+
अफ़ग़ानिस्तान में 'जिहादी आतंकवाद' के नए युग की शुरुआत?

अफ़ग़ानिस्तान में 'जिहादी आतंकवाद' के नए युग की शुरुआत?

काबुल हवाई अड्डे पर हुए धमाकों से यह संकेत मिलता है कि इसलामिक स्टेट अब वहां पहले से अधिक मजबूती से उभर कर आ सकती है और तालिबान के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर हिंसा फैला सकती है। पढ़ें, प्रमोद मल्लिक का यह लेख। 

क्या अफ़ग़ानिस्तान में हिंसा के एक नए युग की शुरुआत होने जा रही है जब इसलामिक स्टेट खुरासान तालिबान निज़ाम को इनकार कर उसे 'ग़ैर इसलामी' और 'अमेरिकी एजेंट' क़रार दे और उस पर हमले करे?

क्या गुरुवार को काबुल हवाई अड्डे के बाहर  हुए धमाकों और गोलीबारी को इसकी शुरुआत माना जा सकता है? 

क्या इसलामिक स्टेट अफ़ग़ानिस्तान में इतना मजबूत है कि वह इस सुरक्षित इलाक़े में इस तरह के बड़े हमले को अंज़ाम दे सके? 

क्या कहना है विशेषज्ञों का?

ये वे सवाल हैं जो धमाके  के बाद से ही रक्षा विशेषज्ञों और इलाक़े पर पैनी नज़र रखने वालों के मन में उठ रहे हैं। 

बता दें कि गुरुवार की शाम काबुल स्थित हामिद करज़ई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के दरवाजे के बाहर एक के बाद एक दो धमाके हुए। 

पहला धमाका एबे गेट के पास तो  दूसरा धमाका पास ही स्थित बैरन होटल के बाहर हुआ। इसके बाद अज्ञात बंदूकधारियों गोलियाँ चलाईं।

इसमें अब तक 73 लोगों की मौत हो चुकी है और 140 लोग घायल हो गए हैं। मरने वालों में 13 अमेरिकी हैं। इसलामिक स्टेट ने इस हमले की ज़िम्मेदारी ली है।

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार लेफ़्टिनेंट जनरल एच. आर. मैकमास्टर ने तो साफ शब्दों में कहा है कि 'यह तो बस शुरुआत है और इस तरह के धमाके और होंगे।'

मैकमास्टर उस समय रक्षा सलाहकार थे जब डोनल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति थे। अफ़ग़ानिस्तान से सेना वापस बुलाने का फ़ैसला ट्रंप का ही था, जिस पर जो बाइडन टिके रहे।

 - Satya Hindi

एच. आर. मैकमास्टर, पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, अमेरिकाTwiter/ltgmcmaster

क्या कहा मैकमास्टर ने?

मैकमास्टर ने अफ़ग़ानिस्तान से सेना वापस नहीं बुलाने की सलाह ट्रंप को दी थी। जब तत्कालीन राष्ट्रपति ने उनकी सलाह को ठुकराते हुए अमेरिकी सेना को वापस बुलाने का फ़ैसला कर लिया तो मैकमास्टर ने कहा था कि 'राष्ट्रपति  तालिबान के जाल में फँस गए हैं।' 

गुरुवार के इस धमाके के बाद अमेरिकी न्यूज़ चैनल 'फ़ॉक्स न्यूज़' से बात करते हुए जनरल मैकमास्टर ने कहा, "हालत इससे बहुत ज़्यादा बुरी होने वाली है। हमें यह याद रखना चाहिए कि अब काबुल की सुरक्षा का भार हक्क़ानी नेटवर्क पर है।"

उन्होंने इसके आगे कहा,

स्थिति बदतर इस तरह की गई है कि पाँच हज़ार आतंकवादियों को जेल से रिहा कर दिया गया है। जेल में बंद अल क़ायदा, इसलामिक स्टेट खुरासान और तालिबान के सभी लोग बाहर आ चुके हैं।


एच. आर. मैकमास्टर, पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, अमेरिका

अमेरिका के इस पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने कहा, "यह इलाक़ा अंतरराष्ट्रीय जिहादी आतंकवाद का केंद्र बनने जा रहा है।" 

