अफगानिस्तानः अकेली लड़की तालिबान के खिलाफ खड़ी हुई
अफगानिस्तान में तालिबान शासन के फैसलों का विरोध करने के लिए अकेली लड़की भी अब विरोध प्रदर्शन करने से घबरा नहीं रही है। 18 साल की मारवा नामक छात्रा की काबुल यूनिवर्सिटी के सामने अकेले खड़े होकर प्रदर्शन करने की फोटो विश्वव्यापी वायरल है। इसी क्रम में काबुल यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर का वीडियो सामने आया है, जिसमें वो टीवी डिबेट के दौरान अपने ढेरों डिप्लोमा सर्टिफिकेट को फाड़ रहा है।
तालिबान शासकों ने 20 दिसंबर को एक तानाशाही फैसला जारी करते हुए कहा कि देश में अब लड़कियां उच्च शिक्षा की क्लास में यूनिवर्सिटी, कॉलेज में नहीं जा सकतीं। छोटी क्लास की लड़कियों की शिक्षा पर कई महीने पहले ही प्रतिबंध लगा दिया गया था। तालिबान ने और भी महिला विरोधी फैसले लिए। जिनका अफगानी महिलाएं विरोध कर रही हैं।
छात्रा मारवा अफगानिस्तान में विरोध का नया प्रतीक है।
न्यूज एजेंसी एएफपी की खबर के मुताबिक मारवा ने कहा, मैंने अपने जीवन में पहली बार इतना गर्व, मजबूत और शक्तिशाली महसूस किया क्योंकि मैं उनके खिलाफ खड़ी थी। मैं उनसे वो अधिकार मांग रही थी जो अल्लाह ने हमें दिया है।
A brave Afghan girl Marwa made a solo protest outside Kabul University against ban on womens education.
— 🏴☠️🕊🍓Puck Arks🍓🕊🏴☠️ (@PuckArksReturns) December 27, 2022
Let the girls to go school
Let the women be educated
Let the women be free pic.twitter.com/8ueZ0GPXvJ
अफगानिस्तान के सबसे बड़े और सबसे प्रतिष्ठित संस्थान, काबुल यूनिवर्सिटी के मेन गेट से कुछ मीटर की दूरी पर मारवा 25 दिसंबर को एक पोस्टर लेकर खड़ी हो गई। जिस पर लिखा था - इकरा यानी पढ़ो। मारवा की बहन ने कार में बैठकर फोन के जरिए उस मौन विरोध का फोटो खींचा और वीडियो शूट किया।
24 दिसंबर को भी कुछ छात्राओं ने तालिबान के फैसले का विरोध करते हुए प्रदर्शन किया था लेकिन पुलिस ने उन पर पानी की बौछार कर उन्हें तितर बितर कर दिया था। रविवार को जब काबुल यूनिवर्सिटी के गेट पर मारवा अकेली विरोध प्रदर्शन के लिए खड़ी हुई तो वहां तैनात गार्डों ने उसे ताने दिए, बहुत बुरी तरह झिड़का लेकिन मारवा ने उनकी एक नहीं सुनी। मारवा ने कहा कि मैं शांतिपूर्वक खड़ी रही और उन्हें कोई जवाब नहीं दिया। मैं एक अकेली अफगान लड़की की ताकत उन्हें दिखाना चाहती थी।
“
मैं यह बताना चाह रही थी कि एक अकेला शख्स भी उत्पीड़न के खिलाफ खड़ा हो सकता है। जब मेरी अन्य बहनें (छात्राएं) देखेंगी कि एक अकेली लड़की तालिबान के खिलाफ खड़ी हो गई है, तो इससे उन्हें तालिबान को हराने में और मदद मिलेगी।
-मारवा, छात्रा काबुल यूनिवर्सिटी, एएफपी से
तालिबान ने पिछले साल अगस्त में सत्ता में लौटने पर नरम रूख का वादा किया था। यह भी कहा था कि लिंग के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं होगा। लेकिन अब वे महिलाओं पर कठोर प्रतिबंध लगा रहे हैं। एक तरह से उन्हें सार्वजनिक जीवन से बाहर कर दिया है। शनिवार को, तालिबान ने एनजीओ की महिला कर्मचारियों को भी काम पर आने से रोकने का आदेश दिया।
लड़कियों के लिए माध्यमिक विद्यालय एक साल से अधिक समय से बंद हैं। महिलाओं को पार्क, जिम और सार्वजनिक स्नानागार में जाने से भी रोक दिया गया है।
प्रोफेसर ने फाड़े डिप्लोमा
काबुल यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर ने लाइव टेलीविज़न पर अपने डिप्लोमा फाड़ दिए। उन्होंने कहा - वह ऐसी शिक्षा को स्वीकार नहीं कर सकते हैं, अगर उनकी माँ और बहन पढ़ नहीं सकती हैं।Astonishing scenes as a Kabul university professor destroys his diplomas on live TV in Afghanistan —
— Shabnam Nasimi (@NasimiShabnam) December 27, 2022
“From today I don’t need these diplomas anymore because this country is no place for an education. If my sister & my mother can’t study, then I DON’T accept this education.” pic.twitter.com/cTZrpmAuL6
टीवी शो की यह क्लिप, अब वायरल हो रही है। इसमें प्रोफेसर को एक-एक करके अपने डिप्लोमा पकड़े हुए दिखाया गया है। वह फिर उन्हें एक-एक करके फाड़ देते हैं।
अफगानिस्तान की एक पूर्व मंत्री और सलाहकार शबनम नसीमी ने काबुल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर का वीडियो शेयर किया है। प्रोफेसर को कहते हुए सुना जा सकता है - "आज से मुझे इन डिप्लोमा की जरूरत नहीं है क्योंकि इस देश में शिक्षा के लिए कोई जगह नहीं है। अगर मेरी बहन और मेरी माँ पढ़ नहीं सकती हैं, तो मैं इस शिक्षा को स्वीकार नहीं करता।"
तालिबान का फैसला 20 दिसंबर को आया था। 21 दिसंबर से अफगानिस्तान में लड़कियों ने प्रदर्शन शुरू कर दिए। 22 दिसंबर को यूनिवर्सिटी छात्रों ने इस फैसले के खिलाफ परीक्षाओं का बहिष्कार कर दिया। ऐसे भी वीडियो सामने आए हैं जिनमें शिक्षा से वंचित छात्राएं रो रही हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय चुपचाप अफगानिस्तान के इस तमाशे को देख रहा है। भारत, यूएन ने चिन्ता जताई और अमेरिका ने इसकी निन्दा कर दी। इसके बाद बात आगे नहीं बढ़ी।
तालिबान इससे पहले भी 1996 से 2001 तक देश की सत्ता में रहे थे और महिलाओं के शिक्षा अधिकार सहित तमाम अधिकारों को छीन लिया था। तालिबान का तर्क है कि उनके फैसले हमेशा इस्लाम के अनुरूप होते हैं। विडंबना यह है कि अफगानिस्तान मुस्लिम दुनिया का एकमात्र देश है जो महिलाओं को शिक्षा पाने से रोकता है।