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जीएसटी वसूली दे रहा है अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत?

जीएसटी वसूली दे रहा है अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत?

कोरोना और लॉकडाउन की वजह से तबाह भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत दिखने लगे हैं। दिसंबर महीने में जीएसटी उगाही में 11.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई और यह एक लाख करोड़ रुपए के ऊपर पहुँच गई।

कोरोना और लॉकडाउन की वजह से तबाह भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत दिखने लगे हैं। जीडीपी के शून्य से 23.9 प्रतिशत नीचे पहुँचने के बाद एक बार फिर बहुत ही धीमी रफ़्तार से ही सही, माँग-खपत निकली और लोगों ने खरीद-बिक्री शुरू की है। दिसंबर महीने में जीएसटी उगाही में 11.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई और यह एक लाख करोड़ रुपए के ऊपर पहुँच गई।

जीएसटी यानी गुड्स एंड सर्विस टैक्स वह कर या टैक्स है जो आप सामान खरीदने या किसी तरह की सेवा लेने पर चुकाते हैं।

वित्त मंत्रालय के अनुसार नवंबर के कारोबार पर दिसंबर में 1,15,174 करोड़ रुपए बतौर जीएसटी केंद्र सरकार को मिले। यह पिछले 21 महीने में इकट्ठा हुई जीएसटी में सबसे ज़्यादा है। मंत्रालय ने कहा है, "अर्थव्यवस्था में हो रहे सुधार और जीएसटी नहीं चुकानों वालों और फ़र्जी बिल देने वालों के ख़िलाफ़ की गई कार्रवाई की वजह से ऐसा हुआ है।" 

उम्मीद से बढ़ कर

दिसंबर की जीएसटी उगाही उम्मीद से बढ़ कर है, यह पिछले साल इसी दौरान मिले टैक्स से भी ज़्यादा है। इसके पहले अप्रैल में जीएसटी उगाही में 32,172 करोड़ रुपए की कमी हुई थी। इसके एक महीने पहले ही लॉकडाउन का एलान किया गया था।

दिसंबर में हुई जीएसटी उगाही में 57,426 करोड़ रुपए राज्यों के हिस्से का है। इसके पहले यानी नवंबर में 1.05 लाख करोड़ की जीएसटी उगाही हुई थी। 

लॉकडाउन 

लॉकडाउन शुरू होते ही हर तरह की आर्थिक गतिविधियाँ पूरी तरह ठप हो गई थीं, जिससे जीएसटी मई-जून में न्यूनतम स्तर पर पहुँच गया था, उसके बाद बहुत ही मामूली सुधार और गिरावट होती रही। लेकिन नवंबर में पहली बार यह पिछले साल की तुलना में अधिक हुआ और पहली बार यह लाख करोड़ रुपए के स्तर को पार कर पाया।

 - Satya Hindi

याद दिला दें कि जीएसटी राजस्व को लेकर केंद्र और राज्य में जोरदार लड़ाई चली थी। केंद्र राज्यों को उनके हिस्से का जीएसटी बकाया नहीं दे रहा था, उसका कहना था कि उसके पास पैसे नहीं हैं, लिहाज़ा राज्य क़र्ज़ लेकर काम चलाएं। राज्यों का कहना था कि क़र्ज़ लेना ही है तो केंद्र सरकार ले, राज्य इस पचड़े में क्यों पड़े।

माँग-खपत बढ़ी

महत्वपूर्ण यह है कि माँग-खपत में बढ़ोतरी ऐसे समय हो रही है जब यह आशंका जताई जा रही है कि कोरोना का कहर कम हो जाने के बाद भी भारतीय अर्थव्यवस्था उसकी चपेट से लंबे समय तक नहीं निकल पाएगी। कुछ दिन पहले ही 'ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स' ने एक रिपोर्ट में कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था कोरोना से सबसे बुरी तरह से प्रभावित होने वाली अर्थव्यवस्थाओं में एक होगी।

इसने यह भी कहा है कि इसकी आर्थिक वृद्धि दर कोरोना शुरू होने के पहले की दर से 12 प्रतिशत कम होगी। दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया की अर्थव्यवस्थाओं के विभाग की प्रमुख प्रियंका किशोर ने अनुमान लगाया है कि अगले पाँच साल में भारत की विकास दर 4.5 प्रतिशत होगी। कोरोना के पहले यह अनुमान 6.5 प्रतिशत था।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी कहा था कि मार्च 2021 तक भारत की आर्थिक गति शून्य से 10.3 प्रतिशत नीचे चली जाएगी। इसके पहले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने भी लगभग ऐसी ही बात कही थी। उसने भारतीय अर्थव्यवस्था के 10.8 प्रतिशत सिकुड़ने का अनुमान लगाया है। 

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