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गोरखपुर में ABVP कार्यकर्ताओं ने की वाइस चांसलर की पिटाई 

गोरखपुर में ABVP कार्यकर्ताओं ने की वाइस चांसलर की पिटाई 

गोरखपुर यूनिवर्सिटी में जिस तरह से वीसी की पिटाई की गई है और आरोप आरएसएस से जुड़े संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) पर लगा है, उसने राज्य की कानून व्यवस्था पर सवाल उठा दिया है। एबीवीपी का नाम पहले भी मध्य प्रदेश में एक शिक्षक की पिटाई और उनकी मौत के मामले में भी सामने आया था, हालांकि परिषद ने इससे हमेशा इनकार किया है।

उत्तरप्रदेष के महाबली मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृहनगर गोरखपुर में दीनदयाल विश्वविद्यालय के कुलपति को एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने दौड़ा-दौड़कर पीटा। ग़नीमत है कि उनकी जान बच गयी। शुक्रवार शाम अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद  कार्यकर्ताओं ने कुलपति के कक्ष में घुसकर तोड़फोड़ कर दी। दरवाजा उखाड़कर फेंक दिया। इसके बाद कुलपति  और रजिस्ट्रार को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा। इतना ही नहीं, बीच-बचाव करने आए पुलिसवालों से भी मारपीट की।बाद में पुलिसवालों ने लाठीचार्ज कर परिषद  कार्यकर्ताओं को खदेड़ा। 

बवाल में कुलपति,रजिस्ट्रार और परिषद  कार्यकर्ता और कुछ पुलिसकर्मी घायल हुए हैं। सभी को अस्पताल भेजा गया है।  3 से 4 थानों की फोर्स तैनात की गई है। वहीं, 10 कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया है।

गोरखपुर विश्वविद्यालय की इस वारदात ने 2008 में मध्यप्रदेश में उज्जैन के माधव कालेज में हुई प्रोफेसर सभरवाल हत्याकांड की याद दिला दी। इस हत्याकांड के आरोपियों में शामिल लोग आज भाजपा में शीर्ष  पर हैं, हालांकि बाद में उन्हें अदालत ने बरी कर दिया था। गोरखपुर  घटना भाजपा के सुशासन में हुई है और उज्जैन की घटना भी भाजपा के ही सुशासन में हुई थी ।  दोनों घटनाओं में भाजपा की संस्कारवान छात्र संस्था के कार्यकर्ता शामिल थे। यानि बीते 15  साल में भाजपा और उसके सहयोगी संगठनों की चाल, चरित्र और चेहरे में 

कोई बदलाव नहीं आया है। बल्कि उसका रंग और गहरा हुआ  है।

परिषद कार्यकर्ता यूनिवर्सिटी में फैली अनियमितता के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। छात्रों के मुताबिक वाइस चांसलर के आश्वासन के बाद भी किसी समस्या का समाधान नहीं हुआ। इसके बाद 13 जुलाई को परिषद  कार्यकर्ताओं ने मांगे पूरी न होने पर विश्विद्यालय  में कुलपति का पुतला फूंककर प्रदर्शन किया।उस दिन भी कार्यकर्ताओं ने तीन दरवाजों  के ताले भी तोड़ दिए थे। इसके बाद कुलपति  ने एक-एक कर छात्रों की समस्याएं सुनीं और आश्वासन दिया था कि जल्द ही इन सभी का समाधान कर दिया जाएगा। इसके बाद डीन डॉ. सत्यपाल सिंह ने हंगामा करने वाले 4 कार्यकर्ताओं के निलंबन और 4 कार्यकर्ताओं को यूनिवर्सिटी में प्रवेश वर्जित करने का आदेश जारी कर दिया।इस आदेश के विरोध में छात्र वाइस चांसलर से मिलने शुक्रवार को पहुंचे तो उन्होंने बात करने से मना कर दिया। इस पर परिषद कार्यकर्ताओं का गुस्सा भड़क गया।

विश्वविद्यालय के छात्रों की समस्याएं हो सकतीं हैं,मुमकिन है की कुलपति और रजिस्ट्रार भी इसके लिए दोषी हों लेकिन परिषद को ये अधिकार राज्य सरकार ने कब दे दिया की उसके कार्यकार्ता हिंसा पर उत्तर आएं और पुलिस तमाशबीन बनी देखती रहे। जिन राज्यों में भाजपा की डबल इंजन की सरकारें हैं उन सभी में विद्यार्थी परिषद की शक्ति अपार है। इसी शक्ति के चलते 2008  में मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में छात्रसंघ चुनाव के दौरान माधव महाविद्यालय के प्रोफेसर सभरवाल की छात्रों ने पीट -पीट कर हत्या कर दी थी। 

