अफ़ग़ानिस्तान : तालिबान ने चार लोगों को मार कर शवों को क्रेन से लटकाया
मुल्ला उमर के नेतृत्व में 1996-2001 के दौरान अफ़ग़ानिस्तान में जिस तरह की शासन व्यवस्था थी, वहाँ वैसा ही राज एक बार फिर होने जा रहा है, इसके सबूत मिलने लगे हैं। तालिबान का यह दावा कि वह नरम, लचीला और मानवीय स्वरूप वाला इसलामी निज़ाम कायम करेगा, खोखला साबित हो चुका है।
इसे इससे समझा जा सकता है कि तालिबान प्रशासन ने शनिवार को हेरात में चार लोगों को गोलियों से भून डाला और उनके शव बीच सड़क पर क्रेन से लटका दिए।
बीबीसी का कहना है कि तालिबान ने इसकी पुष्टि की है और यह भी कहा है कि चारों शवों को क्रेन से अलग-अलग जगहों पर इसलिए लटकाया गया है ताकि उन्हें देख कर लोगों के मन में खौफ़ पैदा हो और वे ऐसा अपराध न करें।
हेरात में क्या हुआ?
चार लोगों ने कथित रूप से एक व्यवसायी और उसके बेटे के अपहरण की कोशिश की थी, तालिबान प्रशासन के लड़ाकों और उनके बीच गोलीबारी हुई, जिसमें वे चारों मारे गए।
हेरात के एक स्थानीय दुकानदार ने समाचार एजेन्सी एएफ़पी को बताया कि पहले चारों शवों को एक पार्क में रखा गया, लोगों को दिखाया गया। उसके बाद तीन शवों को अलग-अलग जगहों पर भेज दिया गया ताकि वहां के लोग देख सकें।
हेरात के डिप्टी गवर्नर मौलवी शायर ने कहा कि इन शवों को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित इसलिए किया गया ताकि लोग किसी का अपहरण करने से डरें।
मौलवी शायर ने यह भी कहा कि तालिबान को पता चला कि व्यापारी और उसके बेटे के अपहरण कर लिया गया है तो वे उन्हें छुड़ाने गए, इस क्रम में गोलीबारी हुई, जिसमें चारों मारे गए।
डिप्टी गवर्नर का दावा है कि व्यापारी और उसके बेटे को छुड़ा लिया गया।
बीबीसी का कहना है कि अफ़ग़ानिस्तान के सोशल मीडिया पर कई वीडियो चल रहे हैं जिनमें यह दिखाया गया है कि एक पिक अप ट्रक में इन शवों को रखा जाता है और एक शव को एक क्रेन से लटका दिया जाता है।
शव पर एक काग़ज़ चिपका दिया गया, जिस पर लिखा हुआ था, अपहरणकर्ताओं को इसी तरह की सज़ा दी जाएगी।
क्या कहा था जेल मंत्री ने?
याद दिला दें कि इसी हफ़्ते इसके पहले जेल विभाग के मंत्री मुल्ला नूरुद्दीन तुराबी ने कहा था कि सज़ाए मौत और हाथ- पैर काट देने की सज़ा सुरक्षा व्यवस्था के लिए ज़रूरी है।
उन्होंने कहा था कि शरीआ में यह प्रावधान है कि कुंवारों के यौन संबंध कायम करने पर सौ कोड़े लगाने और विवाहित लोगों के विवाहेतर यौन संबंध कायम करने पर उन्हें पत्थर मार-मार कर जान से मार डालने की सज़ा दी जाए।
उन्होंने कहा था कि ये तमाम क़ानून अब लागू किए जाएंगे।
तुराबी ने समाचार एजेन्सी एएफ़पी से यह भी कहा था कि कोई हमें यह न बताए कि हमारे यहां कैसे क़ानून होंगे, हम भी दूसरों के क़ानून के बारे में कुछ नहीं बोलते हैं।
तुराबी का यह बयान अहम इसलिए है कि वे तालिबान के संस्थापकों में एक हैं।
तुराबी संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों की सूची में हैं।
बता दें कि 1996-2001 के दौरान अफ़ग़ानिस्तान में ये सज़ाएं आम थीं। अमूमन स्टेडियम या ईदगाह में ये सज़ाएं दी जाती थीं और उन्हें देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ती थी।
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कुछ दिन पहले कहा था कि तालिबान ने काबुल पर क़ब्ज़ा करने के पहले हज़ारा समुदाय के नौ लोगों की हत्या कर दी थी।
रॉयटर्स के लिए काम करने वाले भारतीय फ़ोटोग्राफ़र दानिश सिद्दीक़ी की हत्या का आरोप भी तालिबान पर लगा था, जिससे उसने इनकार किया था।