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स्पेस साइंस में इंसानी बुद्धि को पीछे छोड़ रही है एआई

स्पेस साइंस में इंसानी बुद्धि को पीछे छोड़ रही है एआई

एआई का दायरा बढ़ रहा है। पूरी दुनिया में काम हो रहा है। लेकिन स्पेस साइंस में एआई के दखल पर क्या कुछ बदलने वाला है, वरिष्ठ पत्रकार और लेखक चंद्र भूषण उसी को समझा रहे हैं।   

अंतरिक्ष विज्ञान का व्यापक दायरा अभी व्यावहारिक रूप से तीन हिस्सों में बंट गया है। एक धरती के पास का इलाका नीयर अर्थ ऑर्बिट, जहां उपग्रह छोड़े जाते हैं। जो दूरसंचार, टीवी, इंटरनेट, मौसम विज्ञान और खुफियागिरी से जुड़े बहुत सारे कामों का अड्डा है। पृथ्वी की सतह से 200 किलोमीटर से लेकर 30 हजार किलोमीटर तक की ऊंचाई पर स्थित यह क्षेत्र अब पूरी तरह कारोबारी दायरे में आ चुका है। 

यूक्रेन की लड़ाई ने रूस और अमेरिका को आमने-सामने न ला खड़ा किया होता तो अभी तक होटल इंडस्ट्री भी इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में अपना पहला पहला धंधा खड़ा कर चुकी होती। टेक्नॉलजी का दखल यहां हमेशा रहेगा लेकिन विज्ञान के दायरे से यह लगभग बाहर जा चुका है। एआई की भूमिका यहां मुख्यतः कॉस्ट कटिंग की और कुछ बहुत कठिन काम निपटाने की है।

दूसरा हिस्सा डीप स्पेस का है, जहां इंजीनियरिंग के जरिये सीधे हस्तक्षेप की गुंजाइश बन सकती है। इसमें चंद्रमा और मंगल ग्रह पर छोटी बस्तियां बसाने की बात अभी कल्पना के दायरे में है, जबकि खनिज खोदने और जीवन की खोज करने के लिए ऐस्टेरॉयड बेल्ट से लेकर बृहस्पति और शनि के उपग्रहों तक जाने की ठोस कोशिशें स्पेस कैलेंडर का हिस्सा हैं। 

यह क्षेत्र वैज्ञानिक जिज्ञासा से भरा है और कदम-कदम पर तकनीकी में किसी नई खोज की मांग कर रहा है। तीसरा हिस्सा पूरी तरह एस्ट्रॉनमी और कॉस्मॉलजी का है। रोशनी को पूरी तरह निचोड़ लेना ही यहां हमारा काम है। इंसानी दखल किसी न किसी तरह के टेलीस्कोप के सिवा किसी और रूप में संभव ही नहीं है।

इस तीसरे दायरे में भौतिक हस्तक्षेप की बात सिर्फ साइंस फिक्शन में सोची जाती है। नासा के दो पायोनियर स्पेसक्राफ्ट कई दशकों की यात्रा के बाद सूरज के प्रभाव क्षेत्र से अंतिम रूप से बाहर निकल गए हैं या निकलने की तैयारी में हैं, लिहाजा इंसानी दखल शून्य तो नहीं है। फिर भी, मिसाल देनी हो तो- ब्रह्मांड में दर्ज अरबों गैलेक्सीज को किस ढांचे ने किस तरतीब से आपस में जोड़ रखा है, इसका जायजा हमारी अपनी गैलेक्सी, आकाशगंगा से बाहर जाकर लेना हमारे एजेंडे पर कभी नहीं आएगा। स्पेस साइंस का यह परिधि-क्षेत्र बाकी दोनों से कहीं पुराना है। 

आर्यभट से लेकर स्टीफन हॉकिंग तक हजारों साल से इसके बारे में कहते-सुनते आ रहे हैं। लेकिन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यहां अभी इतनी बड़ी भूमिका निभा रही है कि प्राकृतिक बुद्धि से ज्यादा हम इसी पर निर्भर करने लगे हैं।