मैकमास्टर ने इसके साथ ही यह सवाल भी किया कि क्या अब अमेरिकी प्रशासन कुछ गंभीर होगा और तालिबान के बजाय आम अफ़ग़ानों से बात करेगा। 

 - Satya Hindi

अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई के साथ तालिबान के अनस हक्क़ानीTOLO News

आशंका बेवजह नहीं

मैकमास्टर की आशंका बेवजह नहीं है। उनका साफ मानना है कि इसलामिक स्टेट खुरासान इन धमाकों के पीछे है और आने वाले समय में अफ़ग़ानिस्तान इस गुट की अगुआई में जिहादी आतंकवाद का केंद्र बनने जा रहा है। यानी इस तरह के धमाके होते रहेंगे और गुरुवार का हमला तो बस शुरुआत है। 

धमाके के लक्ष्य, स्थान और तरीके से भी इसकी पुष्टि होती है।  

पहला धमाका उसे एबे गेट के बाहर हुआ, जहाँ अमेरिकी और ब्रिटिश सैनिकों का जमावड़ा रहता है। वारदात के समय भी वहाँ ये सैनिक बड़ी तादाद में मौजूद थे और विदेश जाने के लिए आए हुए लोगों के काग़ज़ात की जाँच कर रहे थे। 

दूसरा धमाका उस एबे होटल के बाहर हुआ, जहाँ विदेशी रहते हैं। 

ज़ाहिर है, हमलावरों के निशाने पर अमेरिकी और ब्रिटिश सैनिक थे। उनके निशाने पर दूसरे विदेश भी थे जो सेना में न हों, लेकिन अफ़ग़ान में रह रहे हों, मसलन, अमेरिकी कॉन्ट्रैक्टर, कार्यकर्ता, दुभाषिए वगैरह। 

ये धमाके उस इलाक़े में हुए, जो पूरी तरह अमेरिकी नियंत्रण में है। काबुल हवाई अड्डे पर अमेरिकी सेना का नियंत्रण है। अमेरिका के लगभग पाँच हज़ार सैनिक व अफ़सर वहाँ तैनात हैं ताकि लोगों को निकाला जा सके।

इसलामिक स्टेट के निशाने पर तालिबान

इन धमाकों के ठीक पहले इसलामिक स्टेट के बयान, उसके सोशल मीडिया अभियान और उसके प्रचार में तालिबान को निशाने पर लेने के प्रयास से स्थिति और साफ होती है। 

इसलामिक स्टेट ने 19 अगस्त को तालिबान पर अपना आधिकारिक बयान जारी किया और उसे 'अमेरिका का पिट्ठू' क़रार दिया था।

इसलामिक स्टेट ने कहा था कि अफ़ग़ानिस्तान में जो कुछ हुआ है, वह 'तालिबान नहीं, अमेरिका की जीत है', क्योंकि तालिबान ने इस विचार को आगे बढ़ाया है कि चरमपंथी समूहों के लिए आगे का रास्ता बातचीत से होकर जाता है।

सोशल मीडिया पर प्रचार

बीबीसी मॉनीटरिेंग के अनुसार, आईएस समर्थित मीडिया समूह तलए अल-अंसर अपने पोस्टरों पर #ApostateTaliban नाम का हैशटैग इस्तेमाल कर रहा है।

इन प्रोपोगेंडा पोस्टरों के अलावा एक ऐसा वीडियो भी है, जो इन पोस्टरों से अलग नज़र आता है।

इस वीडियो में अंग्रेज़ी बोलने वाला एक व्यक्ति दिखता है, जो यह साबित करने की कोशिश कर रहा है कि तालिबान ने अमेरिका के साथ सांठ-गांठ की हुई है। वह इसे साबित करने के लिए सीआईए के इसलामाबाद स्टेशन के पूर्व प्रमुख रॉबर्ट एल. ग्रेनियर की किताब "88 डेज़ टू कंधार" का सहारा लेता है। 

 - Satya Hindi

BBC

इसलामिक स्टेट के ताज़ा अभियान में आईएस का समर्थन करने वाले मीडिया समूहों के चिर-परिचित संदिग्धों ने हिस्सा लिया है। 

