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अब आदिपुरुष के डायलॉग बदलेंगे निर्माता; क्या ग़ुस्सा कम होगा?

अब आदिपुरुष के डायलॉग बदलेंगे निर्माता; क्या ग़ुस्सा कम होगा?

आदिपुरुष फिल्म पर लोगों की नाराज़गी से परेशान अब इसके निर्माता ने फिल्म में बदलाव करने का फ़ैसला किया है। तो आख़िर क्या-क्या बदलेगा और क्या लोगों का ग़ुस्सा इससे शांत हो जाएगा?

आदिपुरुष फिल्म में तमाम किरदारों के डायलॉग को लेकर ग़ुस्सा झेल रहे फ़िल्म के निर्माता-निर्देशक और डायलॉग लिखने वाले ने अब इसमें कुछ बदलाव करने का फ़ैसला किया है। यह निर्णय फ़िल्म के रिलीज के तीसरे दिन तब लिया गया है जब अलग-अलग दलीलें देने के बाद भी लोगों का ग़ुस्सा शांत नहीं हुआ।

वैसे, तो इस फ़िल्म के कई तथ्यों को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर जिसको लेकर तीखी प्रतिक्रिया आई है वह है- डायलॉग यानी संवाद, वीएफ़एक्स और कुछ पात्रों की वेशभूषा। इस सब को लेकर सोशल मीडिया पर मीम्स की बाढ़ आई हुई है। फ़िल्म में 'मरेगा बेटे', 'बुआ का बागीचा है क्या' और 'जलेगी तेरे बाप की' जैसे डायलॉग को लेकर तो बेहद तीखी प्रतिक्रियाएँ आई हैं। अब जो बदलाव करने की बात कही गई है वह इन डायलॉग को लेकर ही है।

फिल्म की टीम द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है, 'आदिपुरुष को दुनिया भर में जबरदस्त प्रतिक्रिया मिल रही है और यह सभी उम्र के दर्शकों का दिल जीत रही है। इसको एक यादगार सिनेमाई अनुभव बनाने वाली टीम ने फिल्म के संवादों में बदलाव करने का फैसला किया है। जनता और दर्शकों के इनपुट को महत्व देते हुए यह किया जा रहा है।'

बयान में आगे यह भी कहा गया, 'निर्माता उक्त संवादों पर फिर से विचार कर रहे हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि यह फिल्म के मूल सार के साथ प्रतिध्वनित हो और यह अगले कुछ दिनों में सिनेमाघरों में दिखाई देगा। यह निर्णय इस बात का प्रमाण है कि बॉक्स ऑफिस पर शानदार संग्रह के बावजूद टीम प्रतिबद्ध है और कुछ भी उनके दर्शकों की भावनाओं और सद्भाव से परे नहीं है।'

फिल्म के डायलॉग लिखने वाले मनोज मुंतशिर शुक्ला ने भी इसको लेकर लंबा-चौड़ा ट्वीट किया है।

मनोज मुंतशिर शुक्ला ने लिखा है, 'आदिपुरुष में 4000 से भी ज़्यादा पंक्तियों के संवाद मैंने लिखे, 5 पंक्तियों पर कुछ भावनाएँ आहत हुईं। उन सैकड़ों पंक्तियों में जहाँ श्री राम का यशगान किया, माँ सीता के सतीत्व का वर्णन किया, उनके लिए प्रशंसा भी मिलनी थी, जो पता नहीं क्यों मिली नहीं...।'

उन्होंने आगे लिखा है कि हो सकता है, 3 घंटे की फ़िल्म में मैंने 3 मिनट कुछ आपकी कल्पना से अलग लिख दिया हो, लेकिन आपने मेरे मस्तक पर सनातन-द्रोही लिखने में इतनी जल्दबाज़ी क्यों की, मैं जान नहीं पाया।

आगे उन्होंने कहा, 'ये पोस्ट क्यों? क्योंकि मेरे लिये आपकी भावना से बढ़ के और कुछ नहीं है। मैं अपने संवादों के पक्ष में अनगिनत तर्क दे सकता हूँ, लेकिन इस से आपकी पीड़ा कम नहीं होगी। मैंने और फ़िल्म के निर्माता-निर्देशक ने निर्णय लिया है, कि वो कुछ संवाद जो आपको आहत कर रहे हैं, हम उन्हें संशोधित करेंगे, और इसी सप्ताह वो फ़िल्म में शामिल किए जाएँगे।'

सोशल मीडिया पर मनोज मुंतशिर शुक्ला की अलग-अलग दलीलों को लेकर भी लोग निशाना साध रहे हैं। जिसमें एक तो फिल्म रिलीज से पहले का बयान है और अब एक रिलीज होने के बाद का। दोनों में वह विपरीत बातें कहते नज़र आते हैं।

आदिपुरुष जब रिलीज़ हुई तो फिल्म को खराब वीएफएक्स और ख़राब संवादों के लिए ट्रोल किया गया। इनमें से कुछ में 'मरेगा बेटे', 'बुआ का बागीचा है क्या' और 'जलेगी तेरे बाप की' शामिल हैं। खराब संवादों के कारण फिल्म की जबरदस्त आलोचना की जा रही है।

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