जैसा पहले भी कहा जा चुका है, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का मुख्य काम पैटर्न पकड़ने का है। जैसे-जैसे उसकी शक्ति बढ़ रही है, पैटर्न में मामूली से बदलाव भी वह तुरंत भांप लेती है, जो आम तौर पर इंसानी क्षमता से बाहर है। नीयर अर्थ ऑर्बिट में एआई की इस क्षमता का किसी एक संस्था ने सबसे ज्यादा फायदा उठाया है तो वह एलन मस्क की कंपनी स्पेस-एक्स है, जिसने 50 हजार कृत्रिम उपग्रहों का एक कॉन्स्टेलेशन बनाने का इरादा घोषित कर रखा है और अभी इस लक्ष्य के लगभग आधे तक पहुंच भी चुकी है। कामकाजी सूचना की दृष्टि से इतने उपग्रहों के बीच तालमेल बनाना बड़ी से बड़ी इंसानी टीम के लिए भी संभव नहीं है और यह पूरी तरह एआई का ही कमाल है।

सैटेलाइट दुनिया के लिए क्या-क्या उपयोगी काम कर रहे हैं, इस बारे में पिछले तीस-चालीस वर्षों में काफी कुछ लिखा जा चुका है। दिनोंदिन मजबूत होती एआई ने मौसम से जुड़ी भविष्यवाणियों, जलवायु परिवर्तन की सूचनाओं, भूसंरचना में आ रहे बदलावों को भांपने और खनिजों की खोज में कुछ चमत्कारिक सहयोग दिया भी हो तो वह खबरों का हिस्सा नहीं बनता।

 मान लिया जाता है कि ये सरकारी महकमे जैसे पहले काम करते थे, वैसे ही आज भी कर रहे हैं। लेकिन लड़ाई में उपग्रहों का कॉन्स्टेलेशन और एआई मिलकर कैसा कहर ढा सकते हैं, यह हमने हाल में देखा है। अफगानिस्तान में रीयल टाइम सूचनाएं न मिल पाने के चलते अमेरिकी फौजों को वहां से जहाजों पर लटक कर भागना पड़ा। लेकिन यूक्रेन-रूस युद्ध में एक अमेरिकी प्राइवेट कंपनी की दी हुई ठीक ऐसी ही सूचनाओं ने महान रूसी नेवी को काला सागर में बिल्कुल पंगु बना दिया और ड्रोन्स के मामले में यूक्रेन को अपर हैंड दे दिया। नतीजा यह कि पिछले तीन वर्षों में चीन भी अपना एक जवाबी सैटेलाइट कॉन्स्टेलेशन खड़ा करने की जुगत में है।

नीयर अर्थ ऑर्बिट वाले इलाके में एक बहुत बड़ी बीमारी स्पेस जंक यानी अंतरिक्षीय कचरे की है, जो पलक झपकते किसी भी उपग्रह या रॉकेट में छेद कर सकता है या उसे पूरी तरह तबाह कर सकता है।

नष्ट उपग्रहों और रॉकेटों से निकलकर लंबे समय तक धरती का चक्कर लगाती रहने वाली ऐसी चीजों की तादाद अभी अरबों में पहुंच रही है। एआई की मेहरबानी से उपग्रहों के रास्ते की लगातार छान-फटक फिलहाल उनको बचाने के काम आ रही है, लेकिन इसकी भी एक सीमा है। इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में हुए एक छेद से कूलेंट का रिसाव कभी रुक जाने तो कभी दोबारा चालू हो जाने की खबरें आती रहती हैं। कुछ स्टार्ट-अप कंपनियों ने स्पेस जंक की सफाई को ही अपना मुख्य कारोबार घोषित कर रखा है। फिर भी यह कचरा भविष्य में एआई की क्षमता की कठिन परीक्षा लेने वाला है।  