ये काफ़ी पुराने यूज़र्स हैं, जैसे अल-बत्तर और तलाए अल-अंसार, अल-मुरहफ़त, अल-तक़वा, हदम-अल असवार, अल-अदियत और अल-असवीर्ती, जिन्होंने अब तक सबसे ज़्यादा पोस्टर जारी किए हैं। अल-बत्तर, तलाए अल-अंसार जैसे पुराने गुटों ने अब तक सबसे बड़ी संख्या में पोस्टर जारी किए हैं।

2 अगस्त को टेलीग्राम और रॉकेटचैट पर आईएस समर्थकों ने एक वीडियो अपलोड किया। इस वीडियो का शीर्षक है- 'अफ़ग़ानिस्तान, दो योजनाओं के बीच'।

 

 - Satya Hindi

BBC

यह वीडियो तुर्जुमान अल-असवीर्ती की ओर से आया और इसे काफ़ी शेयर किया गया। आईएस समर्थकों ने 19 अगस्त को तालिबान को 'एक्सपोज़' करने  के लिए नए वीडियो का टीज़र भी जारी किया।

इस वीडियो में रॉबर्ट एल. ग्रेनियर के 2001 में देश पर अमेरिकी आक्रमण से पहले तालिबान के साथ एक समझौते पर बातचीत करने के अपने अनुभव साझा करते सुना जा सकता है। ग्रेनियर इस बातचीत में अपनी पुस्तक "88 डेज़ टू कंधार" से भी कई क़िस्से सुनाते हैं।

इस वीडियो के एक क्लिप में ग्रेनियर को यह कहते हुए दिखाया गया है कि अमेरिका एक स्थानीय अफ़ग़ान सेना की तलाश में है, जो जिहादियों से लड़ सके और उसे उम्मीद है कि तालिबान उस भूमिका को निभाएगा। 

वीडियो में अमेरिकी उच्चारण में बोलने वाला एक जिहादी कहता है,

अमेरिका एक नए तालिबान नेतृत्व के माध्यम से अपनी योजना को लागू करने में सफल है। तालिबान का यह नेतृत्व मुल्ला उमर के सिद्धांत के ख़िलाफ़ हो गया है। इस योजना के तहत वे इसलामिक ख़िलाफ़त की स्थापना को रोकना चाहते हैं।


इसलामिक स्टेट के वीडियो का अंश

अमेरिका को पता था?

अमेरिका ने जिस तरह से गुरुवार को हमले की अग्रिम चेतावनी दी और काबुल के उसके दूतावास ने एडवायज़री जारी किया और ठीक उसी दिन उसी तरीके से हमला हो गया, उससे ऐसा लगता है कि अमेरिका को भी यह पता है कि इसलामिक स्टेट अफ़ग़ानिस्तान में आतंकवाद की नयी मुहिम छेड़ने वाला है। 

अमेरिकी सरकार ने गुरुवार सुबह एडवाइजरी जारी कर अपने नागरिकों को चेताया था कि वे एअरपोर्ट न जाएं। अमेरिका के रक्षा विभाग ने कहा था कि जो लोग एबे गेट, ईस्ट गेट और नॉर्थ गेट पर हैं, वे वहां से तुरंत हट जाएं और सुरक्षित जगहों पर चले जाएं। यह भी कहा गया है कि वे लोग अगली एडवाइजरी का इंतजार करें। विदेश मंत्रालय ने भी कहा है कि आतंकी हमले का ख़तरा है। 

ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया ने भी इसी तरह की चेतावनी अपने नागरिकों के लिए जारी की है। 

घूम कर फिर वही सवाल आता है-क्या अफ़ग़ानिस्तान में एक बार फिर आतंकवादी हमलों की शुरुआत होगी और क्या यह जिहादी आतंकवाद का केंद्र बन जाएगा? 

अभी पक्के तौर पर कुछ कहना मुश्किल है, लेकिन गुरुवार की शाम काबुल हवाई अड्डे के बाहर हुए हमलों से अच्छा संकेत नहीं मिलता है। 

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें