कोरोना तीसरी लहर से जीडीपी का अनुमान और गिर सकता है: अभिजीत बनर्जी
आर्थिक मोर्चे पर संकट से जूझ रही सरकार के सामने आगे और भी मुश्किलें आने वाली हैं। लोगों की नौकरियाँ ख़त्म होने की रिपोर्टों के बीच अब नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी ने कहा है कि कोरोना की संभावित तीसरी लहर जीडीपी पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है। उन्होंने कहा है कि भारत की विकास दर आईएमएफ़ के हाल के 9.5 प्रतिशत के अनुमान से भी नीचे 7 प्रतिशत तक जा सकती है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ़ ने पिछले महीने के आख़िर में जारी अपनी रिपोर्ट में भारत की अनुमानित विकास दर में कटौती की थी। दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं पर नज़र रखने वाली इस अंतरराष्ट्रीय संस्था ने कहा है कि वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत की विकास दर 9.5 प्रतिशत होगी। पहले इसने 12.5 प्रतिशत का अनुमान लगाया था। यानी भारत की विकास दर में तीन प्रतिशत प्वाइंट की गिरावट होने का अनुमान है। इस तेज़ गिरावट की वजह कोरोना है।
आईएमएफ़ का अनुमान है कि भारत की जीडीपी वृद्धि दर यानी सकल घरेलू उत्पाद बढ़ने की दर में कोरोना की वजह से 10.9 प्रतिशत की कमी आई है। आईएमएफ़ ही नहीं, ख़ुद भारतीय संस्थाएँ कम विकास दर की आशंका जता रही हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक ने 4 जून को कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर इस दौरान 9.5 प्रतिशत हो सकती है, जबकि पहले उसने 10.5 प्रतिशत विकास दर का अनुमान लगाया था।
अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेन्सी स्टैंडर्ड एंड पूअर यानी एस एंड पी ने पहले कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था 11 प्रतिशत की दर से विकास दर्ज कर लेगी, पर बाद में उसने कहा कि इसमें 9.5 प्रतिशत का ही विकास होगा। यानी, पहले के अनुमान से 1.5 प्रतिशत कम विकास होने की संभावना है।
भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में अभिषेक बनर्जी का ताज़ा बयान तब आया जब पत्रकारों ने उनसे इस पर सवाल किया। वह पश्चिम बंगाल सचिवालय नबन्ना में राज्य सरकार के वैश्विक सलाहकार बोर्ड (जीएबी) की बैठक के बाद पत्रकारों से बात कर रहे थे।
अभिषेक बनर्जी ने डीजल-पेट्रोल की बढ़ती क़ीमतों पर केंद्र सरकार की आलोचना की और कहा कि सरकार को महामारी के दौरान अपने ख़र्च बढ़ाने के साथ ही और दरियादिली दिखानी चाहिए थी।
उन्होंने कहा, 'केंद्र सरकार वह करने को तैयार नहीं है जो अमेरिका और यूरोपीय देश कर रहे हैं, वे पैसा छाप रहे हैं और ख़र्च कर रहे हैं। मौजूदा संदर्भ में यह एक बेहतर नीति होती, खासकर तब जब हम मुद्रास्फीति को दूर करने पर ध्यान नहीं दे रहे हैं।'
बनर्जी का यह बयान इसलिए अहम है कि कोरोना और लॉकडाउन जैसे प्रतिबंधों के कारण लोगों की आमदनी घटी है। तेल की क़ीमतें बढ़ने से दूसरी चीजों की क़ीमतें महंगी होती जा रही हैं। हाल में तो ऐसी ख़बरें आती रही हैं कि बड़ी संख्या में लोगों की नौकरियाँ भी चली गई हैं। इसी हफ़्ते सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी यानी सीएमआईई की एक रिपोर्ट आई है जिसमें कहा गया है कि जुलाई महीने में क़रीब 32 लाख लोगों की नौकरियाँ चली गईं।
सीएमआईई का कहना है कि जुलाई 2021 में 76.49 मिलियन यानी 7.6 करोड़ वेतनभोगी लोग थे, जबकि यह संख्या जून में 79.7 मिलियन यानी 7.9 करोड़ थी। जिन लोगों की नौकरी गई, उनमें से ज़्यादातर लोग शहरों के थे। शहरी इलाकों में 26 लाख बरोज़गार हो गए। मुंबई स्थित सीएमआईई का यह भी कहना है कि इस दौरान छोटे व्यापारियों और दिहाड़ी मज़दूरों की तादाद 24 लाख बढ़ी।
पहली बार लॉकडाउन लगते ही भारत में पिछले साल सिर्फ़ अप्रैल महीने में ही बारह करोड़ लोगों के बेरोज़गार होने की ख़बर आई थी। और इनमें से छह करोड़ लोग चालीस साल से कम उम्र के थे।
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, डब्ल्यूएचओ के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक स्वरूप सरकार ने कहा है, 'जब तक 80%-90% नागरिकों का टीकाकरण नहीं हो जाता, तब तक कोरोना की एक और लहर को रोकना संभव नहीं होगा…। सरकारी आँकड़े संकेत देते हैं कि जून 2022 से पहले 80%-90% लोगों को टीकाकरण करना संभव नहीं होगा। तब तक हमें निवारक उपायों को जारी रखने की ज़रूरत है।'