस्तार करके असम समझौते का उल्लंघन किया है।

राज्य कांग्रेस प्रमुख बोरा ने कहा, ‘एआईयूडीएफ़ असम समझौते पर विश्वास करती है और इसके कार्यान्वयन का समर्थन करती है। एआईयूडीएफ़ सीएए के ख़िलाफ़ है। वह असम के लोगों के हित में हैं। वह सांप्रदायिक नहीं हैं - वह हिंदू विरोधी नहीं हैं, लेकिन बीजेपी मुसलिम विरोधी है। बेशक, वह उस समुदाय के लिए काम कर रही है जिसका वह प्रतिनिधित्व करती है, और यह अपराध नहीं है। असम की समस्या एआईयूडीएफ़ नहीं है - समस्या बीजेपी द्वारा कुशासन है और हम इस कुशासन को समाप्त करने के लिए लड़ेंगे।’

कांग्रेस प्रवक्ता रितुपुर्णा कोंवर ने कहा, 'सीएए से पहले स्थिति अलग थी। लेकिन सीएए के बाद हमें ऐसे दलों और समूहों का एक बड़ा गठबंधन चाहिए जो असम समझौते में विश्वास करते हैं, और जो सीएए और बीजेपी के विरोध में हैं।’

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