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कश्मीर में खुले स्कूल, बीडीसी चुनाव कराना बड़ी चुनौती

कश्मीर में खुले स्कूल, बीडीसी चुनाव कराना बड़ी चुनौती

जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने सभी अधिकारियों से कहा है कि बृहस्पतिवार से सभी स्कूलों को खोल दिया जाए।

अनुच्छेद 370 को हटाये जाने के बाद से ही लगातार प्रतिबंध झेल रहे जम्मू-कश्मीर के लोगों को अब तक राहत नहींं मिल सकी है। पिछले दो महीने से कश्मीर में हालात ज़्यादा ख़राब हैं, जहाँ पर स्कूलों के न खुलने, अस्पतालों में दवाइयां न होने, फ़ोन, इंटरनेट बंद होने की ख़बरें आई थीं। इतने लंबे समय तक पाबंदियां झेलने के बाद थोड़ी राहत देने वाली ख़बर आई है। 

जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने सभी अधिकारियों से कहा है कि बृहस्पतिवार से सभी स्कूलों को खोल दिया जाए। कश्मीर के संभागीय आयुक्त बशीर अहमद ने कश्मीर के सभी उपायुक्तों और स्कूली शिक्षा के निदेशकों को यह भी निर्देश दिया है कि वे किसी भी छात्र से अगस्त और सितंबर महीने की ट्यूशन फ़ीस और बस फ़ीस न लें। आदेश के बाद भी अगर किसी स्कूल ने यह फ़ीस ली तो उस पर भारी जुर्माना लगाया जायेगा और उसका रजिस्ट्रेशन कैंसिल कर दिया जायेगा। 

सरकारी प्रवक्ता के अनुसार, संभागीय आयुक्त ने निर्देश दिये हैं कि सभी सरकारी और प्राइवेट स्कूलों को बृहस्पतिवार से खोल दिया जाए। यह भी कहा गया है कि कश्मीर के सभी कॉलेज 9 अक्टूबर से खुलेंगे। 

अनुच्छेद 370 हटाने के बाद से राज्य में लगे प्रतिबंधों के बीच राज्य के प्रशासन ने कई बार स्कूलों को खोलने की कोशिश की लेकिन ख़राब माहौल के बीच माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहते थे। सोमवार को इसे लेकर सरकारी अधिकारियों की बैठक हुई थी और इसमें घाटी के सभी स्कूलों के अधिकारियों से कहा गया था कि वे स्कूलों में पैरेंट्स-टीचर मीटिंग करवायें और जिला प्रशासन से सहयोग लेकर स्कूल को खोले जाने की व्यवस्था करें। सरकार के प्रवक्ता ने बताया कि कश्मीर के मेडिकल और डेंटल कॉलेज खुले हुए हैं और वे अपना काम कर रहे हैं। 

इस सबके बीच, केंद्र और जम्मू-कश्मीर प्रशासन के सामने एक सबसे बड़ी चुनौती राज्य में ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल (बीडीसी) के चुनाव कराना है। बीडीसी के चुनाव 24 अक्टूबर को होने हैं लेकिन हाल ही में घाटी में जिस तरह लोगों के केंद्र के फ़ैसले के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतरने की ख़बरें सामने आई हैं, उसे देखते हुए चुनाव कराना आसान नहीं होगा। 

क्योंकि राज्य में राजनीतिक माहौल को सामान्य तभी किया जा सकता है जब वहाँ के बड़े नेताओं को प्रशासन घूमने की आज़ादी दे। पिछले दो महीने से राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों फ़ारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती को प्रशासन ने हिरासत में रखा हुआ है। इसके अलावा भी कई प्रमुख नेताओं को लोगों के बीच जाने नहीं दिया गया है, ऐसे हालात में चुनाव किस तरह होंगे, यह एक बड़ा सवाल है। 

2 अक्टूबर को गाँधी जयंती के मौक़े पर प्रशासन ने हालाँकि कुछ नेताओं को रिहा किया है लेकिन इससे राजनीतिक माहौल को सामान्य होने में कितनी मदद मिलेगी, यह देखने वाली बात होगी। प्रशासन ने दावा किया है अब राज्य में हालात सामान्य हैं लेकिन ख़बरों के मुताबिक़ अभी भी सभी इलाक़ों में फ़ोन और इंटरनेट सेवाओं को बहाल नहीं किया गया है। 

विश्वास जीतने की कोशिश!

पिछले दो महीनों में कश्मीर के हालात की ख़बरें संयुक्त राष्ट्र से लेकर कई देशों तक पहुंच चुकी हैं। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि हमें अपने कश्मीरी भाइयों को गले लगाना चाहिए और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कश्मीरी छात्रों के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाक़ात की थी। इससे माना गया था कि केंद्र और राज्य सरकारें कश्मीर के लोगों का विश्वास जीतने की कोशिश कर रही हैं क्योंकि पुलवामा हमले के बाद देश भर के कई इलाक़ों में कश्मीरियों पर हमले की ख़बरें सामने आई थीं और यह पूरे देश में एक बड़ा मुद्दा बना था। 

बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने को देश की एकता, अखंडता के लिए ज़रूरी क़दम के रूप में पेश किया है लेकिन अब यह उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि वह राज्य में हालात बेहतर करे। क्योंकि विशेष राज्य का दर्जा ख़त्म किये जाने, नेताओं को हिरासत में लेने, पाबंदिया लगाने से जो नाराज़गी राज्य के लोगों में है, उसे दूर करना उसके लिए इतना आसान नहीं होगा। 

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