भारतीयों की ज़िंदगी के 5 साल कम कर रही है ख़राब हवा: रिपोर्ट
वायु प्रदूषण के असर को लेकर एक और सचेत करने वाली रिपोर्ट सामने आई है। इस रिपोर्ट में भारतीयों की जीवन प्रत्याशा यानी किसी व्यक्ति के औसत रूप से उम्र पर ख़राब हवा के असर का आकलन किया गया है। इसमें कहा गया है कि यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार प्रदूषण को नियंत्रित नहीं किया गया तो ख़राब हवा भारतीयों के जीवन के पांच साल कम कर सकता है। हालाँकि उत्तर भारत और दक्षिण भारत में जीवन प्रत्याश में भी अंतर है। उत्तर भारत में हवा ज़्यादा ख़राब है और इस वजह से जीवन प्रत्याशा को 7 साल तक कम कर सकता है।
ये शिकागो विश्वविद्यालय में ऊर्जा नीति संस्थान के ताज़ा वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक यानी एक्यूएलआई के कुछ निष्कर्ष हैं।
अध्ययन में यह भी कहा गया है कि वायु प्रदूषण वैश्विक जीवन प्रत्याशा 2.2 साल कम करता है। अगर इसे पूरी आबादी के हिसाब से देखें तो ख़राब हवा दुनिया भर में 17 अरब जीवन वर्ष ख़त्म करती है।
डब्ल्यूएचओ ने हाल ही में अपने दिशानिर्देशों को संशोधित किया है और इसके तहत ख़राब हवा के जोखिम में दुनिया की अधिकांश वैश्विक आबादी (97.3 प्रतिशत) आ गयी है।
पीएम2.5 दुनिया के प्रमुख वायु प्रदूषकों में से एक है। पीएम यानी पर्टिकुलेट मैटर वातावरण में मौजूद बहुत छोटे कण होते हैं जिन्हें आप साधारण आँखों से नहीं देख सकते। 'पीएम10' मोटे कण होते हैं। यानी मोटे तौर पर कहें तो दो तरह के प्रदूषण फैलाने वाले तत्व हैं। एक तो पराली जलाने, वाहनों के धुएँ व पटाखे जलाने के धुएँ से निकलने वाली ख़तरनाक गैसें और दूसरी निर्माण कार्यों व सड़कों से उड़ने वाली धूल।
विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ के अनुसार, सूक्ष्म कणों के लगातार संपर्क में रहने से हृदय और सांस से जुड़ी बीमारियों व फेफड़ों के कैंसर का ख़तरा होता है।
भारत में भी फाइन पार्टिकुलेट मैटर एक प्रमुख प्रदूषक है। यह इतना है कि 2019 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 2024 तक पीएम2.5 प्रदूषण को 132 शहरों में 2017 के मुक़ाबले कम से कम 20% तक कम करने का लक्ष्य रखा। इसके तहत स्वच्छ वायु कार्य योजना तैयार करने के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम शुरू किया गया। लेकिन इसका असर ज़्यादा होता नहीं दिख रहा है। दुनिया के सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहरों में अधिकतर भारत के हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 10 सबसे प्रदूषित राज्यों में- दिल्ली एनसीआर, उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, त्रिपुरा, पंजाब, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और राजस्थान शामिल हैं।
शिकागो विश्वविद्यालय में ऊर्जा नीति संस्थान के वैज्ञानिकों ने पाया कि भारत में डब्ल्यूएचओ के मानक पर प्रदूषण को नियंत्रित नहीं रखा जा सका है। इसके अलावा दक्षिण एशिया दुनिया का प्रदूषण हॉटस्पॉट बना हुआ है। प्रदूषण अभी भी दक्षिण पूर्व एशिया में एक बड़ा स्वास्थ्य बोझ है।
एक्यूएलआई की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है। इसमें कहा गया है कि भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल में, जीवन प्रत्याशा पर वायु प्रदूषण का प्रभाव अन्य बड़े स्वास्थ्य ख़तरों की तुलना में काफी अधिक है।