तालिबान बेनकाब, आम माफ़ी के बावजूद बदले की कार्रवाई, निशाने पर हज़ारा
अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल पर क़ब्ज़े के तीन-चार दिन में ही यह साफ हो गया कि तालिबान ने नियंत्रण के समय जो संयम दिखाया था और उदारता के साथ सरकार चलाने की बात कही थी, वह दिखावा था। ज़मीनी स्तर पर उसके लड़ाके प्रवक्ताओं के एलान और दावे के ठीक उलट काम कर रहे हैं।
तालिबान ने काबुल पर क़ब्ज़ा करने के बाद आम माफ़ी का एलान किया था और कहा था कि बदले की कार्रवाई नहीं की जाएगी और सरकारी कर्मचारी अपने काम पर लौट आएं।
तालिबान ने इसी तरह कहा था कि शरीआ के तहत महिलाओं को पढ़ने-लिखने, नौकरी करने की छूट होगी, प्रेस आज़ाद होगा।
पर हफ्ता पूरा होने के पहले ही यह साफ हो गया कि सिर्फ उदारवादी छवि बनाने की चालाक कोशिश थी, एक तरह का पीआर एक्सरसाइज़ था।
निशाने पर सरकारी कर्मचारी
तालिबान के लड़ाके अब घर-घर में घुस कर उन लोगों का पता लगाने लगे हैं जिन्होंने अमेरिकी सेना या उसके प्रशासन की किसी तरह मदद की थी। लड़ाके उन्हें भी खोज रहे हैं जो अफ़ग़ान सरकार यानी अशरफ़ ग़नी की सरकार में किसी पद पर थे।
तालिबान के लड़ाके इसके साथ ही अफ़ग़ान राष्ट्रीय सेना के लोगों को भी तलाश रहे हैं।
अमेरिका और उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नेटो) के अधिकारियों के हवाले से ऐसी ख़बरें आ रही हैं कि तालिबान अपने विरोधियों और उनके परिवारों की घर-घर तलाशी कर रहा है।
संयुक्त राष्ट्र के एक खुफिया दस्तावेज़ से पता चला है कि तालिबान अमेरिकी और नेटो सुरक्षाबलों के साथ काम करने वाले लोगों को तलाश रहे हैं।
तालिबान की धमकी
टेलीविज़न चैनल 'अल जज़ीरा' ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि तालिबान ने ऐसे लोगों की 'प्राथमिकता सूची' बनाई है।
तालिबान धमकी दे रहा है कि वैसे लोग अगर सामने नहीं आए तो उनके परिवार के सदस्यों की हत्या कर दी जाएगी।
समाचार एजेन्सी एएफ़पी की रिपोर्ट के अनुसार, यूएन को खुफिया रिपोर्ट देने वाले नॉर्वेनियन सेंटर फॉर ग्लोबल एनालिसिस के कार्यकारी निदेशक क्रिश्चियन नेलेमैन ने कहा, 'वे उन लोगों के परिवारों को निशाना बना रहे हैं, जो खुद को सौंप नहीं रहे हैं। वे शरिया क़ानून के तहत उनके परिवारों पर मुक़दमा चला रहे हैं और सज़ा दे रहे हैं।'
अमेरिका ने इस आशंका से पहले ही अपने हज़ारों दुभाषियों, अनुवादकों, वकीलों और दूसरे अफ़ग़ान कर्मचारियों को वहाँ से निकाल लिया और अमेरिका पहुँचा दिया।
निशाने पर पत्रकार
इस बीच यह ख़बर आई है कि तालिबान लड़ाकों ने जर्मन मीडिया डॉयचे वेले के एक पत्रकार के रिश्तेदार की हत्या कर दी।
एएफ़पी ने कहा है कि डॉयचे वेले के महानिदेशक पीटर लिम्बर्ग ने कहा, 'तालिबान द्वारा कल हमारे एक संपादक के एक क़रीबी रिश्तेदार की हत्या अकल्पनीय रूप से दुखद है, और यह उस गंभीर ख़तरे की गवाही देता है जिसमें अफ़ग़ानिस्तान में हमारे सभी कर्मचारी और उनके परिवार हैं।'
उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट है कि तालिबान पहले से ही काबुल और प्रांतों दोनों जगहों पर पत्रकारों के लिए संगठित रूप से तलाशी ले रहे हैं। हमारे पास वक़्त की कमी है!'
डॉयचे वेले ने कहा है कि तालिबान ने इसके कम से कम तीन अन्य पत्रकारों के घरों पर छापा मारा था। डॉयचे वेले और अन्य जर्मन मीडिया संगठनों ने जर्मनी की सरकार से अपने अफ़ग़ान कर्मचारियों की मदद के लिए त्वरित कार्रवाई करने का आह्वान किया है।
हज़ारा नरसंहार
बीबीसी के अनुसार, मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में अल्पसंख्यक शिया हज़ारा समुदाय का नरसंहार किया जा रहा है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा है कि हाल ही में तालिबान ने ग़ज़नी प्रांत में हज़ारा समुदाय के लोगों का क़त्ल किया है।
चश्मदीदों ने जुलाई के शुरुआती दिनों में हुए इस क़त्ल-ए-आम के बारे में एमनेस्टी इंटरनेशनल को बताया है।
बीबीसी के अनुसार, गाँववालों का कहना है कि सरकारी बलों और तालिबान के बीच लड़ाई भीषण हो जाने के बाद वो पहाड़ों की तरफ़ चले गए थे।
जब वे खाने-पीने का सामान लेने के लिए अपने घरों की तरफ़ लौटे तो तालिबान वहाँ पहले से ही इंतज़ार कर रहे थे। तालिबान ने उनके घरों को लूट लिया था।
यह घटना मालिस्तान के मुंदरख़्त गाँव की है। इसके अलावा मुंदरख़्त आने की कोशिश कर रहे कुछ पुरुषों को रास्ते में तालिबान ने घेर लिया।
तालिबान ने छह पुरुषों को सिर में गोली मार दी, जबकि तीन को तड़पा-तड़पा कर मारा गया।
एक चश्मदीद के मुताबिक एक व्यक्ति की हत्या उसके रूमाल से गला घोंटकर की गई. उसकी बांह की चमड़ी भी उधेड़ दी गई थी। एक अन्य व्यक्ति के जिस्म के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए थे।