चंद्रमा, मंगल और धरती के अन्य नजदीकी पिंडों की खोजबीन, वहां से कीमती खनिज इधर लाने या वहां कोई छोटी-मोटी बस्ती बसाने पर केंद्रित स्पेस साइंस में इंसानी बुद्धि से बिल्कुल स्वतंत्र होकर काम कर सकने वाली एआई की जरूरत बहुत पहले से महसूस की जा रही है। याद रहे, पिछले दशक में यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ईएसए) का एक बहुत महंगा और नफीस अभियान मंगल की जमीन से सिर्फ दस मीटर ऊपर पहुंचकर फेल हो गया था।

कारण यह कि धरती से मंगल तक कोई भी कमांड पहुंचने में पांच से बारह मिनट तक का समय लगता है, जो लगातार बदलता रहता है। कभी बीच में सूरज पड़ जाता है तो सिग्नल पहुंचता ही नहीं। हुआ यह कि यूरोपीय यान को मंगल की सतह पर उतार रहे रिवर्स रॉकेट जरूरी समय से सिर्फ आधा सेकंड पहले बंद हो गए और करोड़ों किलोमीटर की दूरी तय करके वहां पहुंचा यान दोमंजिला इमारत जितनी ऊंचाई से पत्थर की तरह गिर पड़ा।

मंगल तो खैर बहुत दूर है, जबकि चंद्रमा बिल्कुल पड़ोस में है। फिर भी इक्कीसवीं सदी के बीते चौथाई हिस्से में केवल चीन और भारत को छोड़कर और कोई भी देश सुरक्षित और कामकाजी ढंग से अपना यान उसकी सतह पर नहीं उतार सका है।

एक समय चंद्रमा पर कई बार अपने अंतरिक्षयात्री उतार चुका अमेरिका भी इस सूची में शामिल है और नाकामी के डर से पूरी तरह बेखौफ हो जाने के बाद ही अपने आर्टेमिस अभियान को ऐसी किसी कोशिश में ले जाना चाहता है। दुनिया भर की ताकतवर स्पेस एजेंसियां अपने अभियानों के लिए एक ऐसी एआई विकसित करने के प्रयास में हैं, जो चंद्रमा और मंगल पर उनके यान की लैंडिंग को फूलप्रूफ बना सके। अभी तक चंद्रमा पर चीन की लैंडिंग कई बार लगातार कामयाब होती गई है, लेकिन चीनी स्पेस एजेंसी इसका श्रेय किसी एआई को नहीं, अपनी लैंडिंग टीम की काबलियत को देती आई है। देखें, 2028 तक अमेरिकी इस चुनौती को कैसे हैंडल करते हैं।

रही बात स्पेस साइंस के तीसरे दायरे की, जिसके बारे में ऊपर कहा गया है कि यहां इतिहास में पहली बार कृत्रिम बुद्धि पर निर्भरता इंसानी बुद्धि से ज्यादा हो गई है, कहने को इतना कुछ है कि यहां सिर्फ एकाध संकेत छोड़े जा सकते हैं। दस अरब डॉलर लगाकर 2021 में अंतरिक्ष में भेजे गए नासा के बहुप्रतीक्षित जेम्स वेब टेलीस्कोप को उसके गोल्ड पैनल पर एक अंतरिक्षीय कंकड़ लग जाने के कारण शत-प्रतिशत क्षमता पर सक्रिय नहीं किया जा सका है। लेकिन उसकी खासियत यही है कि उसकी डेटा एनालिसिस पूरी तरह एआई-बेस्ड है। 

सृष्टि के दो बुनियादी सवाल- ब्रह्मांड की उत्पत्ति कैसे हुई, और पृथ्वी के अलावा किसी और अंतरिक्षीय पिंड पर जीवन है या नहीं- इस टेलीस्कोप के मूल प्रश्न हैं। इसके लिए वह एक साथ दस लाख पिंडों पर नजर रखता है। सुदूर तारों के इर्दगिर्द ग्रह खोजने की उसकी क्षमता असाधारण है और कोई गैलेक्सी इलिप्टिकल है या स्पाइरल, इसका निर्धारण वह बहुत जल्दी कर देता है। दुनिया इतनी ध्रुवीकृत न होती तो इन मुश्किल सवालों का अंधेरा जल्दी छंट जाता।     

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