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करतारपुर कॉरिडोर खुला तो पीओके में शारदापीठ क्यों नहीं?

करतारपुर कॉरिडोर खुला तो पीओके में शारदापीठ क्यों नहीं?

करतारपुर साहिब तक कॉरिडोर खुलने के बाद अब कश्मीरी हिन्दुओं ने पीओके में शारदापीठ तक कॉरिडोर बनाने की बात उठानी शुरू की है। तो क्या यह करतारपुर साहिब कॉरिडोर जितना आसान होगा?

करतारपुर साहिब तक कॉरिडोर खुलने के पहले और उसके बाद राजनीतिक गलियारों में ख़ूब गरमा गरम बहस हुई। सिद्धू पाकिस्तान जा कर और वहाँ के सेनाध्यक्ष को गले लगा कर विवादों में घिरे जो उनके लिए नयी बात नहीं है। इमरान ख़ान ने शाबाशी बटोरी तो अब कश्मीरी हिन्दुओं ने शारदापीठ, जो मुज़फ़्फ़राबाद (पीओके) में स्थित है, तक कॉरिडोर बनाने की बात उठानी शुरू की है। क़रीब 200 कश्मीरी हिन्दुओं ने अनंतनाग में पिछले दिनों इसके लिए एक प्रदर्शन भी किया।

यह जगह नीलम नदी के किनारे लाइन ऑफ़ कंट्रोल के बिल्कुल नज़दीक है। शारदापीठ कश्मीरी हिन्दुओं के लिए तीन मुख्य तीर्थ स्थानों में गिना जाता है। अन्य दो स्थान अमरनाथ मंदिर और मार्तंड सूर्य मंदिर हैं। माँ शारदा कश्मीरी पंडितों की कुलदेवी मानी जाती हैं। कश्मीरी हिंदू ऐसा भी मानते हैं कि कश्मीर में यह ख़ून-ख़राबा उनके कुलदेवी की उपेक्षा और अपमान के कारण हो रहा है। शारदापीठ एक खंडहर में तब्दील हो चुका मंदिर है जिसे कुछ इतिहासकार कुषाण काल में पहली सदी के दौरान बनाया हुआ मानते हैं। इसे 18 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। कलहन, आदिशंकराचार्य तथा कुमारजीव जैसे विद्वान यहाँ से जुड़े रहे हैं। राजतरंगिणी से लेकर अल बरूनी की यात्रा वृतांतों में इसका उल्लेख मिलता है।

  • पर यह मामला पेचीदा है। करतारपुर जहाँ पर है उस जगह की सम्प्रभुता पर विवाद नहीं रहा है। भारत उसे पाकिस्तान का हिस्सा मानता है। बीच में अंतराष्ट्रीय सीमा है जो पूरी तरह से कँटीले तारों से घेरा हुआ है। अभी पाकिस्तान ने करतारपुर कॉरिडोर की व्यवस्था चलाने के लिए भारत सरकार को एक चौदह सूत्री प्रस्ताव भेजा है जिस पर सहमति बनना कोई मुश्किल नहीं है।

पर यह जो शारदापीठ है उसके और भारत के बीच कोई अन्तराष्ट्रीय सीमा नहीं है। वहाँ पर लाइन ऑफ़ कंट्रोल है। अन्तराष्ट्रीय सीमा और और लाइन ऑफ़ कंट्रोल के बीच बुनियादी फ़र्क़ यह है कि लाइन ऑफ़ कंट्रोल की कोई आधिकारिक मान्यता नहीं होती। वहाँ सीमा बाड़ नहीं लगाए जा सकते। अन्तराष्ट्रीय सीमाओं पर वॉच टावर होते हैं, पट्रोलिंग कर सकते हैं। लेकिन लाइन ऑफ़ कंट्रोल पर दोनों तरफ़ सेनाएँ बंकरों में रहती हैं और आपसी गोलीबारी एक सामान्य बात है। 

भारतीय कूटनीति के लिए बड़ा सिरदर्द

शारदापीठ तक कॉरिडोर बनाने के लिए भी इमरान सरकार राज़ी हो सकती है। इमरान ख़ान ने कहीं ऐसा एक बयान दिया भी है। लेकिन यह भारतीय कूटनीति का एक बड़ा सिरदर्द भी साबित होगा। 