गोरखपुर की वारदात कहने को एक आम घटना है लेकिन इसे ख़ास माना जाना चाहिए क्योंकि ये घटना उत्तरप्रदेश के उत्तरदायी मुख्यमंत्री योगीइ आदित्यनाथ के गृह नगर की है। इस घटना से पूरे प्रदेश में क़ानूओं और व्यवस्था की स्थिति की झलक मिलती है। भाजपा के सत्ता में आने के बाद अकेले मध्यप्रदेश या उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश में शिक्षा के केंद्र आतंक के साये में है। दिल्ली का जेएनयू हो या फिर एएमयू केम्पस सभी जगह अराजकता का माहौल है।दुर्भाग्य ये है कि इस अराजकता को राजसत्ता का संरक्षण प्राप्त है। जब अपराध करने वाले सरकार के प्रिय अनुषांगिक संगठनों के लोग हों तो वहां बेचारी सरकार बुलडोजर संहिता का इस्तेमाल भी नहीं कर सकती। बुलडोजर तो विधर्मियों को पहचानते हैं।

मध्यप्रदेश में इंदौर शहर में  महिला प्राचार्य  विमुक्ता शर्मा को छात्र ने जिंदा जला दिया था।  उनकी इलाज के दौरान मौत हो गई थी।  नकाब पहने दो छात्रों ने कॉलेज कैंपस में घुसकर प्रोफेसर से मारपीट की थी।   घटना की गंभीरता को देखते हुए नागझिरी पुलिस ने 24 घंटे के भीतर दोनों बदमाशों को धरदबोचा और सड़क पर जुलूस निकाल दिया । इंदौर की इस लोमहर्षक वारदात के बाद भी गुरुजनों पर हमलों का सिलसिला थमा नही।  उज्जैन में शासकीय विधि महाविद्यालय में प्रोफेसर पर हमले की घटना हुई।  कॉलेज में परीक्षा खत्म होते ही प्रोफेसर कॉलेज के बाहर आए तो उनके निकलते ही चेहरे पर कपड़ा बांधकर आए कुछ बदमाशों ने उन्हें रोका और लात-घूसों से पीटना शुरू कर दिया।  साथी प्रोफेसरों ने बचाने की कोशिश की तो उन्हें भी अपशब्द कहे और धमकी दी थी।  इस दौरान प्रोफेसरों ने बदमाशों की तस्वीर खींच ली थी और पुलिस को सूचित कर दिया था। लेकिन नतीजा ठनठन गोपाल।

 - Satya Hindi

उज्जैन में प्रोफेसर हरभजन सिंह सभरवाल की हत्या की गुत्थी जहां आज तक नहीं सुलझ सकी है। गोरखपुर में हुई वारदात की गुत्थी भी शायद ही कभी सुलझ पाए। पुलिस और सरकार के पास करने के लिए बहुत से काम होते है। कौन कुलपतियों, रजिस्ट्रारों, प्रोफेसरों को पिटने से बचाये ? गोरखपुर विश्विद्यालय की घटना की तुलना मणिपुर की हिंसक वारदातों से नहीं की जा सकती किन्तु इस घटना और मणिपुर की घटनाओं में कोई ज्यादा अन्तर नहीं है ।  इस तरह की हिंसक वारदातें जहां भी हो रहीं हैं वहां संयोग से डबल इंजन की सरकारें हैं। यदि यही वारदातें दूसरी पार्टी की सरकारों के रहते हुयी होतीं तो मगरमच्छ मिलकर अब तक इतना विलाप करते कि आपका दिल भी रो पड़ता।

विश्वविद्यालय परिसरों में नेतागीरी करने वाले लोग ही बाद में राजनीति की मुख्यधारा का हिस्सा बनते हैं इसलिए इन्हें यहीं संस्कारित किया जाना चाहिए। छात्र नेता और छात्र संगठनों के कार्यकर्ता यदि शुरू से ही हिंसा की सीख लेकर आगे बढ़ेंगे तो कल्पना कर लीजिये कि देश की भावी राजनीति का परिदृश्य कैसा होगा ? अब देखना होगा कि गोरखपुर वाले इस गोरखधंधे को लेकर क्या रुख अपनाते हैं ? पुलिस तो ऐसे मामलों में सत्ता के इशारों पर काम करती है।

एक जमाने में छात्र संगठन इंकलाब की पहली जरूरत होते थे। देश असम में छात्र आंदोलन से ही तब्दीली आयी थी। देश में आपातकाल के खिलाफ भी आंदोलन का शंखनाद छात्र आंदोलन से ही हुआ था। कहने का आशय यह है कि छात्रशक्ति को यदि दिशा दी जाये तो ये ही लोग परिवर्तन के संवाहक बन सकते हैं अन्यथा इन्हें हिंसक होने में कितनी  देर लगती है ?

(राकेश अचल के फेसबुक पेज से)

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