जानिए, ख़राब हवा से कौन सी बीमारियाँ हो सकती हैं
भले ही आपको ख़राब हवा से गले में जलन, आँखों से पानी आना, साँस लेने जैसी मामूली परेशानी लगती हो लेकिन यह स्वास्थ्य के लिए होती है ख़तरनाक। इससे कई गंभीर बीमारियाँ हो सकती हैं।
ख़राब हवा का असर स्वास्थ्य पर कैसा होता है यह इस बात से पता चलता है कि भारत में हर आठ मौतों में से एक मौत वायु प्रदूषण के कारण होती है। लांसेट प्लेनेट्री हेल्थ जर्नल के अनुसार, सीधे-सीधे वायु प्रदूषण या इसके कारण होने वाली बीमारियों से भारत में 2017 में 12.4 लाख लोगों की मौत हुई थी। इसमें बच्चे और वृद्ध ज़्यादा प्रभावित थे। विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ के अनुसार ख़राब हवा के कारण ही दुनिया भर में क़रीब 70 लाख लोगों की मौत समय से पहले हो जाती है।
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट कहती है कि वायु प्रदूषण से कई गंभीर इंफ़ेक्शन हो सकते हैं। लेकिन इससे सबसे ज़्यादा ख़तरा इन बीमारियों को लेकर होता है-
- अस्थमा
- कैंसर
- फेफड़े का इन्फ़ेक्शन
- साँस से जुड़ी बीमारियाँ
- हृदय रोग
- न्यूमोनिया
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, स्ट्रोक, फेफड़े के कैंसर और हार्ट से जुड़ी बीमारियों में होने वाली कुल मौत की एक तिहाई वायु प्रदूषण के कारण होती हैं।
कोई ज़रूरी नहीं है कि फॉग दिखे तभी ही प्रदूषण हो। हो सकता है कि आँखों से तो सबकुछ साफ़ दिख रहा हो लेकिन हवा में छोटे-छोटे कण तैर रहे हों। ये छोटे-छोटे कण पार्टिकुलेट मैटर यानी पीएम होते हैं। माइक्रोन में मापे जाने वाले ये कण पीएम 2.5 और पीएम 10 होते हैं। इसमें सबसे ज़्यादा घातक है पीएम 2.5। ये कण इतने छोटे होते हैं कि फेफड़े में अंदर तक जा सकते हैं। पीएम 2.5 के 60 कण को मिलाया जाए तो एक बाल जितनी मोटाई दिख सकती है। ये फेफड़े को कई तरह से प्रभावित कर सकते हैं। फेफड़े के इंफ़ेक्शन से लेकर फेफड़े का कैंसर तक हो सकता है। ये फेफड़े के माध्यम से ख़ून में भी मिल जाते हैं। इससे साँस से जुड़ी दिक्कतें होने लगती हैं।
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट कहती है कि साँस से जुड़ी बीमारियों की वजह से दुनिया भर में प्रत्येक साल पाँच साल से कम उम्र के क़रीब साढ़े पाँच लाख बच्चे मौत के मुँह में समा जाते हैं।
डब्ल्यूएचओ ने 2016 की एक रिपोर्ट में कहा था कि भारत जैसे देशों में 98 फ़ीसदी बच्चे ज़लरीली हवा से प्रभावित होते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, उस वर्ष हवा प्रदूषण के कारण भारत में एक लाख से ज़्यादा बच्चों की मौत हो गई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि वायु प्रदूषण बच्चों के स्वास्थ्य के सबसे बड़े ख़तरों में से एक है। पाँच साल से नीचे की उम्र के 10 में से एक बच्चे की मौत हवा प्रदूषण के कारण हो जाती है।
बर्मिंघम विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में पाया गया था कि न्यूमोनिया से होने वाली मौतें और वायु प्रदूषण में भी सम्बन्ध है। वाशिंगटन विश्वविद्यालय द्वारा 1999 से 2000 के बीच किए एक अध्ययन के अनुसार वायु प्रदूषण में रहने वाले मरीजों को फेफड़ों के संक्रमण का जोखिम अधिक होता है।
वायु प्रदूषण से होने वाली इन्हीं बीमारियों की वजह से उत्तर भारत में लोगों की जीवन प्रत्याशा यानी जीने की औसत उम्र कम हो रही है। नये अध्ययन में दावा किया गया है कि उत्तर भारत में 'गंभीर' वायु प्रदूषण के कारण लोगों की ज़िंदगी औसत रूप से सात साल कम हो सकती है। यह दावा अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय में एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट यानी ईपीआईसी ने किया है। संस्थान ने वायु प्रदूषण से उम्र पर पड़ने वाले असर को देखने के लिए एयर क्वालिटी लाइफ़ इंडेक्स यानी एक्यूएलआई तैयार किया है। इस एक्यूएलआई से पता चलता है कि सिंधू-गंगा समतल क्षेत्र यानी मोटे तौर पर उत्तर भारत में 1998 से 2016 तक प्रदूषण में 72% की वृद्धि हुई है। इस क्षेत्र में भारत की क़रीब 40% आबादी रहती है। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 1998 में ख़राब हवा से लोगों की जीने की औसत उम्र 3.7 वर्ष कम हो गई होगी।