पीओके को भारत अपना हिस्सा मानता है। तो क्या शारदापीठ जाने के लिए पाकिस्तान के वीज़ा की ज़रूरत होगी अगर वीज़ा लेते हैं तो इसका सीधा मतलब है कि भारत पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा मानता है। ऐसा सोचना भी सम्भव नहीं है।

भारत के सामने दुविधा क्या

पाकिस्तान एक तरफ़ शारदापीठ के लिए कॉरिडोर की पेशकश कर दूसरी तरफ़ से वहाँ जाने के लिए वीज़ा की शर्त रख सकता है। इस पेशकश से इमरान ख़ान अन्तराष्ट्रीय समुदाय में भारत से शांति स्थापित करने की दिशा में अपना एक प्रयास दिखा सकते हैं। अगर भारत सरकार कुछ हिन्दू संगठनों के दबाव में आकर ऐसा मानने पर राज़ी होती है तो यह एक आत्मघाती क़दम हो सकता है। चुनाव के साल में एक राष्ट्रवादी सरकार के लिए कश्मीरी पंडितों की भावनात्मक माँग को ठुकराना भी मुश्किल है।

  • शारदापीठ तक कॉरिडोर हमें मंज़ूर है पर वहाँ के लिए वीज़ा लेना क़तई नहीं। दूसरी बात है कि क्या भारत पीओके से आने वाले पाकिस्तानियों के लिए वीज़ा की शर्त नहीं रखेगा क्योंकि वे लोग आधिकारिक रूप से भारत के नागरिक हैं। या उन्हें स्टेपल वीज़ा दिया जाएगा जैसा कि चीन अरुणाचल प्रदेश के नागरिकों के साथ करता है।
पर क्या पाकिस्तान के अन्य भागों से आए लोगों को भी भारत बिना वीज़ा के उस कॉरिडोर से भारत में घुसने की इजाज़त देगा

बीजेपी असमंजस में क्यों

महबूबा मुफ़्ती पूरे ज़ो-शोर के साथ शारदापीठ तक कॉरिडोर का समर्थन कर रही हैं। यह उनके लिए सभी कश्मीरियों, जिसमें पंडित भी शामिल हैं, की लीडर दिखने का सुनहरा मौक़ा है। जबकि केंद्र की बीजेपी सरकार इस मामले में असमंजस की स्थिति में है। कश्मीर घाटी के हालात वैसे नहीं हैं कि कश्मीरी पंडितों या अन्य किसी की यात्रा शारदापीठ तक करवाई जा सके। यह सुरक्षा बलों के लिए एक अलग ही मुसीबत होगी।

अभी मुज़फ़्फ़राबाद-श्रीनगर के बीच जो बस सेवा है वह सिर्फ़ कश्मीरी लोगों के लिए है जिसमें वे परमिट लेकर अपने रिश्तेदारों से मिलने सीमा के आरपार आ जा सकते हैं। ग़ैर-कश्मीरी उस सेवा का लाभ नहीं उठा सकते हैं। यह फ़ार्मुला शारदापीठ के मामले में नहीं लागू हो सकता क्योंकि कश्मीरी हिन्दू अब पूरे भारत वर्ष में फैले हैं जिनको दुबारा कश्मीर में बसाना नामुमकिन है। वैसे भी एक शक्तिपीठ होने के नाते वहाँ भारत के सभी हिस्सों से लोग जाना चाहेंगे। इस स्थिति में परमिट से काम नहीं चलने वाला।

क्या इमरान पूरे भारतवासियों को परमिट पर ही शारदापीठ जाने देंगे लगता तो नहीं है। फिर भी क्या भारत सरकार इमरान ख़ान के इस खुले पहल को ठुकरा सकती है

यहाँ पर बैक चैनल कूटनीतिक प्रयासों की ज़रूरत है जिसमें भारत अपनी समस्याओं और चिंताओं को पाकिस्तान को अवगत करा सकता है। शारदा पीठ कॉरिडोर के बारे में कोई निर्णय लेने के पहले यह परमिट वीज़ा वाला मामला सुलझ जाना चाहिए। क्या पता हमें सिद्धू को एक बार फिर पाकिस्तान भेजना पड़े!

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