भाजपा के सत्ता में आने के बाद ईडी के 95 प्रतिशत मामले विपक्षी नेताओं के खिलाफ हैं
दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद आम आदमी पार्टी सहित विपक्षी दलों के नेताओं की ओर से इसको लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। इंडिया गठबंधन के नेताओं का कहना है कि ईडी भाजपा और केंद्र सरकार के इशारे पर विपक्षी दलों के नेताओं पर राजनैतिक कारणों से कार्रवाई कर रही है। वहीं भाजपा का कहना है कि जांच एजेंसी ईडी भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ कार्रवाई कर रही है।
इस बीच अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भाजपा के 2014 में सत्ता में आने के बाद से ईडी के द्वारा जिन नेताओं पर कार्रवाई की गई है उसमें 95 प्रतिशत मामले विपक्षी नेताओं के खिलाफ हैं। द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट कहती है कि 2014 से सितंबर 2022 के बीच, 121 प्रमुख नेता ईडी के रडार पर आए, जिनमें से 115 विपक्षी नेता थे। तब से यह सूची और बड़ी हो गई है।
2014 के बाद से, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के पहली बार सत्ता में आने के बाद, पहले यूपीए शासन की तुलना में राजनेताओं के खिलाफ ईडी के दर्ज मामलों में चार गुना वृद्धि हुई थी।
जांच से पता चला कि 2014 और 2022 के बीच 121 प्रमुख राजनेता ईडी जांच के दायरे में आए थे। इनमें से 115 विपक्षी नेता थे। इन पर मामला दर्ज किया गया, छापेमारी की गई, पूछताछ की गई या गिरफ्तार किया गया । इस दौरान ईडी की ये कार्रवाई 95 प्रतिशत विपक्षी नेताओं के खिलाफ हुई थी।
रिपोर्ट कहती है कि यह यूपीए शासन (2004 से 2014) के तहत एजेंसी की केसबुक के बिल्कुल विपरीत था। यूपीए शासन में एजेंसी द्वारा कुल 26 राजनीतिक नेताओं की जांच की गई थी। इनमें से 14 विपक्षी नेता थे, या आधे से थोड़े अधिक करीब 54 प्रतिशत थे।
सितंबर 2022 के बाद अन्य विपक्षी नेता भी ईडी के रडार पर आ गए हैं। इसमें दिल्ली के तत्कालीन डिप्टी सीएम मनीष सिसौदिया (मार्च 2023) भी शामिल हैं, जिन्हें दिल्ली शराब नीति मामले में गिरफ्तार किया गया था। इसी मामले में अरविंद केजरीवाल को भी गुरुवार को गिरफ्तार किया गया था। भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की नेता के कविता इस महीने की शुरुआत में गिरफ्तार हो चुकी हैं। वह भी दिल्ली शराब नीति मामले में आरोपों का सामना कर रही हैं।
वहीं इससे पहले झामुमो नेता हेमंत सोरेन (जनवरी 2024) में गिरफ्तार हुए हैं। उन्होंने अपनी गिरफ्तारी से ठीक पहले झारखंड के मुख्यमंत्री का पद छोड़ दिया था।
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट कहती है कि ईडी मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि मुख्य रूप से धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के कारण हुई है। इस कानून को 2005 में लागू होने के बाद से अब काफी मजबूत किया गया है। कड़ी जमानत शर्तों के साथ, इसके प्रावधान अब जांच एजेंसी को अभियुक्तों की गिरफ्तारी, संपत्तियों और परिसंपत्तियों की कुर्की करने शक्तियां प्रदान करते हैं।
विपक्ष ने ईडी के मुद्दे को संसद में कई बार उठाया है और आरोप लगाया है कि एजेंसी द्वारा उन्हें असंगत तरीके से निशाना बनाया जा रहा है। यह एक ऐसा आरोप है जिसका सरकार और ईडी ने दृढ़ता से खंडन किया है, एजेंसी के अधिकारियों ने कहा है कि इसकी कार्रवाई गैर-राजनीतिक है और अन्य एजेंसियों या राज्य पुलिस द्वारा पहले दर्ज किए गए मामलों से उत्पन्न होती है।